कँवल भारती : महत्वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत, दलित विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए ख्यात, कई पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।
पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की सातवीं कड़ी – सम्पादक
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काॅंग्रेस की मदद नहीं चाहिए
त्रिचूर के लोगों को डा. आंबेडकर की प्रतिक्रियावादी सलाह
(दि बाम्बे क्राॅनिकल,, 18 जून 1931)
हमारे संवाददाता द्वारा
कालीकट, 17 जून। मन्दिर प्रवेश सत्याग्रह, त्रिचूर के संयोजक के पत्र के सन्दर्भ में डा. आबेडकर कहते हैं, ‘मैं आपको यह सलाह दूॅंगा कि आप लोग काॅंग्रेस की सहायता पर निर्भर न रहें। इस विषय में वह आपकी सहायता नहीं करेगी। उसकी सहायता से आपको कोई लाभ नहीं होगा। हमारे लोग अपने खुद के प्रयासों से ही स्वतन्त्रता की लड़ाई जीतेंगे।’
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डा. आंबेडकर की सलाह
(दि बाम्बे क्राॅनिकल,, 20 जून 1931)
स्वाभाविक रूप से डा. आंबेडकर की ओर से यही सुझाव दिया जा सकता था कि त्रिचूर में मन्दिर प्रवेश सत्याग्रह के आयोजकों को अपने अभियान में काॅंग्रेस की सहायता नहीं लेनी चाहिए। अन्यथा, काॅंग्रेस को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का कार्य और भी मुश्किल हो जायेगा। और दूसरे किसी से भी किसी के खास मकसद को छोड़ देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। डा.आंबेडकर का पत्र अस्तित्व के लिए एक सुगम संघर्ष से ज्यादा कुछ नहीं है। किन्तु क्या इसी बीच हम धारवाड़ के चमार समुदाय के जिला सम्मेलन के प्रस्ताव के प्रति उनका ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं? उन सबको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि वे केवल उनके द्वारा उपेक्षित किए जाने के ही योग्य हैं। किन्तु राज्य की सिफारिश के सम्बन्ध में बम्बई सरकार की नीति कुछ ध्यान चाहती है। बम्बई सरकार की उदासीनता डा. आंबेडकर के श्रेय को कम नहीं करती है।
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पूना में अछूत सम्मेलन
(दि सीक्रेट अबस्ट्रेक्ट आॅफ इन्टेलीजेन्स, 13 जून 1931)
1865, पूना, 30 मई, पूना जनपद के नारायणगाॅंव में दो दिवसीय अछूत सम्मेलन हुआ, जिसमें 23 मई को 600 लोगों ने और 24 मई को 400 लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन की अध्यक्षता डा. बी. आर. आंबेडकर ने की। सम्मेलन में जो प्रस्ताव पारित किए गए, वे अधिकांशतः जातीय भेदभाव दूर करने और उनकी स्थिति में सुधार लाने से सम्बन्धित थे।
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बी. आर. आंबेडकर
(बाम्बे सीक्रेट अबस्ट्रेक्ट, 18 जुलाई 1931)
2290, अहमदाबाद, 4 जुलाई- अछूतों के नेता भीमराव आंबेडकर का यहाॅं 28 जून को आगमन हुआ। कुछ लड़कों ने यहाॅं उनके विरोध में एक मामूली प्रदर्शन किया था, जिन्हें मजदूर यूनियन और काॅंग्रेस पार्टी ने उकसाया था। उन्होंने काले झण्डे लहराए और लगभग 200 अछूतों ने उनके स्वागत में विरोध किया। किन्तु रेलवे पुलिस ने हस्तक्षेप करके उनके उपद्रव खत्म कराया। उन्होंने 28 और 29 जून को भाषण दिया।
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दलित वर्ग
डा. आंबेडकर ने मि. गाॅंधी से भेंट की
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 15 अगस्त 1931)
दलित वर्गों के नेता डा. आंबेडकर ने शुक्रवार की शाम में मि. गाॅंधी से भेंट की। उन्होंने इस विषय पर मि. गाॅंधी को प्रभावित करने का प्रयास किया कि काॅंग्रेस ने अभी तक दलित वर्गों के लिए कुछ भी ठोस काम नहीं किया है, और स्वयं मि. गाॅंधी इस भ्रामक कल्पना में है कि दलितों के प्रतिनिधि हैं और दलित वर्ग उनके साथ है। मि. गाॅंधी ने इस बात को स्वीकार नहीं किया कि काॅंग्रेस ने दलितों के लिए कुछ नहीं किया है और कुछ भी नहीं कर रही है। डा. आंबेडकर मि. गाॅंधी से और मि. गाॅंधी डा. आंबेडकर से सहमत नहीं हो सके।
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मि. गाॅंधी की मूर्खता पर डा. आंबेडकर बोले
गाॅंधी को अत्याचार की छोटी घटना की चिन्ता
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 17 अगस्त 1931)
गत दिनों मि. गाॅंधी से भेंट करने के बाद, दलित वर्गों के नेता डा. आंबेडकर ने टाइम्स आॅफ इंडिया के प्रतिनिधि को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा, ‘मि. गाॅंधी ने बारडोली के हितों को भारत से ऊपर रखा है, जिसके कारण गोलमेज सम्मेलन में विचार-विमर्श के लिए इंग्लैण्ड जाने से इन्कार कर दिया है। मुझे यह उनकी मूर्खता लगती है। उन्हें भारत से ज्यादा गाॅंव के अधिकारियों के अत्याचारों की चिन्ता है। जिस तरह उन्होंने उसे एक बड़ी समस्या बना दिया है, जिसका निपटारा करके लिए वहाॅं काफी सक्षम अधिकारी मौजूद हैं, उसे मैं समझ नहीं पा रहा हूॅं।’
अवश्य ही गत दिनों मि. गाॅंधी ने डा. आंबेडकर को कुछ विशेष जवाब दिया है। उन्होंने कहा, उन्होंने मि. गाॅधी से गोलमेज सम्मेलन में उनके जाने के बारे में पूछा था कि क्या वे सम्मेलन के इस निर्णय को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं कि नए संविधान में अन्य अल्पसंख्यकों की तरह ही दलित वर्गों को भी राजनीतिक मान्यता मिलनी चाहिए और उन्हें राजनीतिक संरक्षण तथा विधानसभाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। डा. आंबेडकर को शिकायत है कि मि. गाॅंधी ने उनके इस विचार का समर्थन नहीं किया, और यह कहा कि यदि वे गोलमेज सम्मेलन में गए, तो वे उनसे कहेंगे कि सम्मेलन को जो सही लगे, वह कर सकता है, परन्तु उनके विचार में दलितों को राजनीतिक संरक्षण तथा प्रतिनिधित्व दिए जाने का सुझाव पूरी तरह आत्मघाती है।
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अछूतों से अलगाव
(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 18 अगस्त 1931)
दलित वर्गों के नेता डा. आंबेडकर, जो गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए ‘मूलतान’ जहाज से रवाना होने से पहले मि. गाॅंधी से मिले थे, कहा जाता है कि उन्होंने महात्मा को अछूतों के कष्टों के प्रति काॅंग्रेस के निष्ठुर रवैए के बारे में कुछ मार्मिक सच्चाईयाॅं बताई थीं। बेचारे महात्मा भी क्या कर सकते हैं, जब पूरा देश ही अस्पृश्यता में विश्वास करता है।
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दलित वर्गों ने डा. आंबेडकर का साथ छोड़ा
कहा, पृथक निर्वाचन नहीं चाहिए, गाॅंधी में हमें पूर्ण विश्वास
(दि फ्री प्रेस जर्नल, 11 अक्टूबर 1931)
बम्बई, शनिवार।
तथाकथित ‘दलित वर्गों’ की ओर से अल्पसंख्यक समिति में बोलने के लिए काॅंग्रेस के दावे को नकारने और दलित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन तथा विशेष प्रतिनिधित्व पर बल देने सम्बन्धी डा. आंबेडकर के वक्तव्य का प्रसिद्ध क्रिकेटर पी. बालू, बी. जे. देवरुखकर और श्री पटेल के नेतृत्व में दलित समुदाय के एक विशाल वर्ग ने खण्डन किया है। विशाल बहुमत वाला यह दलित वर्ग हमेशा से ही आवश्यक आरक्षण के साथ, यदि वाॅंछनीय हो, संयुक्त निर्वाचन पद्धति के पक्ष में रहा है, और उसने काॅंग्रेस तथा महात्मा गाॅंधी में ही हमेशा अपनी आस्था व्यक्त की है।
उन्होंने डा. आंबेडकर के इस विचार का खण्डन किया है कि दलित वर्ग स्वराज आन्दोलन में काॅंग्रेस के साथ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि काॅंग्रेस भावी संविधान में उनके हितों का अवश्य ध्यान रखेगी और उनको आवश्यक आरक्षण के साथ पूर्ण प्रतिनिधित्व प्रदान करेगी।
उपर्युक्त व्यक्तियों तथा समुदाय के अन्य प्रमुख लोगों ने इस विषय पर पूरी तरह विचार करने के बाद महात्मा जी और प्रधानमन्त्री को इस आशय का तार भेजने का निश्चय किया है कि वे महात्मा जी में पूरा विश्वास करते हैं और दलित वर्गों के लिए उनकी योजना का समर्थन करते हैं। वे आशा करते हैं कि ऊपर के देश-संगठन भी इसमें शामिल होंगे।
69.
डा. आंबेडकर का खण्डन
दलित वर्गों को पृथक निर्वाचन की आवश्यकता नहीं
प्रधानमन्त्री को अविश्वास का तार भेजा
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 12 अक्टूबर 1931)
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर।
श्रद्धानन्द मेमारियल ट्रस्ट, दिल्ली की ओर से मि. गाॅंधी और अल्पसंख्यक उपसमिति के अध्यक्ष मि. मेक डोनाल्ड को निम्नलिखित तार भेजा गया है-
‘दलित वर्ग पृथक निर्वाचन नहीं चाहते हैं। वे व्यस्क मताधिकार से सन्तुष्ट हैं। उनका आंबेडकर में कोई विश्वास नहीं है।’ -ए. पी.
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डा. आंबेडकर का खण्डन
(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 12 अक्टूबर 1931)
यह ध्यान में रखना दिलचस्प है कि प्रसिद्ध क्रिकेटर पी. बालू, के नेतृत्व में बम्बई के दलित वर्गों ने डा. आंबेडकर के इस मत का खण्डन करने का निश्चय किया है कि दलित वर्ग स्वराज आन्दोलन में काॅंग्रेस के साथ नहीं है। मि. बालू और उनके समर्थकों ने उल्लेख किया है कि उनके समुदाय का बड़ा हिस्सा महात्मा गाॅंधी और उनके व्यस्क मताधिकार की संयुक्त निर्वाचन पद्धति में पूर्ण विश्वास करता है। वास्तविक दलित नेताओं को स्वाभाविक रूप से पृथक निर्वाचनों से डर लगता है, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि वे अन्य समुदायों से अलग-थलग होकर रह जायें। हमें यह जानकर खुशी है कि दिल्ली के श्रद्धानन्द मेमोरियल ट्रस्ट ने भी इस आशय का तार गाॅंधी जी को भेजा है कि ‘दलित वर्ग पृथक निर्वाचन नहीं चाहते हैं। वे व्यस्क मताधिकार से सन्तुष्ट हैं, और उनका आंबेडकर में कोई विश्वास नहीं है।’