संजय कुमार सिंह
खबरों के मुताबिक इस साल 4 जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने पांच सांसदों – बीजेपी के कपिल पाटिल और शिवकुमार उदासी, कांग्रेस की सुष्मिता देव, तेलंगाना राष्ट्र समिति के गुथा सुकेंदर रेड्डी और शिवसेना के संजय जाधव के सवाल के जवाब में कहा था कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पर सरकार अब तक 644 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है. इनमें से केवल 159 करोड़ रुपये जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं.
इस संबंध में कल ‘द क्विंट’ की खबर इस प्रकार थी, “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का सचःसिर्फ प्रचार में खत्म कर दिया 56% बजट”. खबर में कहा गया था, 22 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ स्कीम की शुरुआत की. इसका पहला उद्देश्य देश में घटते लिंग अनुपात को बढ़ाना था और लड़कियों को लेकर पिछड़ी सोच में बदलाव करना था. सरकार की इस स्कीम को तीन मंत्रालयों महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास के माध्यम से देशभर में लागू करने का फैसला किया गया. इस स्कीम के लागू होने के चार साल बाद सरकार ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे पता चलता है कि इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पब्लिसिटी था.
दूसरी खबर द वायर में थी. शीर्षक था, “सिर्फ प्रचार पर ही ख़त्म कर दिया गया ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का 56 फीसदी बजट”. देश में घटते लिंग अनुपात को बढ़ाने और लड़कियों को लेकर पिछड़ी सोच में बदलाव लाने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के तहत पिछले चार सालों में आवंटित हुए कुल फंड का 56 फीसदी से ज्यादा हिस्सा केवल उसके प्रचार में खत्म कर दिया गया. ये जानकारी इसी साल चार जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने अपने जवाब में दिए हैं. …. कुल आवंटन का 56 फीसदी से अधिक पैसा यानी कि 364.66 करोड़ रुपये ‘मीडिया संबंधी गतिविधियों’ पर खर्च किया गया.
कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक महत्वपूर्ण खबर है जो सरकार की कथनी और करनी बताती है. पर आज के अखबारों में यह पहले पन्ने पर नहीं दिखी. राजस्थान पत्रिका ने इसे पहले पन्ने पर छापा है. इसके साथ प्रधानमंत्री पर राहुल गांधी का तंज भी है, “मोदी बचाओ विज्ञापन चलाओ”. राहुल गांधी ने ट्वीट किया था, “इस सरकार में सिर्फ मोदी बचाओ, विज्ञापन चलाओ के फार्मूले पर काम हो रहा है”. इस संबंध में सरकारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं और आसानी से उपलब्ध हैं. आप भी देखिए. हो सकता है यह खबर चार जनवरी को या उसके आस-पास छपी हो और कल राहुल गांधी के ट्वीट के बाद फिर चर्चा में आई हो. हालांकि, राहुल गांधी ने क्विंट की खबर साझा करते हुए ट्वीट किया है.
अगर यह खबर पहले नहीं हुई हो तो आज पहले पन्ने पर जरूर हो सकती थी क्योंकि पहले पन्ने के लायक खबरों की आज कमी है और इसलिए कल की बारिश की खबर कई अखबारों में प्रमुखता से फोटो के साथ छपी है. हालांकि वह खबर भी महत्वपूर्ण है और कम से कम दिल्ली में पहले पन्ने के लायक तो है ही, फिर भी कई अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है. मुझे ध्यान नहीं है कि यह खबर पहले पढ़ी हो. आपको आपके अखबार में दिखी थी क्या? नवोदय टाइम्स में भी यह खबर राहुल गांधी की फोटो के साथ टॉप पर है. असल में यह खबर नहीं, राहुल गांधी के कटाक्ष की सूचना है और अखबार ने इसी में बताया है कि राहुल गांधी ने एक खबर को शेयर करते हुए ट्वीट किया है और खबर क्या है.
वायर और क्विंट की मूल खबर के अनुसार संसद में यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इस योजना को विफल माना है, मंत्री ने इनकार में जवाब दिया. वास्तव में, उन्होंने बताया कि सरकार ने देश के सभी 640 जिलों में इस योजना को लागू करने का फैसला लिया है. साल 2015 में स्कीम के पहले चरण में, सरकार ने अपेक्षाकृत कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों पर ध्यान केंद्रित किया. उसके बाद दूसरे चरण में, सरकार ने 61 और जिलों को जोड़ा. इन 161 जिलों में बाल लिंगानुपात के आधार पर योजना आंशिक तौर पर सफल रही है. 161 में से 53 जिलों में, 2015 से बाल लिंग अनुपात में गिरावट आई है.
इनमें से पहले चरण के 100 में से 32 जिले और दूसरे चरण के 61 में से 21 जिले शामिल हैं. हालांकि, बाकी जिलों में बाल लिंगानुपात में वृद्धि हुई है. केंद्रशासित प्रदेशों में गिरावट खास तौर पर तेज रही है. उदाहरण के लिए, निकोबार में, चाइल्ड सेक्स रेशियो साल 2014-15 में प्रति 1000 पुरुषों पर 985 महिलाओं का था, जो साल 2016-17 में गिरकर 839 हो गया. पुदुचेरी के यानम में, यह 2014-15 में 1107 था, जो गिरकर 976 हो गया. सरकार ने क्रमशः अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुदुचेरी को 55 करोड़ रुपये और 46 करोड़ रुपये दिए हैं. सीमित सफलता काफी हद तक सरकार धन को प्रभावी रूप से जारी नहीं किए जाने के कारण है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )