मीडिया ने मुद्दा नहीं बनाया, वरना ‘मेडिकल घोटाला’ ही महाभियोग के लिए काफ़ी था !

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काॅलम Published On :


गिरीश मालवीय

आखिर महाभियोग प्रस्ताव खारिज क्यो नही किया जाना चाहिए था ?

चीफ जस्टिस के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने आनन-फानन में खारिज कर दिया। बहुत सी वजहें इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने की उन्होंने बताई हैं लेकिन एक भी वजह ऐसी नही है जो उन 5 आरोपो में से एक को भी खारिज करती हैं, जो महाभियोग प्रस्ताव पेश करते हुए विपक्षी दलों ने दिए थे

अकेला एक ‘प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट’ वाला केस ही ऐसा केस है जिसके बारे में कोई कानून की अदना सी जानकारी रखने वाला शख्स भी यह कह देगा कि इसमें साफ दिख रहा है कि चीफ जस्टिस की भूमिका इस मामले में बेहद संदेहास्पद है और उन्हें यह कुर्सी नैतिकता के आधार पर ही छोड़ देना चाहिए।

इस मामले में सबसे बड़ी गलती मीडिया की है जिसने अपना रोल सही से नही निभाया ,विपक्षी दलों ने जज लोया के मुद्दे के बजाए ‘प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट’ वाले मुद्दे को सही ढंग से उठाया होता तो देश का हर व्यक्ति महाभियोग के साथ खड़ा होता, इस मामले को आसान भाषा मे समझने का प्रयास करते हैं

एक रोमन उक्ति है ‘नेमो जुडेक्स इन सुआ कॉजा’ जिसका अर्थ है – कोई भी व्यक्ति अपने निजी उद्देश्यों के लिए न्यायाधीश नहीं हो सकता हैं यानी जिस मामले में किसी न्यायाधीश के हित और उद्देश्य निहित हों वहां उसे सुनवाई करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।

प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट वाला मामला बहुत सीधा है केंद्र सरकार ने मानकों को पूरा न करने पर 46 मेडिकल कॉलेजों को आगे एडमिशन लेने के लिए बैन कर दिया था।

प्रसाद ट्रस्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। प्रसाद ट्रस्ट का कहना था कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने उनके मेडिकल कॉलेज में छात्रों के दाखिले लेने पर गलत तरीके से रोक लगा रखीं है, जबकि कॉउंसिल ने दलील दी कि, निरीक्षण के दौरान कॉलेज की सुविधाएं मानकों के अनुरूप नहीं पाई गईं, लिहाजा कॉलेज को आवश्यक मंजूरी नहीं दी गई. काउंसिल ने केंद्र सरकार को रिपोर्ट दी। सरकार ने कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी केंद्र सरकार ने काउंसिल से कहा कि वो कॉलेज की तरफ़ से जमा बैंक गारंटी को इनकैश कर सकता है।

ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में फिर से अपील की। दीपक मिश्रा, अमिताभ रॉय और एएम ख़ानविलकर की खंडपीठ ने केंद्र को फिर से विचार करने को कहा। पीठ ने कहा कि ट्रस्ट के साथ अन्याय हुआ है।

अब यहाँ गौर करिए कि उस वक़्त दीपक मिश्रा चीफ़ जस्टिस नही बने थे, और 46 कॉलेजों में से सिर्फ प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के ही साथ अन्याय की बात कह रहे थे।

अब गेम थोड़ा पलटता है। प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के एक ट्रस्टी बी.पी यादव उड़ीसा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आई.एम क़ुद्दुसी से संपर्क साधते हैं। क़ुद्दुसी को सेट किया जाता है और उन्ही के कहने पर सुप्रीम कोर्ट से मामला वापस लिया जाता है और इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की जाती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस श्री नारायण शुक्ला यह केस सुनते हैं। हाईकोर्ट बैंक गारंटी भुनाने पर रोक लगा देती हैं और आदेश देती है कि मेडिकल कॉलेज में दाख़िले होंगे।

इस फैसले से हड़कंप मच जाता है, मेडिकल काउंसिल सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील करती है। दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ आश्चर्यजनक तेजी दिखाते हुए हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखती है। दीपक मिश्रा की अदालत में फिर एक बार ट्रस्ट के फेवर में फैसला आता है।

लेकिन एक दो दिन के अंदर एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आता है। सीबीआई इस मामले एक एफआईआर दर्ज करती है। एफआईआर के तहत उड़ीसा और इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आई.एम. कुद्दूसी समेत 5 लोगो की गिरफ्तारी की जाती है। दिल्ली के हाई प्रोफाइल पत्रकार से भी पूछताछ की जाती है।

कुद्दूसी पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने न केवल प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को कानूनी मदद मुहैया कराई बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी मामले में मनमाफिक फैसला दिलाने का वादा किया था। इस मामले में एक दलाल का भी नाम सामने आता है जिसका नाम विशम्भर अग्रवाल है,उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाता है। कुद्दुसी और अग्रवाल की टेलीफोनिक बातचीत भी सीबीआई के हाथ लगती है। यह भी पता लगता है कि इस मामले में बड़े पैमाने पर रिश्वत का लेनदेन हुआ है।

सीबीआई की गिरफ्तारी में यह बात सामने आती है कि जो पैसा इकट्ठा हुआ है, वह कुछ जजों को दिया जाने वाला था। परंतु किन जजों को दिया जाने वाला था, इसका खुलासा नहीं हुआ।

अब जो इस मामले में सीबीआई ने जांच रिपोर्ट दी है वह ऐसे ऐसे खुलासे करती है कि जिससे आप इस भारतीय न्याय व्यवस्था पर अपना विश्वास खो सकते हैं।

जाँच रिपोर्ट में लिखा है कि ‘सूत्रों ने यह जानकारी भी दी है कि श्री बीपी यादव, श्री आईएम कुदुस्सी और श्रीमती भावना पांडेय ( पत्रकार ) जस्टिस श्री नारायण शुक्ला को दिए गए गैरकानूनी घूस को वापस दिलाने के लिए मना रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि जस्टिस श्री नारायण शुक्ला ने श्री आईएम कुदुस्सी को यह भरोसा दिलाया कि वे उन्हें मिली घूस का एक हिस्सा जल्दी ही लौटा देंगे.’ ओर भी बहुत सी बातें है लेकिन जब सीबीआई के अधिकारियों ने 6 सितंबर को जस्टिस शुक्ला के खिलाफ एफआईआर करने की इजाजत के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सामने बातचीत की ट्रांस्क्रिप्ट्स एवं अन्य कागजात पेश किए तो, दीपक मिश्रा ने एफआईआर दर्ज करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया, जबकि यदि वे इजाजत देते तो उन्हें रिश्वत के पैसे वापस करते रंगे हाथों पकड़ा जा सकता था।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने जस्टिस शुक्ला को एक अन्य मामले में लम्बी छुट्टी पर भेज कर उस मामले में आंतरिक जांच का आदेश दे दिया, लेकिन प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट वाले मामले में साफ बचा लिया।

इसके आगे की कहानी और भी दिलचस्प हैं उसके बारे मे कभी और लिखूंगा लेकिन सिर्फ इतनी सी जानकारी मीडिया सही ढंग से जनता के सामने लेकर आता तो आज जनदबाव में चीफ जस्टिस को इस्तीफा देना पड़ जाता।

 

गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के जानकार हैं। इंदौर में रहते हैं।