चन्द्र प्रकाश झा
कर्नाटक विधान सभा चुनाव ‘ संपन्न’ कराने की अंतिम तारीख 18 मई है। निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचित कार्यक्रम में यह तारीख ख़ास है । इसमें साफ लिखा है, ‘ तिथि जिसके पूर्व चुनाव प्रक्रिया खत्म हो जानी चाहिये ,18 मई 2018 शुक्रवार। चुनाव ‘संपन्न ‘ कराने में ढेरों कामकाज शामिल है।
लेकिन चुनाव की ‘सम्पन्नता’ या पूर्णाहूति , हम जो भी कहें, नई विधायिका के विधिवत गठन का कार्य निष्पादित होने पर ही होती है। नई सरकार का गठन, अलग प्रक्रिया है जिसकी कोई अंतिम तारीख आम तौर पर मुकर्रर नहीं की जाती है। क्योंकि नए चुनाव के बाद भी नई सरकार का गठन संभव भी है, और नहीं भी संभव है।
देश के दक्षिणवर्ती संघ-राज्य, कर्नाटक के इस बार के विधान सभा चुनाव में किसी पक्ष को कुल 225 सीटों में से कम-से -कम 113 सदस्यों का समर्थन मिल जाता है तो नई सरकार के गठन में कोई अड़चन नहीं आएगी। लेकिन अगर कोई पक्ष इतने सदस्यों का स्पष्ट साधारण बहुमत समर्थन जुटाने में सफल नहीं होता है तो फिर नई सरकार के गठन की प्रक्रिया लम्बी और टेढ़ी भी हो सकती है। चुनावी परिणामों की खीर बहुत टेढ़ी निकली तो सांविधिक उपचार के कई उपाय हैं। इनमें नए सिरे से फिर विधान सभा चुनाव कराने से लेकर वहाँ छह माह तक के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करना शामिल है। राष्ट्रपति शासन के छह माह गुजर जाने पर भी कोई इलाज़ नहीं हो सका तो एक ही क्षण में राष्ट्रपति शासन हटा कर उसे उसी क्षण फिर से और छह माह तक के लिए लागू किया जा सकता है। अगर इन उपायों से भी इलाज़ कारगर नहीं हो सका तो फिर इज़रायल की तरह छह -छह माह अथवा अन्य किसी भी अवधि की चक्करदार (रोटेशनल) सरकार के गठन का गज़ब का उपाय भी है। इसकी नज़ीर हिन्दुस्तान के सबसे बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश में है ही , जो कर्नाटक के काम आ सकता है। निर्वाचन आयोग ने 27 मार्च 2018 को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की, जिसके अनुसार प्रत्याशियों के नामांकन -पत्र दाखिल करने का सिलसिला 17 से 24 अप्रैल तक चला। शनिवार 12 मई को मतदान होगा। मंगलवार 15 मार्च को मतगणना होगी। उसी दिन परिणामों की घोषणा भी होगी।
राज्य में 1985 के बाद से किसी भी दल को सत्ता बरकरार रखने का मौक़ा नहीं मिला है। गौरतलब है कि कर्नाटक ही नहीं किसी भी राज्य के चुनाव में यह सम्भवतः पहला मौक़ा है जब तीनों प्रमुख दलों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने दावेदार चुनाव के पहले ही घोषित कर दिए है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी भी कर्नाटक चुनावों में कुछेक सीटों पर अपनी राजनीतिक किस्मत आज़मा रही है। कम्यूनिस्ट पार्टियां भी कुछेक सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस को अपने विधायकों और अन्य को मिलाकर कुल 122 सदस्यों का बहुमत समर्थन हैं। भाजपा के 43 और जद (सेकूलर ) के 30 सदस्य हैं।
सूक्ष्म प्रबंधन :
लेकिन चुनाव पूर्व और पश्चात के सूक्ष्म प्रबंधन में कांग्रेस से कुछ ज्यादा माहिर हो चुकी , भारतीय जनता पार्टी हर हालत में सरकार बनाना चाहेगी। भले ही वह सरकार केंद्र में प्रथम अटल बिहारी वाजपेई सरकार की तरह ही हो और उससे कुछ ज्यादा या कम दिनों में ही गिर जाए। कांग्रेस जैसे -तैसे राज्य की सत्ता में बनी रहेगी या नहीं इससे ज्यादा अहम सवाल यह हो गया लगता है कि मोदीराज-प्रथम के आखिरी बरस में भाजपा गैर-मुद्दों को शह देकर मतदाताओं का साम्प्रदायिक विभाजन करने के अपने आज़माये हुए नुस्ख़े से जीतने में सफल होती है या नहीं ? इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों ( ईवीएम ) से हेराफेरी करने -करवाने के भाजपा पर लगते आरोप दूर होते हैं या और बढ़ते हैं? गोआ की तरह , कांग्रेस जीती हुई बाजी हारने में और भाजपा हारी हुई बाजी को जीतने में कामयाब होती है अथवा नहीं? इस बार के कर्नाटक चुनाव में कुछ भी शर्तिया नहीं है। और कुछ भी संभव है। हमने इस स्तम्भ के पिछले अंक में यूं ही नहीं पूछा था। कर्नाटक चुनाव के बाद क्या करेंगे ? हमने खुद ही जवाब भी दे दिया था। हवन करेंगे , हवन करेंगे !
मोदी जी का नेपाल दौरा
लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया विजिल पर चुनावी चर्चा में हलके-फुल्के ढंग से हवन की कही गई बात को बड़ी गंभीरता से ले लिया। वह सचमुच में, कर्नाटक चुनाव के लिए 12 मई को मतदान शुरू होने से कुछेक घंटे पहले ही विश्व के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल प्रस्थान कर जाएंगे। नेपाल के नए संविधान के तहत उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिए जाने के बाबजूद कहने के लिए ही सही उसे अभी भी पूर्ववर्ती हिन्दू राष्ट्र तो कहा ही जा सकता है। हम सब जानते हैं कि मोदी जी का इतिहास ज्ञान , अभूतपूर्व है। वह इतिहास में घुस कर अपनी अजीबोगरीब छेड़खानी से कुछ भी कर सकते है. वह बिहार विधान सभा के पिछले चुनाव में पटना रैली में सिकंदर महान को गंगा नदी के रास्ते बिहार पहुंचा कर बिहारियों से हरवा सकते है। वह तक्षशिला विश्वविद्यालय को पाकिस्तान से बिहार स्थानांतरित कर सकते हैं। बिहार के नालंदा विश्विद्यालय के इतिहास पर उनकी छेड़छाड़कारी नज़र नहीं पड़ी वरना उसे नेपाल की इस यात्रा में उपहार के तौर पर सागरमाथा ( माउंट एवरेस्ट ) शिखर पहुंचवा सकते थे। मोदी जी पहली और आखरी बार प्रधानमंत्री के रूप में 2014 में नेपाल गए थे. इस बार की उनकी यात्रा कमोबेश हवनकारी है। 7 मई को नेपाल के गृह मंत्री राम बहादुर थापा ने बताया कि मोदी जी की इस बार की यात्रा ‘ राजनीतिक नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक ‘ है. मोदी जी 11 मई की शाम को जनकपुर पहुंचेंगे. फिर पूजापाठ करेंगे. 12 मई को जिस दिन कर्नाटक में चुनाव होंगे पीएम मोदी नेपाल में एक जनसभा को संबोधित करेंगे। जनसभा में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी, ओली भी होंगे. जनकपुर के बाद पीएम मोदी नेपाल के मुक्तिनाथ मंदिर, पशुपतिनाथ मंदिर आदि अन्य धार्मिक स्थानों का भी दौरा करेंगे।
पोल्स्टर :
पोल्स्टरों ने कर्नाटक विधान सभा चुनाव कार्यक्रम की सांविधिक घोषणा के पहले से ही चुनावी परिणामों को लेकर तीर- तुक्काबाज़ी के अपने करतब दिखाने शुरू कर दिए थे. इस पर अर्ध -विराम तक भी 12 मई को मतदान ख़त्म होने के बाद ही लग सकेगा । यह करतब, एग्जिट पोल के औसत गणितीय –रसायन शास्त्रीय कच्चे डेटा को परखनली में धीमी-तेज आंच पर पकाने और फिर उनके कम्प्युटरी-मानवीय विश्लेषण के अहिर्निश लाइव प्रसारण के महापराक्रम के उपरान्त ही ख़त्म होगा। आनंद बाजार पत्रिका समूह के एबीपी न्यूज़ ने “खबर ” दी है कि उसके किये-कराये सर्वे के मुताबिक़ जनादेश, विखंडित निकलेगा। मतलब किसी भी पक्ष को 224 – सदस्यों की विधान सभा में अपने बूते साधारण बहुमत नहीं मिलेगा। लेकिन कांग्रेस सर्वाधिक 38 प्रतिशत वोट प्राप्त कर और 97 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में आगे रहेगी। भाजपा को 33 प्रतिशत वोट के सहारे 84 सीट मिलने की संभावना है। पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा के जनता दल ( सेकुलर ) को 22 प्रतिशत वोट के साथ 37 सीटें मिल सकती हैं। बाज़ार -प्रायोजित पोल्स्टरों के चुनावी सर्वेक्षण हमेशा की तरह भ्रमित ही कर रहे हैं। इनमें से किसी के अनुसार इस बार किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा और जनादेश विखंडित निकलेगा। किसी और पोल्स्टर के अनुसार भाजपा की जीत की अच्छी संभावना है। पोल्स्टर फर्म सी-फोर ने तो चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि कांग्रेस को पिछली बार से अधिक सीटें मिल सकती हैं और भाजपा की भी सीटें बढ़ेंगी लेकिन जद (सेकूलर ) को नुकसान होगा। आरएसएस के मुखपत्र , आर्गेनाइज़र के पूर्व सम्पादक शेषाद्रि चारी ने दावा किया था कि कांग्रेस के लिंगायत कार्ड खेलने के बावजूद भाजपा ही जीतेगी।
सिद्धरमैया :
सर्वे के मुताबिक़ कर्नाटक की शास्त्रीय राजनीति में विभिन्न दलों की संगत में बैठ खासे सिद्ध हो चुके सिद्धरमैया ही अगले मुख्यमंत्री के लिए 43 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं। कुरबा समुदाय के सिद्धारमैया, जनता दल (सेक्युलर) का गढ़ माने जाने वाले चामुंडेश्वरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जहां वह विभिन्न दलों के प्रत्याशी के रूप में पांच बार जीते और दो बार हारे भी हैं। उन्होंने घोषणा कर दी है कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सिद्दरमैया पर पूरा विश्वास है . राज्य में क़ुरबा समुदाय के मतदाता आठ प्रतिशत माने जाते हैं. एबीपी के सर्वे से संकेत मिले हैं कि लिंगायत समुदाय के वोट कांग्रेस को उतने नहीं मिलेंगे जितने कि मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने इन चुनाव के ऐन पहले लिंगायत मूल के लोगों को हिन्दू से अलग अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने निर्णय कर इसका चुनावी असर भुनाने की सोची थी। उनका 61 प्रतिशत हिस्सा भाजपा के ही साथ खड़ा बताया गया है। राज्य की कुल आबादी में से करीब 20 प्रतिशत हिस्सा लिंगायत समुदाय का है। इस समुदाय का अनुमानित 100 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। सिद्धरमैया ने दावा किया है कि राज्य में जितने भी मठ हैं उन सब का समर्थन कांग्रेस को है।
येदियुरप्पा :
लिंगायत समुदाय के पूर्व मुख्यमंत्री और अगले मुख्यमंत्री के लिए भाजपा के घोषित दावेदार बी.एस येदियुरप्पा को 27 प्रतिशत की पहली पसंद बताया गया है। 75 -वर्षीय येदुरप्पा को भाजपा ने कांग्रेस के लिंगायत कार्ड की तोड़ पेश कर रखी है। उन्हें राज्य में 2009 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीती भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री पद से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण हटना पड़ा था। उन्होंने सत्ता से अपदस्थ होने के बाद अपनी नई पार्टी भी बना ली थी। बाद में उनकी नई पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया गया। येदियुरप्पा को इन आरोपों के कारण न सिर्फ ही मुक्यमंत्री पद से हटना पड़ा था बल्कि अरबों रूपये के भूमि-घोटाले में जेल भी जाना पड़ा था. कर्नाटक के 50 हजार करोड़ रूपये के लौह अयस्क खनन-निर्यात घोटाला में लिप्त कुख्यात तीन बेलारी बंधुओं में से सबसे बड़े जी.जनार्दन रेड्डी खुद चुनाव मैदान में नहीं हैं। लेकिन उनके दोनों अनुज, जी करुणाकरा रेड्डी ( हडपणहल्ली ) और जी सोमशेखर रेड्डी ( बलारी ) भाजपा प्रत्याशी हैं। कुछ खबरें ऐसी भी आयीं है कि येदियुरप्पा को भाजपा से भीतरघात का ख़तरा भी है।
कुमारस्वामी :
मुख्यमंत्री के लिए एक और दावेदार, पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा के पुत्र , एच डी कुमारस्वामी हैं जो मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जनता दल ( सेकुलर ) की और से इस पद के लिए घोषित नेता हैं। उनकी पार्टी को कर्नाटक में राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त है। जनता दल (सेक्युलर) का गठन पूर्व प्रधानमन्त्री एच.डी. देवेगौड़ा ने जुलाई 1999 में जनता दल के विभाजन के बाद किया था। यह दल कर्नाटक और केरल में प्रान्तीय दल के रूप में पंजीकृत है। जनता दल(एस) ने इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन किया है। देवेगौड़ा स्वयं वोकालिगा समुदाय के हैं। वोकालिगा समुदाय के 150 मठ हैं. इनमें अधिकतर दक्षिण कर्नाटक में हैं। कुमारस्वामी के बड़े भाई एच.डी.रेवन्ना भी प्रत्याशी हैं.
चुनाव प्रचार की नग्नता :
इस बीच, चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमन्त्री के रूप में मोदी जी के भाषणों में भाषाई नग्नता निम्नतम स्तर पर पहुँच ही गई। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कह डाला कि राहुल को कुत्तों से देशभक्ति की पाठ सीखनी चाहिए। इसके पहले जब राहुल ने कहा कि वह शैव हैं तो मोदी जी ने उन्हें पांच बार शुद्ध रूप से विश्वेशरैया -विश्वेशरैया का उच्चारण करने की चुनौती दे डाली। विश्वेशरैया भारत के महान अभियंता थे और कर्नाटक के ही थे। मोदी जी ने अपने इतिहास ज्ञान की काल्पनिक उड़ान भरते हुए अपने भाषणों में यहाँ तक कह डाला कि कांग्रेस के नेहरू राज में भारत -चीन युद्ध और कृष्ण मेनन के रक्षा मंत्रित्व काल में कर्नाटक मूल के जेनरल करियप्पा और जेनरल थिमैया के साथ भी बदसलूकी की गई थी। उन्होंने इस कथित बदसलूकी के जो समय सन्दर्भ दिए वे ऐतिहासिक तथ्यों से जांच-परख में सतही निकले।
भाजपा खेमा ने अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रवर्तक मोहम्मद अली जिन्ना की विश्वविद्यालय में लगी तस्वीर हटाने के भगवा पाले की कारगुजारी के पार्श्व में अविभाजित भारत के विभाजन के लिए जिन्ना को दोषी ठहराते हुए भी खूब साम्प्रदायिक जहर उगले। जब ऐतिहासिक साक्ष्यों से रेखांकित किया गया कि अंग्रेज राज में फूट डालो और राज करो की कुनीति के तहत रचे द्वि -राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन जिन्ना के साथ -साथ अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के ‘ वीर ‘ सावरकर ने भी किया था तो भगवा खेमा ने चुप्पी साध ली। भगवा खेमा की तरफ से साम्प्रदायिक विद्वेष की आग उगलने वालों में मोदी -शाह के अलावा केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े, सांसद शोभा करंदलाजे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल रहे। इस खेमा ने टीपू सुलतान के भी खिलाफ विषवमन किया। मुख्यमंत्री सिद्दरामैया ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों भरे चुनावी विज्ञापन देने के लिए मोदी जी , भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आदि के खिलाफ आपराधिक अवमानना की वैधानिक नोटिस भेज मुआवजा के तौर पर 100 करोड़ रुपये और सार्वजनिक माफी मांगते हुए जोर देकर कहा कि उनके विरुद्ध कोई भी आरोप कभी साबित नहीं हुआ है।
(चंद्र प्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)