चन्द्र प्रकाश झा
चुनाव परिणामों के गणित में कांग्रेस भी नहीं जीत सकी है। सच यह है कि वह बुरी तरह हार गई है। लेकिन उसने चुनाव के बाद बड़ी फुर्ती से जो कुछ किया, उसका कर्नाटक ही नहीं , 2019 के आम -चुनाव पर भी गहरा असर पड़ेगा। कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवेगौड़ा के जनता दल -सेकुलर को नई सरकार बनाने के लिए उसके बिना शर्त समर्थन-पत्र की प्रति राज्यपाल को सौंप दी है। यह अगले आम -चुनाव में भारत की राजसत्ता के केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की “केन्द्रीकृतवाद” की जड़ पर असरकारी चोट करने करने का पुख्ता कदम है। यह देश का राजकाज “संघीयतावादी” संविधान के अनुसार चलाने में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ मिलकर मोर्चाबंदी को सुदृढ़ करने की तात्कालिक अनिवार्यता पर कांग्रेस की मुखर सहमति भी है। कांग्रेस की यह सहमति बिहार और उत्तर प्रदेश के पिछले विधान सभा चुनाव में भी दिखी थी। लेकिन बाद में वह कुछ फीकी पड़ गई। कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस की गठबंधन की रेलगाड़ी फिर पटरी पर आ गई लगती है।
हम चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि चुनाव -पश्चात के ‘ सूक्ष्म प्रबंधन ‘ में भाजपा कांग्रेस से कुछ ज्यादा माहिर हो चुकी है। वह हर हालत में नई सरकार बना सकती है। गोवा की तरह कई राज्यों में , कांग्रेस जीती हुई बाजी हारने में और भाजपा हारी हुई बाजी को जीतने में कामयाब हो चुकी है। भाजपा के पास केंद्रीय राजसत्ता का बल ही नहीं धनबल भी है। उसके पास ढेर उपाय हैं .भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के लिए वोट दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि बीजेपी को राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में चुना गया है . उनके सारगर्भित शब्द थे , ” कर्नाटक की विजय असामान्य विजय है. बीजेपी की छवि बना दी गई कि हम हिन्दी भाषी पार्टी हैं. यह गलत है. यह झूठ फैलाने जैसा है. ”
गौरतलब है कि विधान सभा की कुल 224 सीटें हैं। इनमें से दो अभी रिक्त हैं। इसलिए विधान सभा में साधारण बहुमत 113 के बजाय 112 सदस्यों के समर्थन से ही सिद्ध हो जाएगा। निर्वाचन आयोग के मंगलवार देर रात जारी अधिकृत आंकड़ों अनुसार भाजपा को 104, कांग्रेस को 78 और जनता दल- सेकुलर को 37 सीटें मिली हैं। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी और कर्नाटक प्रज्ञयवंथा जनता पार्टी को 1-1 सीटें मिली हैं. एक निर्दलीय भी जीते हैं। मत-प्रतिशत के हिसाब से भाजपा को 36.2 % , कांग्रेस को 38 % जनता दल को 18.3 % वोट मिले। बीजेपी को 2104 लोकसभा चुनाव में 43.4 फ़ीसदी वोट मिले थे यानि करीब 8 फ़ीसदी की गिरावट आई है जो उसके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इस चुनाव में राज्य के कुल 4.97 करोड़ मतदाताओं में से अनुमानित 70 प्रतिशत ने मतदान किये थे। पिछले चुनाव में कर्नाटक में औसतन 70.23 फीसदी मतदान हुआ था।
भाजपा ने चुनाव बाद अपने गड़बड़ चुनावी गणित के बावजूद भारत के इस दक्षिणवर्ती संघ -राज्य की सत्ता में दूसरी बार दाखिल होने के लिए जो राह पकड़ी है वह सही नहीं है। यह राह गणित से लेकर , संसदीय लोकतंत्र के वैश्विक फलक पर विकसित परम्पराओं , विधिक मान्य -सिद्धांतों और अदालती -नज़ीरों तक के भी विरुद्ध है। इस राह पर चलने के अन्तर्निहित खतरे भी है जो उसकी बनने वाली नई क सरकार की सेहत के लिए शायद ठीक नहीं होंगे। भाजपा के नए रणनीतिकारों को भी पता होगा कि कुछ इसी तरह 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में उसकी पहली सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व में बन गई थी। लेकिन वह 13 दिन में ही गिर भी गई थी। श्री देवेगौड़ा उसके बाद ही कायम हुए ‘ संयुक्त मोर्चा ‘ के प्रधानमन्त्री बने थे। भाजपा के नए रणनीतिकारों को शायद यह भी पता होगा कि 1998 के लोकसभा चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी सरकार, सिर्फ एक वोट के अंतर से ही सही, विश्वास मत हार गई थी।
कर्नाटक, दक्षिण भारत का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सत्ता में रह चुकी है। उसकी पहली सरकार 2008 के विधान सभा चुनाव के बाद बनी थी। तब उसको अपने क्षेत्रीय नेता बी एस येद्दियूरप्पा के नेतृत्व में 224 में से 110 सीटें मिली थी। भाजपा इससे पहले, 2004 में भी 79 सीटें जीत विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। लेकिन भाजपा 2013 का चुनाव येद्दियूरप्पा के बगैर लड़ी थी जिन्होंने भाजपा से अलग अपना नया दल बना लिया था। तब भाजपा और जनता दल-सेकुलर को बराबर 40-40 सीटें मिली थी। येद्दियूरप्पा की नई पार्टी को छह सीटें मिली थी। अनुसूचित जनजाति के नेता श्रीरामुलू का अलग गुट भी चार सीटें जीत गया था। येद्दियूरप्पा और श्रीरामुलू दोनों इस बार भाजपा में हैं। भाजपा नेता अनंत कुमार ने कहा है कि उनकी सरकार बहुमत साबित कर देगी। कैसे साबित करेगी ? उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया। लेकिन साफ है कि इसमें विधायकों की खरीद -फरोख्त भी हो सकती है।
कर्नाटक की और चर्चा करने से पहले हम 28 मई को निर्धारित कुछ उपचुनावों का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे जिनमें कर्नाटक की ही दो विधान सभा सीटों के साथ -साथ उत्तर प्रदेश की कैराना और महाराष्ट्र की पालघर लोक सभा सीटों तथा यूपी की नूरपुर और महाराष्ट्र की पालुस -कडेगाँव विधान सभा सीट भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में हाल में गोरखपुर और फूलपुर तथा बिहार की अररिया लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की तरह ही अगर भाजपा ये लोक सभा उपचुनाव भी हार जाती है तो पार्टी का मौजूदा लोकसभा में अपने दम पर हासिल हासिल स्पष्ट बहुमत खतरे में पड़ जाएगा। सदन में भाजपा को स्पीकर, सुमित्रा महाजन के कास्टिंग वोट को मिलाकर 271 सदस्यों का ही समर्थन प्राप्त है जो साधारण बहुमत की संख्या है। वर्ष 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर 282 सीटें जीतकर केन्द्र में अपनी सरकार बनाई थी। लेकिन यह आंकड़ा अब 272 पर सिमट गया है। इसमें अगर भाजपा से निलम्बित कीर्ति आजाद की सीट न जोड़ें तो भाजपा सदन में पहले ही अल्पमत में आ गई है।
कर्नाटक :
कर्नाटक में विधान सभा की दो सीटों , जयानगर और राजराजेश्वरी नगर ( बंगलुरु ) के लिए नए सिरे से अधिसूचित चुनाव कार्यक्रम के तहत 28 मई को मतदान और 31 मई को मतगणना कराई जाएगी . निर्वाचन आयोग ने सभी विधानसभा सीटों पर एकसाथ चालू चुनाव प्रक्रिया , जयानगर सीट पर भाजपा प्रत्याशी एवं निवर्तमान विधायक बी एन विजयकुमार के निधन के कारण और राजराजेश्वरी नगर के जालाहल्ली इलाके में एक आवास से 9746 वोटर कार्ड , फोटो वोटिंग स्लिप , प्रिंटर , लैप्टाप आदि की जब्ती -बरामदगी के मद्देनजर रद्द कर दिए थे। भाजपा ने इसमें क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी का हाथ होने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने वह आवास एक भाजपा- समर्थक का होने का दावा किया है। इस बारे में निर्वाचन आयोग की जांच की घोषणा की गई है
महाराष्ट्र :
पालुस -कडेगाँव : पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता पतंग राव कदम के निधन से पश्चिम महाराष्ट्र के सांगली जिला के पालुस -कडेगाँव की रिक्त विधान सभा सीट पर उपचुनाव लगभग निर्विरोध संपन्न हो जाने की संभावना है क्योंकि इस उपचुनाव में शिवसेना द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन घोषित कर दिए जाने के बाद राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अंतिम क्षणों में अपना प्रत्याशी वापस ले लिया। उन्हीं के पुत्र विश्वजीत कदम कांग्रेस प्रत्याशी है जो 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में पुणे सीट से कांग्रेस के विफल उम्मीदवार थे। राज्य की मौजूदा विधान सभा का कार्यकाल अक्टूबर 2019 तक है.
पालघर : अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित पालघर लोकसभा सीट भाजपा के चिंतामन वंगा के निधन से रिक्त है। उन्हीं के पुत्र श्रीनिवास वंगा इस उपचुनाव में शिव सेना के प्रत्याशी हैं। भाजपा ने कांग्रेस के पूर्व मंत्री एवं सांसद राजेंद्र गावित को और कांग्रेस ने भी एक पूर्व सांसद दामू सिंगड़ा को अपना प्रत्याशी बनाया है। मुंबई महानगरी से संलग्न इस निर्वाचन क्षेत्र में लिजेंड्री गोदावरी पारुलेकर के समय से
कम्युनिस्टों का असर रहा है। इस उपचुनाव में कुल सात प्रत्याशिओं में माकपा के युवा -आदिवासी नेता किरण राजा गेहला , और भाकपा माले के शंकर बड़ते भी शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश
कैराना : यह लोकसभा सीट भाजपा के हुकुम सिंह के गत फरवरी में निधन से रिक्त है। वह क्षेत्र के रसूखदार गूजर नेता थे। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने इस उपचुनाव में उन्ही की पुत्री मृगांका सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। पहले भाजपा के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह के सुपुत्र जयंत चौधरी की संभावित उम्मीदवारी को सांझा विपक्ष का समर्थन मिलने की संभावना व्यक्त की गई थी। लेकिन बाद में बहुजन समाज पार्टी की सांसद रहीं तबस्सुम हसन को भाजपा
-विरोधी महागठबंधन के फार्मूला के तहत रालोद का प्रतयाशी बना दिया गया जिनके पुत्र नाहिद हसन कैराना से ही सपा के विधायक है। कैराना वही जगह बताई जाती है जहां उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की रागमय परंपरा किराना घराने का जन्म हुआ था. कैराना में कुछ समय पहले साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के प्रयास स्थानीय लोगों की सतर्कता ने विफल कर दिए थे।
नूरपुर : यह विधान सभा सीट , भाजपा के विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान के फरवरी 2018 एक सड़क दुर्घटना में मौत से रिक्त हुई है। सपा ने अपना प्रत्याशी नईमुल हसन को बनाया है और उसने चुनावी मुद्दा गन्ना उत्पादकों के बकाये का भुगतान बना दिया है। यह एक वास्तविक मुद्दा है जिसकी काट भाजपा के गैर -मुद्दों से होती नहीं नज़र आती है। भाजपा की महिला प्रत्याशी अवनी सिंह हैं। कांग्रेस ने नूरपुर और कैराना उपचुनाव में भी अपने प्रत्याशी नहीं खड़े किये हैं।
कर्नाटक ब्योरा :
कर्नाटक ही नहीं किसी भी राज्य के चुनाव में यह सम्भवतः पहला मौक़ा था जब तीनों प्रमुख दलों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने दावेदार चुनाव के पहले ही घोषित कर दिए थे। लिंगायत समुदाय के पूर्व मुख्यमंत्री और अगले मुख्यमंत्री के लिए भाजपा के घोषित दावेदार 75 -वर्षीय बी.एस येद्दियुरप्पा अपनी परम्परागत , शिकारीपुर सीट से आठवीं बार जीते हैं। उन्हें राज्य में 2009 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीती भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री पद से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण हटना पड़ा था। उन्होंने बाद नई पार्टी बना ली थी जिसका बाद में भाजपा में विलय कर दिया गया। येद्दियुरप्पा को अरबों रूपये के भूमि-घोटाले में जेल भी जाना पड़ा था. जनता दल -सेकुलर अध्यक्ष एच.डी. कुमारस्वामी रामनगरा सीट से जीते हैं। जनता दल (सेक्युलर) का गठन पूर्व प्रधानमन्त्री एच. डी. देवेगौड़ा ने जुलाई 1999 में जनता दल के विभाजन के बाद किया था। यह दल कर्नाटक और केरल में प्रान्तीय दल के रूप में पंजीकृत है। जनता दल(एस) ने इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन किया था।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतीन्द्र एस ने वरुना सीट जीती है। कर्नाटक की शास्त्रीय राजनीति में विभिन्न दलों की संगत में बैठ खासे सिद्ध हो चुके सिद्धरमैया ने दक्षिण कर्नाटक की चामुंडेश्वरी और उत्तर कर्नाटक में बदामी की दो सीटों से चुनाव लड़ा। लेकिन जीते सिर्फ बदामी से। विवादित रेड्डी बंधु में से जी सोमशेखर रेड्डी बेल्लारी सिटी और जी करुणाकर रेड्डी नेहरपनहल्ली सीट से जीते हैं। कर्नाटक के 50 हजार करोड़ रूपये के लौह अयस्क खनन -निर्यात घोटाला में लिप्त कुख्यात तीन बेलारी बंधुओं में से सबसे बड़े जी जनार्दन रेड्डी इस बार खुद चुनाव मैदान में नहीं थे। कर्नाटक चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने भी कुछेक सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे , सबकी जमानत जब्त हो गई । कम्युनिस्ट पार्टियां भी कुछेक सीट पर चुनाव लड़ीं पर कोई जीत नहीं सकी। नौहेरा शेख नाम की एक महिला ने दुबई के अपने धनबल पर लगभग रातों -रात नई ‘ महिला एम्पावरमेंट पार्टी ‘ खडी कर दी। लेकिन पूरे राज्य में सिर्फ़ 219 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। उनमें से कुछ ही जीत सकी हैं। कुल 1155 प्रत्याशी निर्दलीय थे।
(चंद्र प्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)