जेरूसलम का नया इस्लामी नाम- ‘अल क़ुद्स’

प्रकाश के रे

ख़लीफ़ा हारून और रोमन शासक चार्ल्स के बीच कोई आधिकारिक समझौता तो नहीं हुआ था, पर दोनों तरफ़ से उपहारों के आदान-प्रदान से निकटता का निश्चित संकेत मिलता है. ख़लीफ़ा ने चार्ल्स को एक हाथी के साथ एक विकसित घड़ी भेजी, तो चार्ल्स ने जेरूसलम के सभी ईसाई बाशिंदों का सालाना कर- 850 दीनार- एकमुश्त अदा किया. इसके एवज़ में शहर में ईसाइयों की सारी संपत्ति का ब्यौरा तैयार किया गया और उन्हें सुरक्षा दी गयी. पवित्र सेपुखर के नज़दीक एक ईसाई इलाक़ा बसाने की इजाज़त भी मिली, जिसमें एक मठ, पुस्तकालय, तीर्थयात्रियों के लिए धर्मशाला आदि थे. इसकी देखभाल के लिए 150 साधु और 17 नन हुआ करते थे. चार्ल्स के आदेश पर एक अन्य इलाक़े में खेती, धर्मशाला, बाग़ीचा और बाज़ार भी बनाये गये. उस अब्बासी ख़िलाफ़त में ईसाइयों को जो राहत जेरूसलम में मिली थी, उसके कारण बहुत लम्बे अरसे तक यह माना जाता रहा कि चार्ल्स ने भेष बदलकर कभी इस शहर का दौरा किया था. यह सच नहीं था.

चार्ल्स महान

भले ही चार्ल्स 800 में रोमन साम्राज्य का शासक बना था, पर वह क़रीब चौथाई सदी पहले यूरोप के एक हिस्से का राजा बन चुका था. पश्चिमी और मध्य यूरोप को एक शासन के तहत लाने की उसकी उपलब्धि के कारण उसे ‘यूरोप का पिता’ भी कहा जाता है. ईसाई इतिहास में भी उसकी बड़ी महत्ता है. उसने तमाम क्लासिकल किताबों को बर्बाद होने से बचाने के लिए उनकी नक़ल का अभियान चलाया. इन नक़लों के लिए एक ख़ास लिपि विकसित की गयी, जो आज के टाइप फोंट का पूर्वज माना जाता है. यूरोप में प्राचीन ग्रंथों की जो सबसे पुरानी पांडुलिपियाँ आज मिलती हैं, तक़रीबन वे सभी नौंवी सदी की हैं. उसने पूर्वी रोमन साम्राज्य- बेजेंटाइन साम्राज्य- को भी एक करने की कोशिश की. इसके लिए उसने उस साम्राज्य की साम्राज्ञी इरने के साथ शादी का प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव का बुरा नतीज़ा हुआ और महारानी को उनके दरबारियों और अन्य कुलीनों ने अपदस्थ कर दिया.

चार्ल्स की महिमा में एक बात और ख़ास है कि इसके राज्यारोहण समारोह में पोप लूई ने झुक कर अभिवादन किया था. किसी शासक के आगे झुकनेवाला वह इतिहास का एकमात्र पोप है. रोमन ईसाई परंपरा में प्रार्थना के तौर-तरीक़े स्थापित करने में भी चार्ल्स की बड़ी भूमिका रही थी. यही कारण है कि भले ही 814 में उसकी मौत के बाद उसका साम्राज्य आपसी कलह और बाहरी हमलों में तबाह होता गया, पर चार्ल्स महान की महिमा ईसाई और यूरोपीय इतिहास में हमेशा बनी रही.

हारून का उपहार जलघड़ी

हारून रशीद की चाहे जितनी बड़ाई ईसाई स्रोतों और मान्यताओं में की गयी हो, जेरूसलम समेत सीरिया-पैलेस्टीना के मुसलमानों में उसके लिए नापसंदगी रही. जेरूसलम में जहाँ ईसाई गतिविधियाँ बढ़ती जा रही थीं, वहीं इस्लामी इमारतों और आबादी के लिए बग़दाद कि कोई परवाह नहीं रही. हारून ने तो कभी जेरूसलम की यात्रा भी नहीं की. ऐसे हालात में ईसाइयों और पश्चिमी मानस में यह बेबुनियाद बात घर कर गयी कि ख़लीफ़ा ने जेरूसलम को या कम-से-कम शहर के ईसाई इलाक़ों को चार्ल्स के सुपुर्द कर दिया है. इसी मान्यता के आधार पर तीन सदी बाद एकबार फिर से ताक़तवर यूरोप ने क्रूसेड यानी धर्मयुद्ध के दौरान जेरूसलम पर अपना दावा पेश किया. इसी दौर में जेरूसलम के ईसाइयों के भीतर आपसी झगड़े भी बढ़े और 807 में पूर्वी और पश्चिमी यानी यूनानी और लैटिन ईसाइयों के बीच फ़साद हुए. इस तनातनी के अनेक संस्करण आज तक देखे जाते हैं.

उधर बग़दाद में 809 में ख़लीफ़ा हारून अल-रशीद की मौत हो गयी और अब्बासी सल्तनत पर दख़ल के लिए उनके बेटों में झगड़ा होने लगा. इस संघर्ष में जीत मामून की हुई. इस दौरान यानी 809 से 813 के बीच जेरूसलम के मुसलमानों को अपने हाल पर जीना पड़ा. जब मामून की जीत हुई, तो जेरूसलम को भूकम्प, प्लेग और अकाल के क़हर से दो-चार होना पड़ा. नये ख़लीफ़ा को विज्ञान में ख़ूब दिलचस्पी थी और इसने कई स्तरों पर अपने बाप के काम को आगे बढ़ाया. इसने बग़दाद के मशहूर विज्ञान अकादमी की स्थापना की और दुनिया की गोलाई मापने का आदेश दिया. कस्तुनतुनिया के ख़िलाफ़ एक अभियान के दौरान वह 831 में सीरिया आया और उसने जेरूसलम की यात्रा की. उसने टेम्पल माउंट पर एक नये दरवाज़ों की तामीर ज़रूर करायी, लेकिन डोम ऑफ़ रॉक सोने की चादर भी उसने उतार ली. हज़ार साल से ज़्यादा वक़्त तक वह सुनहरा गुम्बद धूसर दिखता रहा था. जब 1960 के दशक में उसकी सुनहरी चमक तो वापस आ गयी, पर मामून द्वारा अब्द अल-मलिक का जो नाम उस इमारत से मिटाया गया था, उसे नहीं हटाया गया. वह आज भी मौजूद है. लेकिन उसके नाम के साथ जो तारीख़ दर्ज है, वह उमय्यद ख़लीफ़ा अल-मलिक के वक़्त की है.

हारून के दरबार में चार्ल्स के दूत

उस समय एक दिलचस्प वाक़या और हुआ. नौंवी सदी की दूसरी दहाई में प्लेग और अकाल का सबसे बुरा असर जेरूसलम की मुस्लिम आबादी पर पड़ा था क्योंकि हरम के पास स्थित उनके इलाक़े की आबो-हवा शहर के बाक़ी हिस्से से गरम थी. इस कारण वे कुछ समय के लिए शहर छोड़कर चले गये थे. जब वे वापस आये, तो उन्होंने देखा कि भूकम्प से तबाह अनेक ईसाई इमारतों की मरम्मत हो चुकी है और पवित्र सेपुखर का गुम्बद डोम ऑफ़ रॉक के बराबर बना दिया गया है. उन्होंने इसकी शिकायत स्थानीय अधिकारियों से इस आधार पर की कि किसी भी अन्य धर्मावलंबी की इमारत इस्लामी इमारतों से बड़ी नहीं हो सकती है. करेन आर्मस्ट्रॉंग ने लिखा है कि एक मुस्लिम ने ही ईसाई प्रमुख को सलाह दी कि वे आरोप लगानेवालों को यह साबित करने की चुनौती दें कि पहले गुम्बद का आकार अभी के गुम्बद से छोटा था. यह एक मुश्किल काम था और इस सलाह के एवज़ में उस मुस्लिम के परिवार को अगले पचास साल तक ईसाई प्रमुख की तरफ़ से भत्ता मिलता रहा.

बहरहाल, ख़लीफ़ा मामून ने मुस्लिमों की शिकायत को दूर करने के लिए टेम्पल माउंट पर कुछ निर्माण कराया और डोम की मरम्मत करायी. साल 832 में उसने जेरूसलम के सम्मान में एक नया सिक्का जारी किया, जिस पर ‘अल क़ुद्स’ लिखा गया, जिसका मतलब था- पवित्र. यह जेरूसलम का नया इस्लामी नाम था.

ख़लीफ़ा मामून के सिक्के

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है

ग्यारहवीं किस्तकर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

बारहवीं किस्‍त: क्‍या ऑगस्‍टा यूडोकिया बेवफा थी!

तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन

चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना 

पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया 

सोलहवीं क़िस्त: जेरूसलम फिर रोमनों के हाथ में 

सत्रहवीं क़िस्त: गाज़ा में फिलिस्तीनियों की 37 लाशों पर जेरूसलम के अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!

अठारहवीं क़िस्त: आज का जेरूसलम: कुछ ज़रूरी तथ्य एवं आंकड़े 

उन्नीसवीं क़िस्त: इस्लाम में जेरूसलम: गाजा में इस्लाम 

बीसवीं क़िस्त: जेरूसलम में खलीफ़ा उम्र 

इक्कीसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पहुंचा इस्लाम

बाइसवीं क़िस्त: जेरुसलम में सामी पंथों की सहिष्णुता 

तेईसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पर सुनहरा गुम्बद 

चौबीसवीं क़िस्त: तीसरे मंदिर का यहूदी सपना

पचीसवीं किस्‍त: सुनहरे गुंबद की इमारत

छब्‍बीसवीं किस्‍त: टेंपल माउंट से यहूदी फिर बाहर

सत्‍ताईसवीं किस्‍त: अब्‍बासी खुल्‍फा ने जेरूसलम से मुंह मोड़ा

अट्ठाईसवीं किस्‍त: किरदार बदलते रहे, फ़साना वही रहा


कवर फोटो: रबीउल इस्‍लाम

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