सीबीआई वबाल पर 24 घंटे का वक़्त मिला, पर अख़बारों में क्या, क्यों, कैसे का जवाब नहीं!

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संजय कुमार सिंह


आज के अखबारों में तो सीबीआई की ही खबर सबसे प्रमुख होनी थी। ऐसी खबरों के साथ कोई विवाद नहीं रहता है तो सभी अखबार एक से लगते हैं। खबरों में खेल समझने के लिए आज जैसे दिन दिलचस्प और खास महत्व के होते हैं। आइए देखें अखबारों ने इस खबर को कैसे प्रकाशित किया है। मंगलवार की रात सीबीआई में जो कार्रवाई हुई उसका इंतजार बहुत समय से था पर दैनिक जागरण ने उसे स्वच्छता अभियान कहा है और लीड तो बनाया है पर रूटीन लीड खबर की ही तरह है। आज के अखबारों में दैनिक भास्कर ने इस खबर को बेहद विस्तार से छापा है तो नवभारत टाइम्स ने सारे घर के बदल डालूंगा की तर्ज पर जनहित में बड़े पैमाने पर किए गए तबादलों का मजाक उड़ाया है।

अंग्रेजी अखबारों में दिल्ली के हिन्दुस्तान टाइम्स ने शीर्षक लगाया है, “इन नाइट ऑप, सीबीआई लूजेज हेड्स” (रात के अभियान में सीबीआई के दोनों प्रमुख गए)। उपशीर्षक है, फुएड फॉल आउट, बोथ वर्मा, अस्थाना रीमूव्ड; मास ट्रांसफर्स इन पबलिक इंट्रेस्ट (टकराव का नतीजा, वर्मा, अस्थाना दोनों हटाए गए; ‘जनहित’ में सामूहिक तबादले। इसके साथ सिंगल कॉलम में एक खबर है, डायरेक्टर गोज टू टॉप कोर्ट, ऐलेजेज सेंटर इंटरफेयरिंग (निदेशक सर्वोच्च अदालत में गए, आरोप लगाया कि केंद्र हस्तक्षेप कर रहा है)। आज की खबरों में सूचना कम सवाल ज्यादा हैं। सूचना तो पहले ही मिल गई थी। अखबारों में यह होता कि क्या क्यों किया गया तो पाठकों को कुछ नया मिलता। पर ऐसा कुछ नहीं है। यहां तक कि राहुल गांधी के आरोप पर जेटली का जवाब भी संतोषजनक नहीं है जबकि कल ही एक भक्त मित्र ने फेसबुक पोस्ट लिखा था कि राफेल मामले की जांच का आदेश किसी ने दिया नहीं तो सीबीआई निदेशक उसकी जांच कैसे शुरू करते और इसलिए जांच शुरू करने के कारण निदेश को हटाए जाने का आरोप बेमतलब है।

इंडियन ए्क्सप्रेस ने इस खबर को बैनर बनाया है। आठ कॉलम की इसकी खबर का फ्लैग शीर्षक (अनूदित) है, “देर रात के सरकारी आदेश ने निदेशक, विशेष निदेशक को छुट्टी पर भेजा अंतरिम निदेशक के नाम की घोषणा।” मुख्य शीर्षक दिलचस्प है, सेंटर इन सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (सीबीआई) में केंद्र)। खबर शूरू होने से पहले अखबार ने लिखा है, निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, आवश्यक प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, आदेश निरस्त करें। अखबार ने इस मामले में सरकारी पक्ष या वित्त मंत्री जेटली के बयान को उनकी फोटो के साथ दो कॉलम में पूरे विस्तार से छापा है। जो अंदर के पेज पर जारी है। अखबार ने इस खबर के साथ सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के बंगले के गेट की फोटो छापी है। एक्सप्रेस ने मुख्य खबर के साथ एक और खबर छापी है जिसका शीर्षक है, वर्मा को छुट्टी पर भेजने के बाद उनके साथ काम करने वाले अफसरों को शंट किया गया। राकेश अस्थाना के ‘करीबी’ लोगों को वजनदार जिम्मेदारी मिली। एक्सप्रेस ने सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है जिसका शीर्षक है, “मुखिया की मेज पर सात प्रमुख फाइलें थीं जब उन्हें जाने के लिए कहा गया।” कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार के खंडन या स्पष्टीकरण में ऐसे कई सवालों का जवाब नहीं है पर ज्यादातर हिन्दी अखबारों में ये सवाल भी नहीं हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को खबरों के अपने पहले पन्ने से पहले के आधे पन्ने पर बतौर लीड छापा है। मुख्य अखबार की लीड (अगले पन्ने पर) आम्रपाली बिल्डर की खबर है। इस पेज पर नीचे से ऊपर तक आधा विज्ञापन है लिहाजा यह भी अधपन्ना ही है। और इस आधे पन्ने में दिल्ली मेट्रो की भी एक खबर है। सीबीआई की खबर को टाइम्स ऑफ इंडिया ने अधपन्ने में भरपूर छापा है। सारी खबरें एक साथ हैं इनमें कुछ नई बातें भी हैं जो अंग्रेजी हिन्दी के दूसरे अखबारों में प्रमुखता से नहीं मिली। इनमें एक है, नंबर तीन को (पहले दूसरे को हटाने के बाद) नजरअंदाज किया गया, संयुक्त निदेशक राव को इंचार्ज बनाया गया। कोलकाता के द टेलीग्राफ ने इस खबर को सीबीआई मुख्यालय की फोटो के साथ छापा है जो अंधेरा होने के बाद की लग रही है और बिल्डिंग के अंदर की बत्तियां जल रही हैं। इसपर शीर्षक की तरह लिखा है सबसे अंधेरा घंटा। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 24 जून 2013 का एक बयान है, नेशन हैज जो नो फेथ इन इट (सीबीआई) ….। मिडनाइट मेस शीर्षक से एक कॉलम में मंगलवार रात 10 बजे से बुधवार सुबह तक की घटनाओं का विवरण हैं जब आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। टेलीग्राफ ने अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने और वर्मा के सुप्रीम कोर्ट जाने की खबरों को अलग-अलग विस्तार से छापा है।

हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर की मुख्य खबर का शीर्षक है, सीबीआई प्रमुख बोले – जरूरी नहीं हर जांच सरकार के मुताबिक ही चले हमें सरकारी दखल से बचाएं। इसके साथ आलोक ने सात आधार पर दी चुनौती: पीएम, नेता विपक्ष और सीजेआई की कमेटी ही हटा सकती है शीर्षक से सात आधार बताए हैं और इसके साथ एक खबर है, जबरन छुट्टी पर भेजने को सीबीआई प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके नीचे बोल्ड में लिखा है, 55 साल में पहली बार सीबीआई प्रमुख छुट्‌टी पर भेजे गए; राहुल बोले- रफाल की फाइलें मांगने पर हटाया गया। इसके साथ, घटनाक्रम के तीन किरदार शीर्षक से तीन प्रमुख किरदारों एम. नागेश्वर राव, अंतरिम डायरेक्टर, आलोक वर्मा, छुट्‌टी पर भेजे गए डायरेक्टर और राकेश अस्थाना, छुट्‌टी पर भेजे गए नंबर-दो का फोटो के साथ संक्षिप्त परिचय दिया गया है। कुल मिलाकर, इतनी खबरें हैं कि मैं सभी शीर्षक भी नहीं लिख पाया।

दैनिक जागरण ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की सफाई पहले और उसके बगल में राहुल गांधी का आरोप कोट के रूप में छापा है। राहुल का कोट है, “सीबीआई ने राफेल विमान सौदे को लेकर सवाल उठाए थे। निदेशक वर्मा इस मामले की जांच के इच्छुक थे। इसलिए उन्हें रातों-रात हटा दिया गया। राफेल के ईर्द-गिर्द जो आएगा, पीएम उसे हटा देंगे।” जेटली का कोट है, “आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को सीवीसी की सिफारिश पर हटाया गया है। जांच एसेंजी की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए यह जरूरी था। राफेल की जांच के चलते वर्मा को हटाने का आरोप बकवास है। मामले की जांच एसआईटी करेगी।”

नवभारत टाइम्स में लीड के साथ चार और छोटी-छोटी खबरें हैं जिनके शीर्षक हैं, 1) वर्मा और अस्थाना को हटाने के लिए रात में चली मीटिंग 2) नए चीफ ने रात में ही 13 तबादले किए, सुबह 6 बजे दफ्तर पहुंचे 3) विपक्ष ने ऐक्शन को राफेल से जोड़ा, सरकार ने जरूरी बताया और 4) वर्मा कोर्ट पहुंचे, सीबीआई की आजादी में बताया दखल। अमर उजाला ने भी जेटली के जवाब को पहले और राहुल के आरोप को बाद में छापा है। बीच में “सियासत गर्माई” भी लिखा है और दोनों नेताओं की फोटो के साथ खबर छापी है जिसका शीर्षक है, विश्वसनीयता और ईमानदारी के लिए जरूरी था यह कदम : जेटली। दूसरा शीर्षक है, राफेल सौदे के चलते वर्मा को हटाया : राहुल।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं..