उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने से हुए हादसे की खबर आज सभी अखबारों में ‘निर्विवाद लीड’ है। आज अंग्रेजी के पांचों अखबारों में यही खबर लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले का अधपन्ना भी है और यह खबर मुख्य पन्ने पर है यानी दूसरे वाले पहले पन्ने पर। आप इसे मुख्य पन्ना मान सकते हैं लेकिन अखबार हाथ में लेने पर जो पहली खबर दिखती है वह है, भारत के खिलाफ वैश्विक साजिश कामयाब नहीं होगी : प्रधानमंत्री। यह अलग बात है कि इतने बड़े हादसे के बावजूद प्रधानमंत्री का चुनाव प्रचार में लागा होना कितना सामान्य है, यह समझना मुश्किल नहीं है।
आज के अखबारो में अकेले द टेलीग्राफ का शीर्षक है, ग्लेशियर फटने से 125 लापता। जो अखबार रोज शीर्षक में प्रयोग करता है वह खबर को खबर की तरह प्रस्तुत कर रहा है। और इस मायने में यह आज भी दूसरे अखबारों से अलग है। आज की खबर की खास बात यह है कि दो पन बिजली परियोजनाओं में काम कर रहे 170 मजदूर लापता हैं। निश्चित रूप से मुख्य शीर्षक यही होना चाहिए था। बेशक, संपादकों को प्रतिभा और विवेक प्रदर्शन का अधिकार है पर मुख्य बातें प्रमुखता से लिख दी जाएं तो पाठकों को सहूलियत होती है और ढूंढ़ना नहीं पड़ता है लेकिन हादसों में मरने वालों की संख्या शायद ही कभी सभी अखबारों में साफ और एक बताई जाती हो। अखबारों ने 125, 150 या 170 लोगों के लापता होने की सूचना देने वाला सामान्य शीर्षक लगाने की बजाय हिमालयी त्रासदी लिखने जैसी हिमालयी भक्ति दिखाई है।
इंडियन एक्सप्रेस ने फ्लैग शीर्षक में बताया है कि 150 लोग लापता हैं, सात शव मिल चुके हैं और लगातार नजर रख रहा हूं : प्रधानमंत्री। बता चुका हूं कि कि प्रधानमंत्री देश के दो चुनाव वाले राज्यों – असम और पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे और पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी फ्लैग शीर्षक में बताया है कि 7 लोग मर गए, करीब 170 लापता हैं। इसका मुख्य शीर्षक है, हिमालयी त्रासदी। द हिन्दू ने मुख्य शीर्षक में सात लोगों के मारे जाने की जानकारी दी है। उपशीर्षक में 125 लोगों के लापता होने की बात है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर के तीसरे पैरे में लिखा है कि कम से कम सात लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है तथा दो पन बिजली परियोजनाओं में काम कर रहे 170 मजदूर लापता हैं और आशंका है कि बह गए। यह दिलचस्प है कि इंडियन एक्सप्रेस ने 150 लोग लापता हैं और लगातार नजर रख रहा हूं : प्रधानमंत्री – को समान महत्व दिया है।
मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री अगर स्थिति पर लगातार नजर रख रहे थे तो उन्हें पता होगा या उन्हें यह बताया गया होगा या उनके लिए यह जानना मुश्किल नहीं था कि घटना के समय कितने लोगों के काम पर होने की उम्मीद थी और उनमें से कितने बचे हुए हैं या बचाए जा सके हैं या काम पर नहीं गए थे। कितने लोग मर गए या मारे जाने की आशंका है यह भी ऐसी जानकारी है जो उन्होंने मांगी होगी या उन्हें दी गई होगी। यह सूचना इन लोगों के परिवार के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, बताने की जरूरत नहीं है। हादसे के मौके पर यह पक्की सूचना शीघ्रातिशीघ्र तैयार करने की व्यवस्था अभी तक क्यों नहीं है? निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं दूसरी हो सकती हैं पर अखबारों को सही खबर देने की व्यवस्था समेत दूसरे नियम तय नहीं होने के कारण ही प्रधानमंत्री को स्थिति पर स्वयं नजर रखना पड़ता है।
मीडिया के लोग सही ब्रीफिंग की मांग नहीं करते हैं और नेताओं को इसकी जरूरत नहीं लगती। पाठक को जो बता दिया जाए उसी से संतुष्ट रहता है। प्रधानमंत्री को अगर मरने वालों की सही संख्या नहीं मालूम है तो उनके निगरानी करने से आम आदमी का क्या संबंध और यह कैसी खबर? अगर मालूम है तो सिर्फ वही एक संख्या अखबारों को क्यों नहीं बताई गई। इतने बड़े देश में, इतने सारे अखबारों और इतने कायदे कानूनों तथा संसाधनों के बावजूद सूचना देने की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। हादसे की गंभीरता का पता मरने वालों की संख्या से भी लगता है पर अक्सर यह संख्या अलग होती है। संचार और तकनीक के आज के युग में भी अखबार वाले नहीं बताते हैं, छिपाते हैं यह अलग समस्या है। मुझे लगता है कि अनुमान लगाना ही मुश्किल हो तो यह भी साफ-साफ बताया जाना चाहिए। नहीं तो यह जरूर बताया जाना चाहिए कि कितने लोगों के मारे जाने की आशंका किस आधार पर जताई जा रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।