कुछ नहीं था बिग बैंग से पहले! ‘समय’ भी नहीं!

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डॉ.स्कन्द शुक्ल

 

तो बिग-बैंग से पहले क्या था ?

यह एक ऐसा प्रश्न है जो वैज्ञानिकों को कई दशकों से असहज करता आ रहा है। इस विषय में अलग-अलग विचार , अलग-अलग धारणाएँ , अलग-अलग सिद्धान्त प्रचलन में हैं। इनके पक्ष-प्रतिपक्ष में अपनी-अपनी बातें हैं।

एक मत है कि ब्रह्माण्ड का आरम्भ बिग बैंग पर नहीं हुआ था। अर्थात् उसके पहले भी समय का अस्तित्व था। ( और अगर समय उसके पहले था ही , तो आप बिग बैंग की घटना को ‘आरम्भ’ नहीं कह सकते ! ) ऐसा मानने वाले कई विद्वान् यह मत रखते हैं कि हमारा ब्रह्माण्ड किसी अन्य ब्रह्माण्ड के संकुचन से जन्मा है। यानी कोई अन्य ब्रह्माण्ड था , जिसका फैलाव सिकुड़ा और सिकुड़ते-सिकुड़ते एक बिन्दु में जा सिमटा। इस बिन्दु को सैद्धान्तिक भौतिकी सिंग्युलैरिटी के नाम से पुकारती है। 

सिंग्युलैरिटी पर जाकर हमारे सारे भौतिकी के नियम ध्वस्त हो जाते हैं। वह एक न्यूनतम आकार का यूनिडाइमेंशल किन्तु असीम घनत्व का स्थान है। वहाँ न न्यूटन चलते हैं, न आइंस्टाइन। वहाँ प्लैंक का क्वाण्टम भी नहीं चलता। या शायद सभी नियमों को एकीकृत करने पर जो एकीकृत सिद्धान्त भौतिकी गढ़ने के प्रयास में हो, वह चलता हो। हम नहीं जानते। नहीं जानते , इसलिए दावा नहीं कर सकते। 

या शायद पूर्व का वह ब्रह्माण्ड सिकुड़ा हो, लेकिन एक बिन्दु तक न सिमटा हो। पहले ही बढ़ने लगा हो और बढ़ते-बढ़ते आज सा हो गया हो। या फिर यह एक अनवरत चलता क्रम हो जिसमें एक ब्रह्माण्ड सिकुड़ता हो और फिर उससे दूसरा जन्म ले लेता हो। संकुचन-विस्तार , विस्तार-संकुचन , संकुचन-विस्तार , लगातार। 

क्या ब्लैकहोल अपने भीतर कोई ब्रह्माण्ड समेटे हैं? हम नहीं जानते। क्या ब्लैकहोल के भीतर जाना किसी दूसरे ब्रह्माण्ड में जाना है? पता नहीं। क्या इसी तरह से किन्तु इससे विपरीत प्रकृति के ह्वाइट होल भी हैं? जहाँ एक ओर ब्लैक होल अपने पर पड़ने वाली लगभग सारी विकिरण सोख लेता है, ह्वाइट होल लगभग सारी लौटा देता हो ?

क्या एक नहीं अनेक ब्रह्माण्ड हैं जिनके अलग-अलग भौतिकी के नियम हैं ? क्या एक ब्रह्माण्ड के भीतर या उससे दूसरे शिशु-ब्रह्माण्ड जन्मते हैं , जैसे एक कोशिका दो में बँट जाती है? या फिर छोटे ब्रह्माण्ड बड़े ब्रह्माण्डों में बुलबुलों से मिल जाते हैं?

या फिर बिग बैंग से पहले टू-डाइमेंशल वाली ब्रेनें थीं ? ( मस्तिष्क का अँगरेज़ी-रूप ‘ब्रेन (Brain)’ नहीं , यह अलग ही शब्द है — Brane ! ) सतहें जो परस्पर टकरायीं और वर्तमान द्रव्य-ऊर्जा वाली परिस्थितियों का बिंग बैंग के रूप में जन्म हुआ ? 

अलग-अलग मान्यताएँ हैं। लेकिन ये मान्यताएँ ऐरे-गैरे लोगों की नहीं हैं। ये सब वे हैं, जो रात-दिन, सोते-जगते काग़ज़ या वेधशाला में ब्रह्माण्ड-बोध में लगे हैं। ऐसे में मैं या आप कपोलकल्पन को इनके साथ नहीं खड़ा कर सकते। कल्पन का वृक्ष उगाने के लिए भी मृदा चाहिए। वह मृदा या तो विज्ञान देगा या फिर गणित। या फिर दोनों।

तब तक यह समझिए कि ब्रह्माण्ड का जन्म बिग बैंग से स्थापित सत्य है। पीछे का सत्य हमें पता नहीं। बकौल स्टीफ़न हॉकिंग जानने से बहुत अन्तर नहीं पड़ेगा क्योंकि हमारा ब्रह्माण्ड बिग बैंग से ही शुरू होता है।

बिग बैंग- बिग बैंग या ज़ोरदार धमाका, ब्रह्मांड की रचना का एक वैज्ञानिक सिद्धांत है. यह इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करता है कि यह ब्रह्मांड कब और कैसे बना. इस सिद्धांत के अनुसार, कोई 15 अरब वर्ष पहले समस्त भौतिक तत्व और ऊर्जा एक बिंदु में सिमटे हुए थेे. इससे पहले क्या था, यह कोई नहीं जानता. फिर इस बिंदू ने फैलना शुरू किया. बिग बैंग, बम विस्फोट जैसा विस्फोट नहीं था बल्कि इसमें, प्रारंभिक ब्रह्मांड के कण, समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एक दूसरे से दूर भागने लगे. इस सिद्धांत का श्रेय ऐडविन हबल नामक वैज्ञानिक को जाता है जिन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है. जिसका मतलब ये हुआ कि ब्रह्मांड कभी सघन रहा होगा.

तस्वीर- क़्वांटम कॉस्मॉस : ब्रह्माण्ड का जन्म दर्शाती डॉन डिक्सन की कृति।चित्र में डॉन डिक्सन बायीं ओर ब्रेनें दिखा रहे हैं। पतली टू-डाइमेंशनल सतहें या झिल्लियाँ जो बिग बैंग से पहले थीं।



पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।