स्वास्थ्य मंत्रालय ने एनडीटीवी की एक खबर को ‘फेकन्यूज’ कह दिया और पत्रकारिता पर ज्ञान देने वाले जानकारों ने एनडीटीवी को खूब भला-बुरा कहा। अगर मेरी याद्दाश्त सही है तो ऐसा पहले भी किसी खबर के साथ हुआ था। तब भी एनडीटीवी की ओर से कुछ सुनने में नहीं आया पर विरोधी कहते रहे कि एनडीटीवी ने फर्जी खबर चलाई और यह भी कि एनडीटीवी ऐसा करता रहता है आदि-आदि। इस बार भी यह खबर मैंने पढ़ी पर विस्तार से नहीं समझ पाया। यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही थी कि एनडीटीवी इतनी जल्दी दूसरी बार ऐसी खबर देगा और अपनी बात नहीं रखेगा यानी स्वीकार कर लेगा। लगता है एनडीटीवी ने गोएबल्स भक्तों को अपनी शैली में काम करने के लिए छोड़ दिया है और अपने काम से मतलब रखता है। हालांकि, एक दर्शक-पाठक-नागरिक के रूप में मेरे पास इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और ना ही उसमें मेरी दिलचस्पी है। मैं सिर्फ यह जानना चाह रहा था कि कौन सी खबर गलत या फर्जी थी और गलत चल गई तो कैसे चली होगी। जो पता चला वह यही कि सही खबर को स्वास्थ्य मंत्रालय ने फेक न्यूज कह दिया। सरकार हैं, जो कर सकते हैं वह कर लीजिए।
हुआ यह कि स्वास्थ्य मंत्रालय के ब्लू टिक वाले ट्वीटर हैंडल से 9 दिसंबर की शाम 5.49 और फिर 6.00 बजे (11 मिनट के अंतराल पर) दो ट्वीट किए गए जिसे कई लोगों ने रीट्वीट किया। एक जैसे दो ट्वीट के स्क्रीन शॉट में खबर टिकर के रूप में चल रही थी दूसरे में स्क्रीन पर लिखा दिखाया गया था। फेकन्यूज हैशटैग के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय ने लिखा था कि एनडीटीवी द्वारा चलाई जा रही यह खबर फेकन्यूज यानी फर्जी खबर है। खबर सूत्रों के हवाले से थी और आजकल ऐसी खबरें खूब होती हैं। बालाकोट हमले में मरने वाले कथित आतंकवादियों की संख्या से लेकर हमले की शुरुआती खबर और गिनती, इसका आधार मोबाइल फोन की संख्या से बताना – सब सूत्रों के हवाले से था। ऐसी कई सरकारी खबरें हैं जिनकी ना पुष्टि हुई ना खंडन हुआ क्योंकि सूत्रों के हवाले से थी। इनमें चीन सीमा पर विवाद शामिल है और कइयों का खंडन नहीं हुआ या उन्हें फेक न्यूज नहीं कहा गया उल्टे प्रधानमंत्री का बयान गलत साबित हो गया।
आज भी हिन्दुस्तान टाइम्स में सूत्रों के हवाले से एक खबर है कि भारत पुलवामा मामले में डेढ़ साल से भी ज्यादा बाद पाकिस्तान को एक ‘लव लेटर’ लिखने की तैयारी कर रहा है जबकि सूचनाएं मांगने के लिए पहले भेजी गई ऐसी चिट्ठियों का जवाब नहीं आया है। अब इस सरकारी प्रचार का खंडन (या पुष्टि) सरकार नहीं करेगी तो सूत्र ही आधिकारिक प्रवक्ता है या खबर देने वाले मीडिया संस्थान की साख के आधार पर आप उसे सही या गलत मान सकते हैं। ऐसे में, सूत्रों की किसी खबर का, जो सरकारी नहीं है, एक निजी संस्थान से संबंधित है, का स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा खंडन किया जाना मीडिया संस्थान की साख खराब करना ज्यादा है, काम कम। स्वास्थ्य मंत्रालय की विज्ञप्तियां और सूचनाएं उस फुर्ती से नहीं आती हैं जिस फुर्ती से खबर को फेक न्यूज कहा गया।
खबर थी, SOURCES : SERUM INSTITUTE, BHARAT BIOTECH EMERGENCY USE REJECTED. दोनों निजी कंपनियां हैं और कोरोना रोधक वैक्सीन बनाने में लगी हैं। यह सब तब जब भारत सरकार की इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल लिमिटेड 1961 से स्थापित है और कोरोना से संबंधित दवाइयों के मामले में इसका नाम कभी नहीं सुना गया। कंपनी बीमार घोषित है और इसका इलाज करने की जरूरत समझी ही नहीं गई। वैसे तो यह खबर बहुत स्पष्ट नहीं है और जो समझ में आता है वह यही कि आपात इस्तेमाल की अनुमति (अगर थी तो या मांगी गई थी तो मांग) खारिज कर दी गई। अगर यह खबर गलत थी तो सही खबर यही होगी कि अनुमति मिल गई। मिली होती तो क्या दूसरी खबर नहीं होती? ऐसे में किसी खबर को फेक न्यूज प्रचारित करना सरकारी स्तर पर पार्टी की राजनीति करना है।
इस आशय की खबरें हैं कि 9 दिसंबर को इस संबंध में बैठक हुई थी और अनुमति नहीं दी गई। यानी यह मामला ज्यादा से ज्यादा – शब्दों के चयन, अंग्रेजी व्याकरण या हिज्जे का हो सकता है और इस लिहाज से गलत भले हो, फेक न्यूज नहीं है। 9 दिसंबर को लगभग उसी समय मनीकंट्रोल न्यूज ने ट्वीट में कहा था कि सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक की दवाइयों पर विचार ही नहीं हुआ। दोनों कंपनियों से और विवरण मांगे जाने की सूचना थी। इस हिसाब से एनडीटीवी की खबर गलत नहीं है और अंबानी के चैनल पर भी थी जिसका नाम ही नहीं लिया गया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस मामले में न एनडीटीवी ने अपनी खबर का बचाव किया न उसके समर्थकों ने चिन्ता जताई। विरोधियों की चांदी रही पर लोगों ने यह भी पूछा कि कार्रवाई क्यों नहीं?
इससे पहले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 28 नवंबर 2020 को शाम सात बजे प्रेस कांफ्रेंस की थी। इसमें एसआईआई के सीईओ अदर पूनावाला ने पत्रकारों के सवालों में से एक, क्या प्रधानमंत्री के साथ टाइमलाइन (दवा खरीदने बांटने आदि) पर चर्चा हुई … के जवाब में कहा था, …. इमरजेंसी यूज लाइसेंस शेयर मिलने के बाद होगा। इसके लिए डाटा देने की प्रक्रिया चल रही है। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह से होगा। प्रेस कांफ्रेंस से पहले प्रधानमंत्री इस निजी कंपनी का प्लांट देखने गए थे। और उसके बाद की प्रेस कांफ्रेंस के शानदार मौके पर उनसे पूछा गया, प्रधानमंत्री के दौरे के बाद आप क्या उम्मीद करते हैं? जवाब, अभी हमारे पास भारत सरकार से लिखित में कुछ नहीं है। संकेत हैं, जो पूर्व में कहा गया है के आधार पर है।
क्या (इमरजेंसी यूज लाइसेंस के लिए) आवेदन किया जा चुका है? जवाब, हम अगले दो हफ्ते में आवेदन करने की प्रक्रिया में हैं। (इसका सीधा मतलब है कि कंपनी के पास लाइसेंस नहीं है और सीईओ कह रहे हैं कि आवेदन करने की प्रक्रिया चल रही है और अगले दो हफ्ते में आवेदन किया जाएगा। यानी लाइसेंस उसके बाद ही मिलेगा। फिलहाल तो नहीं ही है।) ऐसे में दो हफ्ते से पहले, 9 दिसंबर की एनडीटीवी की खबर गलत कैसे हो सकती है। और गलत होती तो कंपनी को कहना चाहिए था। लाइसेंस पेश कर देना चाहिए था। पर खंडन स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया।
एक और सवाल था, निर्माण स्थल की तैयारी के बारे में पीएम ने क्या कहा? उन्हें सब कुछ पता था और रिकार्ड समय में यह इकाई बनाए जाने से बहुत प्रभावित थे। लाइसेंस शेयर के लिए कुछ हफ्ते इंतजार करना होगा। इसके बाद ही कुछ ठोस निर्णय हो सकेगा। ट्रायल में न सिर्फ अच्छी गुणवत्ता का पता चला बल्कि इसके उपयोग की स्थिति में मरीज को अस्पताल में दाखिल कराने की जरूरत नहीं पड़ी। अगर संक्रमित हो गए तो भी स्थिति गंभीर नहीं होगी। अगर संक्रमित हो भी गए तो दूसरों को संक्रमित करने के मामले में 60 प्रतिशत कमी आएगी। तथ्यों की जानकारी किए बगैर कोई संदेश नहीं दिया जाना चाहिए। खासकर महामारी के इस समय में। हमें वही संदेश देना चाहिए जो जांचा परखा हो।
कहने की जरूरत नहीं है कि पूरा मामला प्रचार का है और लाइसेंस नहीं होने की खबर गलत नहीं थी (कम से कम उस दिन) पर उसे फेक न्यूज बता दिया गया जबकि खंडन यह होता कि ये रहा लाइसेंस या फलां तारीख को लाइसेंस जारी हुआ है। ट्वीटर पर लोगों ने न्यूज18 डॉट कॉम का स्क्रीन शॉट लगाकर पूछा कि इस बारे में क्या कहना है? यह खबर ज्यादा स्पष्ट थी, “सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक को उनके कोविड 19 वैक्सीन के लिए इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन देने से मना कर दिया गया है”। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इस चैनल का नाम नहीं लेने पर भी टिप्पणी थी। और यह तो पूछा ही गया कि खबर को फर्जी बताने की बजाय यह क्यों नहीं कहा जा रहा है कि दोनों कंपनियों के वैक्सीन अधिकृत या स्वीकृत घोषित हुए अथवा नहीं? असली रिपोर्टिंग होती कि स्वास्थ्य मंत्रालय से पूछा जाता पर एनडीटीवी भी क्या-क्या करे?