दीवार ढह गई – डी माउअर इस्त वेग


उज्‍जवल भट्टाचार्य के नियमित साप्‍ताहिक स्‍तंभ का बारहवां अध्‍याय


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काॅलम Published On :

Fall of Berlin Wall 1989 Photo by Carol Guzy/The Washington Post/Getty Images


एरिष होनेकर के इस्तीफ़े के दो-तीन दिन बाद हम श्टुटगार्टसे लौटे. अगले दिन दफ़्तर पहुंचा तो वहां की हालत काफ़ी बदली हुई थी. सुबहविभागाध्यक्षों की मीटिंग होती थी, उसके बाद विभाग में एक छोटी सी मीटिंग में ऊपरके आदेशों की सूचना दी जाती थी, और हम काम में लग जाते थे. यह सिलसिला जारी था,लेकिन ऊपर से अब कोई आदेश नहीं आ रहा था. कुछ सहकर्मी साथियों से बात हुई, सबकाकहना था कि अभी तक कुछ भी बदला नहीं है, लेकिन बहुत कुछ बदलने वाला है. पता चला किअगले दिन काम के बाद रेडियोकर्मियों की एक सभा होगी, जिसे महानिदेशक संबोधितकरेंगे.

महानिदेशक आये. उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा : हम एक ऐतिहासिक समय में जी रहे हैं. केंद्रीय समिति के निर्णय के बाद समाजवाद का एक नया पृष्ठ खुलने जा रहा है. हमें इस बात का ख्याल रखना पड़ेगा कि हम सिर्फ़ दूसरों पर उंगलियां न उठायें, बल्कि अपने अंदर भी झांके. हम रेडियोकर्मी इस तरह की उलटी-पुलटी बातें सुनने के मूड में नहीं थे. उसी सभा में निर्णय लिया गया कि ट्रेड युनियन के नये नेतृत्व का चुनाव होगा, और रेडियो कार्यक्रम की आचार संहिता पर नज़र रखने के लिये पत्रकारों द्वारा गुप्त चुनाव के ज़रिये चुनी गई एक परिषद होगी. इस परिषद के गठन का प्रस्ताव मैंने रखा था. महानिदेशक के विरोध के बावजूद इसे स्वीकार कर लिया गया.

रेडियो के विदेशी कर्मी सहमे हुए थे : होने वाले परिवर्तनों का उनके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा. मुझे सुझाव दिया गया कि विदेशी होने के नाते मुझे हर मामले में उछल-उछलकर सामने नहीं आना चाहिये. खैर, एक हफ़्ते बाद पत्रकारों की परिषद के सात सदस्यों का चुनाव हुआ. युवा दोस्तों की सलाह पर मैं भी उम्मीदवार बना और मेरी जीत हुई. दो हफ़्तों के अंदर हम कार्यक्रम की संरचना पर निर्णय लेने लगे. उन्हें काटने की औकात अब निदेशक मंडल की नहीं रह गई थी.

लाइपज़िग में हर सोमवार को प्रदर्शन जारी था. प्रदर्शन में भागीदारी बढ़ती जा रही थी. दूसरे शहरों में भी प्रदर्शन हो रहे थे.

इस बीच बर्लिन के लेखकों, नाट्यकर्मियों व अन्य संस्कृतिकर्मियों की एक बैठक में निर्णय लिया गया कि 4 नवंबर को पूर्वी बर्लिन के केंद्र आलेक्ज़ांडरप्लात्ज़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निर्धारित करने वाली संविधान की धारा के समर्थन में एक प्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा. अखबारों और जीडीआर टीवी में उसकी मामुली सी चर्चा की गई, लेकिन यह ख़बर आग की तरह चारों ओर फैल गई. शहर में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म था कि इस प्रदर्शन में ज़बरदस्त उपद्रव हो सकते हैं. गुप्तचर विभाग की ओर से अफ़वाह फैलाया गया कि प्रदर्शन से कुछ लोग जलूस बनाकर सीमा पर जाएंगे और वहां तोड़फोड़ करेंगे. बहरहाल, बिना किसी संगठन के इस प्रदर्शन की तैयारियां चलती रही.

यह पहला मौक़ा था कि मैं बर्लिन में इस प्रकार के किसीस्वतःस्फ़ूर्त प्रदर्शन में गया. यह पहला मौक़ा था कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट दल कीभागीदारी के बिना दस लाख लोग सड़क पर उतर आये. उनको संबोधित करते हुए अमरीकी सैनिककी वर्दी में नाज़ी सेना के ख़िलाफ़ लड़ने वाले असंतुष्ट जर्मन लेखक स्तेफ़ान हाइमने घोषणा की : “पिछले हफ़्तों केदौरान हम अपनी ख़ामोशी से उबर चुके हैं और अब हम सीधे खड़े होकर चलना सीख रहे हैं.दोस्तों, यह जर्मनी में होरहा है, जहां अब तक हरक्रांति विफल हो चुकी थी, लोग हमेशा झुकते रहे, सम्राट के सामने, नाज़ियों केसामने, और उसके बाद.लेकिन बोलना, सीधे खड़े होकरचलना, यह काफ़ी नहींहै. आओ, हम राज चलानासीखें. सत्ता किसी व्यक्ति, या कुछ व्यक्तियों, या किसी तंत्र या किसी एक पार्टी की बपौती नहींहै.“

देश के एकीकरण के बाद हुए पहले चुनाव में स्तेफ़ान हाइम पूर्वी जर्मन सत्तारूढ़ दल से उभरी नई वामपंथी पार्टी के सांसद बने थे.

बहरहाल, हाइनर म्युलर भी इस रैली के प्रमुख वक्ताओं में से एक थे. अन्य वक्ताओं के भाषण में एक नये समाजवाद की उम्मीद का जोश था, जबकि हाइनर ने अपने भाषण में वैकल्पिक ट्रेड युनियन के मांगपत्र को पढ़कर सुनाया. इस मांगपत्र में गहरी निराशा की झलक दिख रही थी, जो वहां उपस्थित जनसमूह को तनिक भी न भाया और उन्हें हूट किया जाने लगा. मैं भी हाइनर से बेहद नाराज़ था. हम पोलिटब्युरो की तानाशाही से मुक्त एक उन्मुक्त समाजवाद का निर्माण करना चाहते थे, और यहां निराशा की बात की जा रही थी.

इसी प्रदर्शन में वामपंथी पार्टी के करिश्माई नेता ग्रेगोर गीज़ी पहली बार जनता के सामने आये.

पूरब के कई देशों में पश्चिम जर्मन दूतावासों में शरणार्थियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. पश्चिम की ओर युवाओं का भागना जारी था. सारे देश में प्रदर्शन जारी थे.

एक परिवर्तन यह आया था कि पोलिटब्युरो के सदस्य ग्युंटरशाबोव्स्की हर शाम प्रेस कांफ़्रेस करने लगे थे, जहां वे बिंदास अंदाज़ मेंदेश-विदेश के पत्रकारों के सवालों का जवाब देते थे. 9 नवंबर की शाम को प्रेस कांफ़्रेंस के अंत में उन्होंने सरसरी तौर पर सूचित किया कि पोलिटब्युरो ने फ़ैसला लिया है कि अबसेजीडीआर के हर नागरिक को बेरोकटोक किसी भी देश की यात्रा की सुविधा दी जाएगी. एकपत्रकार ने सवाल किया कि यह फ़ैसला कब से लागू होगा ? जेब से पर्चीनिकालकर उसे पढ़ते हुए शाबोव्स्की ने कहा : तुरंत.

मुझे लगा कि इसका मतलब तो दीवार ख़त्म हो जाना है. खैर, प्रेस कांफ़्रेंस ख़त्म हो चुकी थी.

अगली सुबह मुझे झिंझोड़कर जगाते हुए पत्नी ने उत्तेजना से भरी आवाज़ में कहा : उज्ज्वल, दीवार खुल गई है. दसियो हज़ार लोग खुलेआम पश्चिम जा रहे हैं.

करवट बदलकर सोते हुए मैंने नींदभरी आवाज़ में कहा : हां, पता है.

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