पहला पन्ना: TMC के दलबदलुओं को बचाने के मामले में बीजेपी का प्रचारक बना एक्सप्रेस!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


 

कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के दो मंत्रियों, एक विधायक और एक वरिष्ठ नेता की सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी का मामला असल में क्या है वह बताने की जरूरत नहीं है। आपका नजरिया अलग हो सकता है पर आप भी जानते हैं कि मामला क्या है। ऐसे सामान्य से मामले में अखबार अगर राजनीति करें तो बहुत फूहड़ लगता है। बेशक प्रस्तुति का अंदाज अलग हो सकता है और आप गिरफ्तारी का समर्थन या विरोध कर सकते हैं। तटस्थ भी रह सकते हैं लेकिन उधर जैसी बेशर्मी हो रही है वैसी ही बेशर्मी अखबारों से अपेक्षित नहीं है। इस लिहाज से आज शीर्षक और प्रस्तुति की समीक्षा करने के लिए अच्छा दिन है। मेरी राय अपनी जगह, आप खुद देखिए-समझिए कि इस एक खबर की प्रस्तुति में कितनी विविधता है। 

 

हिन्दुस्तान टाइम्स 

ममता के मंत्रियों की सीबीआई गिरफ्तारी को लेकर भिड़ंत – शीर्षक से तीन कॉलम की खबर है। मुझे लगता है कि यह भिड़ंत भर नहीं है। लेकिन आप ज्यादा विवाद या विस्तार में नहीं जाना चाहें तो सूचना भर है। 

 

टाइम्स ऑफ इंडिया 

मुख्य शीर्षक है, “सीबीआई ने टीएमसी के चार वरिष्ठ नेताओं को 2014 के घूसखोरी कांड में गिरफ्तार किया। इंट्रो है, “निचली अदालत से जमानत मिली पर हाईकोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया।” अखबार ने इसके साथ एक छोटी सी खबर छापी है, “मुझे भी गिरफ्तार कीजिए, दीदी ने सीबीआई के डीआईजी को चुनौती दी।” सिंगल कॉलम की दूसरी खबर है, “नारदा बॉस : सुवेन्दु को क्यों बख्शा?” इतनी खबर से पता चलता है कि दिन भर में निचली अदालत ने जमानत दे दी और उसे हाईकोर्ट ने खारिज भी कर दिया। यह आसामान्य है और इसका विवरण पहले पन्ने पर नहीं है और शायद इसीलिए, राज्यपाल ने कहा, पूरी तरह गैरकानूनी और अराजकता –  पहले पन्ने पर नहीं है। पता नहीं, वे गिरफ्तारी को ऐसा कह रहे हैं या बंगाल की आम हालत को – पर अभी वह पहला पन्ना का विषय नहीं है। 


द हिन्दू 

नारदा घोटाले में चार गिरफ्तार इनमें दो टीएमसी के मंत्री, वे कल तक हिरासत में रहेंगे।” इस मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया की शैली ज्यादा सूचना देती है और निष्पक्ष भी लगती है। आज के समय में अदालतें जब अलग आदमी के लिए अलग फैसला दे रही हैं तो मीडिया का काम उन्हें रेखांकित करना भी है। हालांकि, निश्चित स्थान में सही शीर्षक लगाना मुश्किल काम है और आजकल अखबारों में शीर्षक के अनुसार जगह बनाना दूसरी मुसीबत है। ‘द हिन्दू’ ने इसके साथ सिंगल कॉलम में छोटी सी तस्वीर लगाई है, इसका कैप्शन है, “ममता बनर्जी सोमवार को कोलकाता में सीबीआई मुख्यालय से निकलते हुए।” यहां भी मुझे लगता है कि टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक यहां कैप्शन होता जो सूचना ज्यादा होती। इस कैप्शन से पता नहीं चल रहा है कि वे अपने नेताओं के समर्थन में गई थीं या अभियुक्त हैं। हालांकि, मामला सबको पता है लेकिन उनके वहां जाने को अखबार किस नजरिए से देख रहा है यह साफ नहीं है। यह तटस्थ रहना है। इंडियन एक्सप्रेस की तरह नहीं कह रहा है कि, (वे अपना काम छोड़कर) छह घंटे सीबीआई कार्यालय में रहीं।” उनके मंत्री, उनकी पार्टी के विधायक हैं तो जायेंगी और गयी थीं यह भी एक महत्वपूर्ण सूचना है। हालांकि, हिन्दू ने अपनी मुख्य खबर के साथ एक और खबर दी है जो ज्यादा महत्वपूर्ण है और अभी तक इतनी प्रमुखता से नहीं दिखी। मुख्य खबर के साथ हिन्दू में एक शीर्षक है, “सीबीआई की कार्रवाई युद्ध की घोषणा है : यशवंत सिन्हा।” मेरी समझ से यह सीबीआई की कार्रवाई पर तृणमूल की प्रतिक्रिया है। इसलिए इसे महत्व मिलना चाहिए था।   

 

इंडियन एक्सप्रेस 

मेरे पांच अखबारों में अकेला है जिसमें यह खबर लीड है। जगह ज्यादा दी गई है इसलिए बहुत कुछ बहुत साफ है और यह सब बताते हुए यह भाजपा का मुखपत्र लगता है। यह एक्सप्रेस के खिलाफ मेरा पूर्वग्रह हो सकता है पर वह निराधार नहीं है और ऐसे कारण मैं रोज बताता हूं। आज भी यह किसी और अखबार में, कोलकाता के द टेलीग्राफ में भी लीड नहीं है तो इंडियन एक्सप्रेस में लीड होना जरूरत से ज्यादा महत्व देना है। निश्चित रूप से कोई खबर उस दिन की दूसरी खबरों के मुकाबले महत्वपूर्ण या कम महत्वपूर्ण होती है। दूसरी कोई बड़ी खबर न हो तो तुलनात्मक रूप से कम महत्वपूर्ण खबर को लीड बनाना पड़ता है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की प्रस्तुति ऐसी नहीं है। यह सीधे-सीधे भाजपा मुख्यालय से रिपोर्टिंग करना है। मैं बताता हूं क्यों? अखबार ने शीर्षक में बताया है 1) मुख्यमंत्री छह घंटे सीबीआई कार्यालय में रहीं,  2) राज्य सरकार चाहती है कि सुनवाई राज्य के बाहर हो, हाईकोर्ट में सुनवाई कल है। अखबार ने नहीं बताया है कि – एक ही दिन में निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। हाईकोर्ट में सुनवाई आज नहीं, कल है। बाकी चीजें भी शीर्षक में नहीं है जिसकी चर्चा मैं पहले कर चुका हूं। 

इस मामले में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि दलबदलुओं को क्यों छोड़ दिया गया। भाजपा को एक राजनीतिक दल के रूप में जवाब देना चाहिए था। पर जवाब सीबीआई ने ही दिया है और उसे प्रचारित इंडियन एक्सप्रेस ने किया है। खबर के अनुसार सुवेन्दु अधिकारी (विधायक हैं) के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति राज्यपाल से नहीं मिली है और मुकुल राय के मामले में अनुमति मांगी ही नहीं गई। पूरा खेल तो यहीं है और खबर भी यही है कि केंद्र सरकार के घोषित प्रतिनिधि राज्यपाल ने तृणमूल के पूर्व नेता और दलबदलू एक भाजपा नेता के खिलाफ जांच की अनुमति नहीं दी और सीबीआई ने दूसरे के खिलाफ मांगी ही नहीं। तथ्य यह भी कि 2016 में दाखिल चार्जशीट में दोनों के नाम ही नहीं हैं जबकि एफआईआर में नाम था। इसके अलावा, दिसंबर में अधिकारी के दल बदलने के बाद स्टिंग का वीडियो भाजपा के यू ट्यूब चैनल से हटाया जा चुका है। आप समझ सकते हैं कि वास्तविकता क्या है और रिपोर्टिंग क्या है या नहीं है। नहीं होना सरकारी पार्टी का समर्थन है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा विधायकों के मामले में विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति भी ली जानी चाहिए सो नहीं ली गई पर उसका जिक्र एक्सप्रेस ने उसी ताकत से नहीं किया है।  

 

द टेलीग्राफ 

कोलकाता के द टेलीग्राफ में राज्य के दो मंत्री, एक विधायक और एक वरिष्ठ तृणमूल नेता की गिरफ्तारी की खबर लीड नहीं है। यहां लीड के शीर्षक का निकटतम हिन्दी अनुवाद होगा, “बुरी तरह हारे, पर मान नहीं रहे।” उपशीर्षक है, “केंद्र ने कोशिश की पर अव्यवस्था से ध्यान नहीं हटा पाई!”  इसके नीचे एक तस्वीर है जिसका कैप्शन है, “रविवार को उत्तर प्रदेश के जेवर जिले में मेवला गोपालगढ़ गांव के एक अस्थायी, क्लिनिक में पेड़ की एक शाखा से लटका इंफ्यूजन बैग। कोविड-19 से घिरे इस गांव में खुले आसमान के नीचे क्लिनिक बनाया गया है। बीमार पेड़ के नीचे चारपाई पर लेटे हैं, पास ही गायें चर रही हैं और जमीन पर सीरिंज व दवाई के खाली पैकेट बिखरे पड़े हैं। कार के जरिए दिल्ली से 90 मिनट की दूरी पर स्थित मेवला गोपालगढ़ में कोई डॉक्टर या स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। यह तस्वीर रायटर्स के दानिश सिद्दीक की है और अंग्रेजी से अनुवाद मेरा। गिरफ्तारी की खबर फोल्ड के नीचे है। इसका शीर्षक है, “दो मंत्रियों को गिरफ्तार किया”, इंट्रो है, “हाईकोर्ट ने जमानत आदेश को स्टे कर दिया, सुनवाई कल।” इसके साथ की खबर का शीर्षक है, “दो सौभाग्यशाली दलबदलू जुड़वें।” यह उन दो लोगों की खबर है जिनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अनुमति नहीं मिली या मांगी नहीं गई। 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर से साफ है कि असली खबर यही है कि कैसे दल बदल कर भाजपा में आने वालों को बचाया गया। इंडियन एक्सप्रेस ऐसी ही सत्ता विरोधी खबरें करने के लिए जाना जाता था। आप समझ सकते हैं कि अब पत्रकारिता का क्या हाल हो गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार का कोविड प्रबंध चौपट है और गिरफ्तारियों या दो जनों को छोड़ दिए जाने से सबका ध्यान उधर से हट गया है। हो सकता है यह सब इसीलिए किया गया हो पर बताएगा कौन?   

ऐसा नहीं है कि आज लीड बनाने लायक कोई दूसरी खबर थी ही नहीं और इंडियन एक्सप्रेस ने गिरफ्तारी और गिरफ्तारी न होने की खबरों को महत्व दिया है तथा वह सामान्य है। मुझे लगता है कि गिरफ्तारी नहीं होने के कारण को लीड बनाया होता तो इंडियन एक्सप्रेस में अपने मूल चरित्र में रहता। जैसे द टेलीग्राफ ने किया है। आज बाकी के तीन अखबारों में देश के पश्चिमी तट पर आए समुद्री तूफान की खबर लीड है। इससे मुंबई भी प्रभावित हुआ है और इंडियन एक्सप्रेस में भी यह सेकेंड लीड है। इंडियन एक्सप्रेस में एक और खबर है, हाईकोर्ट ने कहा, “उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों, गांवों में मेडिकल सिस्टम राम भरोसेहैं।” यही नहीं, सरकार का प्रचार करने वाली एक खबर भी एक्सप्रेस के पास है। एंकर छपी इस खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री कार्यालय देख रहा है ….।”

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।