भारत सरकार की प्रतिशोधपूर्ण कार्रवाई के कारण एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया (एआईआई) ने भारत में मानवाधिकारों की रक्षा का काम रोक दिया है। एआईआई ने कल यह जानकारी ट्वीट कर दी थी। इंडियन एक्सप्रेस ने आज इस खबर को पहले पन्ने पर छापा है। शीर्षक है, ”प्रवर्तन निदेशालय ने खाते जब्त किए, एमेनेस्टी ने भारत में अपने कार्यालय बंद किए।” द टेलीग्राफ का शीर्षक है, ”ऐमेनेस्टी को दौड़ाकर भगा दिया गया।” देश में इमरजेंसी नहीं लगने के बावजूद लोकतंत्र का जो हाल है और उसमें अगर ऐमेनेस्टी इंटरनेशनल को भारत में अपना काम समेटना पड़ रहा है तो यह मरते लोकतंत्र का सबूत है। पर यह खबर कई अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है।
ऐमेनेस्टी के खिलाफ कार्रवाई और प्रतिक्रिया स्वरूप काम बंद करने की यह खबर तब आई है जब कल ही साकेत गोखले ने ट्वीट किया था कि गृहमंत्रालय ने भारत के वीर फंड से संबंधित रिटर्न फाइल नहीं किया है। पुलवामा हमले के बाद इसकी शुरुआत अक्षय कुमार ने की थी जिसे बाद में गृह मंत्रालय ने अपने नियंत्रण में ले लिया। इसमें देश विदेश से भारी धन जमा हुआ है। गए साल दिसंबर में दाखिल किया जाने वाला 2018-19 का एफसीआरए रिटर्न अभी तक दाखिल नहीं हुआ है। एफसी-4 रिटर्न फाइल नहीं होने पर एफसीआरए रद्द होने का प्रावधान है। यह विडंबना ही है कि एफसीआरए के तहत अनुमति गृह मंत्रालय देता है और उसके ही फंड का रिटर्न फाइल नहीं हुआ है।
Another “fund scam” by Modi govt:
“Bharat Ke Veer” Fund (started by Akshay Kumar) was taken over by Home Ministry. It raised massive donations from India & overseas after Pulwama attack.
Strangely, the fund hasn’t filed FCRA returns for 2018-19 due in December last year.
(1/2) pic.twitter.com/OJSwrOSPb7
— Saket Gokhale (@SaketGokhale) September 29, 2020
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार गृहमंत्रालय ने कहा है कि एमेनेस्टी को एफसीआरए [विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम] के तहत सन 2000 में सिर्फ एक बार अनुमति दी गई थी और उसके बाद से मना किया जाता रहा है। मैंने एफसीआरए की हिन्दी देखने के लिए गूगल किया तो पता चला कि यह 2010 का कानून है। इसके तहत 2000 में अनुमति की बात समझ में नहीं आई। पर अभी उसे छोड़ता हूं। खबर में लिखा है कि एक ही बार अनुमति दी गई थी – पर कितने साल के लिए – यह नहीं लिखा है। क्या किसी विदेशी संस्था को भारत में काम करने के लिए हर साल अनुमति लेनी होती है। अगर ऐसा नियम होगा तो को कोई काम करेगा, कर पाएगा, विदेशी निवेश आएगा? मैं नहीं जानता अभी उसे भी छोड़ता हूं।
मान लेता हूं कि उसे हर साल या पांच साल पर या 10 साल पर अनुमति का नवीकरण कराना था। खबर में लिखा है कि उसे मना किया जाता रहा। यूपीए शासन में भी। अगर ऐसा है तो 20 साल से क्यों चल रहा था? पता नहीं। जाहिर है, यह सब उसे परेशान करने का बहाना है। नहीं भी हो तो अभी क्यों लागू किया गया? अगर ऐसे नियम होंगे और ऐसे लागू किए जाएंगे तो क्या विदेशी निवेश आएगा? विदेश में भारत की क्या छवि बनेगी? क्या ऐसे काम करना देश सेवा है, देश भक्ति है? हालांकि, वह अलग मुद्दा है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार गृहमंत्रालय ने आरोप लगाया है कि ऐमेनेस्टी यूके ने नियमों का उल्लंघन करके भारत में पंजीकृत चार इकाइयों को बड़ी राशि का भुगतान किया और उसे एफडीआई बताया। एक्सप्रेस ने लिखा है – ऐमेनेस्टी इंडिया के खिलाफ सरकार का मामला मोटे तौर पर दो जांच पर टिका हुआ है। एक विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के तहत गड़बड़ी (उपर फेमा ही होना चाहिए, पता नहीं गलती अखबार की है या गृहमंत्रालय की) और एक दूसरा मामला सीबीआई ने दर्ज कराया है जो एफसीआरए के उल्लंघन का है।
प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में बेंगलुरु में ऐमेनेस्टी के परिसर पर छापा मारने के बाद यह आरोप लगाया था कि ऐमेनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एआईआईपीएल) के नाम से एक कमर्शियल शाखा बनाई गई है। कथित रूप से एफसीआरए नियमों का उल्लंघन करके विदेशी धन प्राप्त करने के लिए। जो लोग कंपनी बनाना (कागजी और शेल कंपनियां भी) या बनवाना जानते हैं वो समझ सकते हैं कि ऐमेनेस्टी ने यह कंपनी अगर गलत थी तो बनवा कैसे ली? क्या इसमें किसी भारतीय सरकारी अधिकारी की मिलीभगत नहीं होगी?
पहली नजर में ही यह सब परेशान करने का मामला लगता है। और यही ऐमेनेस्टी का आरोप है। वैसे भी अगर विदेश से पैसे आए हैं उनसे जनहित का काम हो रहा है (सरकार विरोधी ही सही) तो संस्था को परेशान करना और इतना परेशान करना कि वह अपना काम ही समेट ले, शर्मनाक है। द टेलीग्राफ के मुताबिक ऐमेनेस्टी के अविनाश कुमार ने कहा है कि एक ऐसी संस्था जिसने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा कुछ नहीं किया है, उस पर यह नवीनतम हमला विरोध को रोकने के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि ऐमेनेस्टी ने यह भी कहा है कि ऑफिस बंद होने का मतलब मानवाधिकार के प्रति ऐमेनेस्टी इंडिया की प्रतिबद्धता खत्म होना नहीं है। हम सरकार के हमलों से शांत नहीं
होंगे।
.@USCIRF is concerned by reports of the halting of operations of @AIIndia, particularly since it appears related to @Amnesty‘s investigations into and reporting on religious freedom violations in #India. https://t.co/HMGW0GcaQ4
— USCIRF (@USCIRF) September 29, 2020
एक्सप्रेस ने सोशल मीडिया पर ऐमेनेस्टी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आकाश पटेल के लिखे के हवाले से बताया है, ऐमेनेस्टी को सजा नहीं हुई है, ना उसके खिलाफ किसी अदालत में ट्रायल चल रहा है। दूसरी ओर, ऐमेनेस्टी ने जो काम किए हैं और जो उसे नहीं करने दिया गया उनमें कुछ इस प्रकार हैं (एक्सप्रेस की खबर से)
- जून 2019 में ऐमेनेस्टी को श्रीनगर में प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने दिया गया
- ऐमेनेस्टी ने असम में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स की भूमिका पर रिपोर्ट जारी की थी
- इसने भीमा कोरेगांव मामला भी हाथ में लिया था
- हाल में ऐमेनेस्टी ने धारा 370 हटाए जाने के बाद एक साल पूरे होने पर रिपोर्ट जारी की थी
- फरवरी में दिल्ली दंगों पर भी अपनी रिपोर्ट जारी की है
एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, गृहमंत्रालय ने इस मामले में यह भी कहा है कि भारत स्थापित कानून के तहत देसी राजनीतिक बहस में विदेशी दान से चलने वाली इकाइयों के हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देता है। यह मामला विवादास्पद रहा है और इसे रोकने के लिए विदेशी दान या चंदा को 2010 में बने नियम से रोका जाता है। यह देखा जाना चाहिए कि यह प्रतिबंध संविधान की मूल भावना के अनुकूल है कि नहीं। एनजीओ इंसाफ (इंडिया सोशल एक्शन फोरम) की याचिका में फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए), 2010 और अन्य नियमों की धारा 5 (1) और 5 (4) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इसी कानून के तहत केंद्र सरकार ने गैर सरकारी संगठनों की विदेशी फंडिंग को रोक रखा है। कानून के मुताबिक, केंद्र सरकार किसी भी ऐसे संगठन की रोकथाम करेगी जो एक राजनीतिक दल न होते हुए भी राजनीतिक दल के तौर पर काम कर रहा हो। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो संगठन सक्रिय राजनीति या दलगत राजनीति में संलिप्त नहीं हैं, वो एफसीआरए के नियम तीन (छह) के दायरे में नहीं आते हैं। दूसरी ओर,
- झूठ और गलत बोलने वाला प्रधानमंत्री बन सकता है
- पूर्व तड़ीपार गृहमंत्री बन सकता है
- सरकार मनमाने कानून बना सकती है
- सरकार जिसे चाहे नागरिकता दे सकती है
- मनमाने तौर पर छीनना भी चाहती है
- अच्छे फ्लोर मैनेजर होने के लिए प्रशंसा मिलती है
- निरपराध लोगों को बंद किया जा सकता है
- अदालत से छूटने में वर्षों-महीने लगते हैं
- कोई मुआवजा नहीं मिलता है
- शायद कभी किसी दोषी अफसर को सजा होती है
- विदेश में बहुत सारा काला धन पड़ा था
- उसे वापस लाने पर छह साल से कोई बात नहीं है
- देश की आर्थिक स्थिति खराब है, बेरोजगारी है
- लोग आत्म हत्या कर रहे हैं, इलाज बिना मर रहे हैं
- सरकार को विदेशी निवेश चाहिए
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि जनहित में काम करने वाले संगठनों को विदेशी मदद लेने से नहीं रोक सकते। 06 मार्च 2020 की आईएएनएस की एक खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संगठन सक्रिय राजनीति या दलगत राजनीति से नहीं जुड़ा है, लेकिन जनहित के लिए ‘बंद’, ‘हड़ताल’ इत्यादि जैसे वैध तरीकों का समर्थन करता है तो उसे राजनीतिक संगठन घोषित कर विदेशी धन प्राप्त करने से रोका नहीं जा सकता है। शीर्ष अदालत ने, हालांकि, यह भी स्पष्ट कर दिया था कि राजनीतिक दलों द्वारा विदेशी चंदे को प्रसारित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली संस्थाएं इस संबंध में ठोस सामग्री होने पर विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कानून से बच नहीं सकती हैं।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि किसी संगठन को विदेशी धन प्राप्त करने से रोकने के लिए केंद्र सरकार को इस कानून के नियमों और प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘प्रावधानों से ही यह स्पष्ट है कि बंद, हड़ताल, रास्ता रोको इत्यादि को राजनीतिक कार्रवाई के सामान्य तरीके के रूप में लिया जाता है। लेकिन कोई भी संगठन जो बिना किसी राजनीतिक लक्ष्य के अपने अधिकारों के लिए धरना प्रदर्शन करने वाले लोगों का समर्थन करता है तो उसे राजनीतिक प्रवृति का संगठन घोषित कर उसे दंडित नहीं किया जा सकता।’ इसके बावजूद सरकार की मनमानी जारी है।
दूसरी ओर देश के पूर्व गृहमंत्री की बेटी, पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी रही महबूबा मुफ्ती पबलिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) के तहत जेल में बंद हैं। कौन कब देश भक्त है और कौन कब देश विरोधी हो गया यह कौन कैसे तय करेगा? क्या यह अनैतिक नहीं है कि सत्ता में आने के बाद पूर्व सीएजी से लेकर जज और पुलिस अधिकारी तक को पुरस्कृत करने वाली पार्टी ने अपने स्वार्थ में महबूबा के साथ मिलकर सरकार बना ली और फिर उन्हें ही बिना किसी आरोप के पीएसए के तहत एक साल से ज्यादा समय से जेल में रखे हुए है। या तो भाजपा तब गलत थी या अब है। दोनों बार महबूबा गलत नहीं हो सकती हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा सरकार कभी गलत हो ही नहीं सकती।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।