दक्षिण अफ्रीका में सदियों से रंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रहे नेल्सन रोलीह्लला मंडेला (18 जुलाई1918– 5 दिसम्बर 2013) ने 27 बरस रॉबेन द्वीप के कारागार में कोयला खनिक के रूप में बिताये। विश्व जनमत के दबाब में 1990 में वहाँ की श्वेत सरकार के साथ हुए समझौते के बाद उन्हें छोड़ा गया। देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कहा था कि वह भारत का संविधान गोद लेना चाहते है।
नेपाल का नया सविधान तब तक नहीं बना था। इसे कम्युनिस्टों के गढ़ माने जाने वाले नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र रहे और बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने डाक्टर बाबूराम भट्टराई ने तैयार किया था। वरना शायद मंडेला कहते भारत का संविधान भारत को मुबारक हो ‘ समकालीन तीसरी दुनिया‘ के हम सब उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं को नेपाल का ही नया संविधान चाहिए। मंडेला गजब थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनके जन्म दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित कर रखा है।
नेपाल के 2017 के पिछले चुनाव के अर्थ
नेपाल में 2017 में भी ‘ कम्युनिस्ट क्रान्ति ‘ नही हुई थी। पर उनकी पार्टियो ने ‘ इंडिया दैट इज़ भारत ‘ और पीपुल्स रिपब्लिक औफ चाइना से घिरे इस हिमालई नवोदित सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक सेक्युलर गणराज्य में चुनाव जीत दर्ज कर ली। वे पहले भी नेपाल की राजसत्ता पर काबिज होती रही हैं.
कम्युनिस्टों को नेपाल में दिसम्बर 2017 के चुनाव में वहाँ की संसद के भारत के लोकसभा की तरह के निम्न सदन, प्रतिनिधि सभा की कुल 275 सीटों में स्पष्ट बहुमत से भी ज्यादा दो-तिहाई बहुमत मिला था। नेपाल के नये संविधान के तहत प्रतिनिधि सभा की 165 सीटों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं.शेष 110 सीटों के वास्ते अप्रत्यक्ष तौर पर समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली( लिस्ट सिस्ट्म) से चुनाव होते हैं. यही नेपाल के नए संविधान की जान है जो भारत के संविधान में सिरे से गायब है।
नेपाल में यह जीत प्रचंड के नेतृत्व वाले माओवादियों का नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी के साथ विलय का नतीजा था जिसके बाद 2018 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में आयी थी। खडग प्रसाद शर्मा ओली (केपी) प्रधानमंत्री बतौर सरकार के मुखिया बने और पूर्व माओवलादी नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड पार्टी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में आ गये। पर दोनों गुटों के मिलने के बावजूद दिल मिलना संभव नहीं हो पाया। ओली के अलावा प्रचंड भी पार्टी के सहचेयरमैन थे। ओली उन्हें लेकर हमेशा सशंकित थे। वैचारिक मतभेद बढ़ते ही जा रहे थे। जिसके नतीजे में विभाजन की स्थिति पैदा हुई।
ओली जी को अपनी सरकार को हासिल बहुमत और नही टिकने की आशंका हो गई। उन्होंने सियासी बाजी में बतौर नई चाल अप्रत्याशित रूप से सदन को भंग कर नए चुनाव की कोशिश करने कदम उठा लिया। यह लोकतांत्रिक नेपाल में अपनी ही सरकार को गिराने का पहला मौका था। शतरंज की भाषा में इसे *किंग्स गैंबिट* कह सकते हैं। ओली जी ने एक तरह से खुद को दांव पर लगा दिया।
कोरोना कोविड की लहर के दौरान ओली सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति श्रीमति बिद्या देवी भण्डारी ने 22 मई को संसद के निचले सदन, प्रतिनिधि सभा को एक बार फिर भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने का आदेश दे दिया।
संविधान और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चुनाव कराने के राष्ट्रपति के कदम की कड़ी आलोचना की। विपक्ष के लगभग सभी दलों ने इस कदम को असांविधानिक ही नहीं अमानवीय बताकर कहा नेपाल को ये चुनाव भारत में हालिया हरिद्वार कुम्भ मेला अनुमानित एक करोड़ से अधिक लोगो के गंगा स्नान तथा प्रांतीय, पंचायत आदि के अन्य चुनावों के अंत्यंत बुरे परिणाम से सबक लेकर तत्काल स्थगित कर देना चाहिए। नेपाल में वैक्सीन की उपलब्धता नहीं होने से कोरोना की इस नई महामारी से उत्पन्न की स्थिति ओली सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गई।
ओली मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों ने ओली जी की शतरंजी घोडा की ढाई घर की चाल के विरोध में इस्तीफा देकर कहा सदन भंग करना पिछले चुनाव के जनादेश के खिलाफ़ असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कदम है। उन्होने दावा किया इससे भारत और चीन के बीच फैले नेपाल में राजनीतिक स्थिरता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
विपक्ष के 149 सांसदों ने राष्ट्रपति के निर्णय की संवैधानिकता को चुनौती देने के लिये नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेने का मन बनाया. इन सांसदो की संख्या 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 137 की बहुमत संख्या से अधिक है। विपक्ष ने नेपाल सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी तो उसने ओली सरकार को प्रतिनिधि सभा में विश्वास-मत हासिल करने का आदेश दिया। ओली सरकार 10 मई को विश्वासमत नहीं जीत पायी थी। उम्मीद थी कि वे पद छोड़ देंगे और दूसरा कोई पीएम बनेगा लेकिन उन्होंने 22 मई को संसद भंग करने की सिफ़ारिश कर दी जिसे राष्ट्रपति ने बिना नानुकुर के मान भी लिया। अंतत: मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया।
बहरहाल, 12 जुलाई को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के आदेश को रद्द कर दिया और शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने का आदेश दिया क्योंकि उनके समर्थन में सर्वाधिक 149 सांसद हैं। 14 जुलाई 2021 शाम छह बजे काठमांडू में आयोजित एक सादे समारोह में राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने देउबा को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। देउबा पाँचवीं बार प्रधानमंत्री बन गये हैं लेकिन नेपाली सियासी ड्रामे के एक ही अंक का पटाक्षेप हुआ है। अब सबकी नज़र ओली और प्रचंड गुट पर जिन्हेंं कम्युनिस्ट इतिहास में एक नया अध्याय लिखने का मौका मिला था जिसे उन्होंने फ़िलहाल तो गँवा ही दिया था।
कम्युनिस्ट पार्टियों के पक्ष में उठी लहर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को पीएम की कुर्सी पर ले आयी है। इसी पार्टी से संघर्ष करते हुए कम्युनिस्टों ने नेताल में अपनी ज़मीन तैयार की थी।
*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।