आज के अखबारों में दो प्रमुख खबरें हैं – विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और दिल्ली में 100 टीकाकरण केंद्र बंद (टाइम्स ऑफ इंडिया)। टीका केंद्र बंद होने का कारण टीकों की अनुपलब्धता है और इसका कारण उत्पादन की कमी नहीं, केंद्र द्वारा कोटा तय किया जाना है। अभी तक की खबरों से लग रहा है कि केंद्र सरकार ने दो देसी दवा निर्माताओं से कह दिया है कि किस राज्य को कब कितना टीका देना है और राज्यों से कह दिया है कि वे कंपनियों से सौदा करके टीकाकरण अभियान चलाएं। टीका बनाने वाली कंपनी राज्यों को अलग कीमत पर टीका बेच सकती है। कायदे से यह काम केंद्र सरकार का था कि वह देश–विदेश से, दुनिया भर से, अपने नागरिकों के लिए टीके खरीदती और उन्हें लगवाने की व्यवस्था करती। ताकि इतनी बड़ी संख्या में लोग नहीं मारे जाएं। गए साल कोराना शुरू होने पर राष्ट्रीय आपदा कानून लागू कर दिए गया और ज्यादातर काम केंद्र सरकार ने किया। राज्यों को करने से मना भी किया। अब बहुत कुछ राज्यों के भरोसे है।
इस बीच केंद्र सरकार ने दो देसी टीका निर्माता विकसित किए, बाहर वालों को लगभग रोक रखा, देसी निर्माताओं से दवाइयां खरीदी, टीकाकरण करवाया, प्रचार करवाया और टीकोत्सव मनाया और फिर राज्यों के भरोसे। अब राज्यों को पता चला कि उनका कोटा तय है और जल्दी से जल्दी सबको टीका लगाने की उनकी कोशिशों का कोई फायदा नहीं है तो टीका केंद्र बंद हो रहे हैं। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कल यह जानकारी दी कि एक दवा निर्माता ने कहा है कि वह उन्हें (दिल्ली को) केंद्र सरकार द्वारा तय कोटे के अनुसार ही टीके की खुराक देगा। यह खबर जितनी बड़ी है वैसे छपी नहीं है। हालांकि विपक्षी नेताओं की साझा चिट्ठी का कारण यह सूचना भी हो सकती है। दूसरी तरफ आप जानते हैं कि प्रचार के लिए 11 से 14 अप्रैल तक देश में टीका उत्सव मनाया गया था।
अमर उजाला की एक खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में प्रतिदिन 4340 लाभार्थियों के टीकाकरण करने का लक्ष्य निर्धारित था। लेकिन टीका उत्सव शुभारंभ से पहले ही जिले में वैक्सीन की किल्लत हो गई थी। हालांकि, पहले दिन वैक्सीन न होने के कारण वैक्सीनेशन सेंटर पर लाभार्थियों की भीड़ नहीं देखने को मिली। दूसरे दिन भीड़ दिखी, तो लाभार्थियों की संख्या भी दोगुनी हो गई। 14 अप्रैल 2021 को टीका उत्सव के अंतिम दिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास किया। नोडल अधिकारी डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि जिले में टीकाकरण के लिए 47 सेंटर बनाए गए हैं। जहां पर 8550 लाभार्थियों का टीकाकरण करने की क्षमता है। अंतिम दिन 1902 लाभार्थियों ने टीकाकरण की पहली डोज लगवाई। जबकि 227 ने दूसरी डोज लगवाई।
वैसे तो टीका लगवाने में लोगों के उत्साह की कमी का कारण टीका विरोधी प्रचार बताया जा रहा है और कल एक प्रचारक चैनल का वीडियो सोशल मीडिया पर देखा जिसमें बताया जा रहा था कि पहले टीकों के खिलाफ किसने क्या कहा था। वह किस संदर्भ में कब कहा गया था इसके बिना पुरानी बातें बताना और ये नहीं बताना कि टीकोत्सव के समय ही या बावजूद टीका खत्म हो गया – आजकल की पत्रकारिता है। सरकारी व्यवस्था के कारण टीका लगाने की क्षमता अनुसार टीके उपलब्ध न होना, विदेशों से न मंगाया जाना और निर्यात किया जाना सब सिस्टम का हिस्सा है पर अखबारों में यह सब नहीं है। जबकि टीकों के प्रति उदासीनता का कारण यह भी हो सकता है। टीके की कीमत अपनी जगह है। और निश्चित रूप से यह बहुत सारे परिवारों की पहुंच से बाहर है या उनके लिए इन पैसों का प्रबंध करना आसान नहीं है। मनीष सिसोदिया की खबर टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। शीर्षक है, राज्यों के लिए टीके का कोटा केंद्र तय करेगा। खबर बताती है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आशय का शपथपत्र भी दिया है। फिर भी क्या आपको टीके का यह हाल पता था? इस कॉलम में चर्चा हो चुकी है।
इस खबर के अनुसार, अब यह स्पष्ट हो चुका है कि दुनिया के सबसे बड़े टीका निर्माता देश को अपने लिए टीके प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ रहा है और इसका कारण खराब प्लानिंग है। हालांकि, हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष छापा है और स्वास्थ्य मंत्री ने इस स्थिति का बचाव किया है। विपक्षी नेताओं की चिट्ठी इसी के साथ छापकर औपचारिकता निभाई है। स्थिति यह है कि बहुमत से पगलाई सरकार मनमानी कर रही है तो विपक्षी नेताओं ने सबको मुफ्त टीका लगवाने की मांग की। अखबार ने इसे तो छोटे में छापा, जवाब बड़े में है कि टीके पर अवास्तविक (या अव्यावहारिक / अनरियलिस्टिक) न हों। साफ दिख रहा है कि मीडिया आम आदमी की बजाय सरकार की तरफदारी कर रहा है। कल भी जेपी नड्डा की चिट्ठी का मामला इस अखबार में ऐसा ही था।
ऐसी हालत में विपक्ष के मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं ने प्रधानमंत्री को साझी चिट्ठी लिखी यह अपने आप में एक बड़ी घटना है। पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में निपटा दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स की कहानी बता ही चुका। इंडियन एक्सप्रेस में खबर पहले पन्ने पर तो है लेकिन लीड नहीं बनी। द हिन्दू में यह खबर चार कॉलम में लीड है। इसका शीर्षक है, विपक्ष ने प्रधानमंत्री से सबके लिए मुफ्त टीकाकरण की अपील की। द टेलीग्राफ ने इस खबर को सात कॉलम में छापा है और विपक्षी नेताओं की तस्वीर के साथ शीर्षक लगाया है, एकीकृत विपक्ष ने प्रधानमंत्री से कहा कि क्या करें। पर प्रधानमंत्री तो बाद में, मीडिया को ही चिट्ठी की महत्ता समझ में नहीं आई।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज अपनी लीड खबर से बताया है कि अभी तक टीका लगवाने वाले 18 से 44 साल के लोगों में 85 प्रतिशत देश के सात राज्यों से ही हैं। वैसे भी, सभी राज्य सरकारों के लिए टीका लगवाना संभव नहीं है और बहुत सारे नागरिकों के लिए पैसे देकर टीके लगवाना असंभव है। इसलिए यह मामला जल्दी नहीं निपटाया गया तो देर हो जाएगी। पर किसी को परवाह है ऐसा लगता नहीं है। वैसे भी, टीके का मामला ऐसा है कि नहीं लगवाने वाले ज्यादा हुए तो जो लगवा चुके हैं उन्हें भी आवश्यक या वाजिब लाभ नहीं मिलेगा।
दूसरी ओर, पंडित राजन मिश्रा के निधन के बाद प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ एक बैनर लगवाया गया है जिससे लगता है कि वहां पंडित राजन मिश्रा कोविड अस्पताल बनेगा। आज द टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार, पंडित मिश्रा के बेटे ने कहा है कि प्रधानमंत्री आवास का निर्माण बाद में हो सकता है। स्वास्थ्य पर खर्च किया जाना चाहिए। बाकी के अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। यही नहीं, अखबारों में सेंट्रल विस्ता के निर्माण की चर्चा शुरू हुई तो नागरिकों और ऐक्टिविस्टों ने तस्वीरें शेयर कीं जिससे पता चला कि शानदार दिखने वाला इंडिया गेट का इलाका खुदा पड़ा है। यहां 100 साल पुराने जामुन आदि के पेड़ थे। सबके नष्ट होने की आशंका है। इसकी तस्वीरें बहुतों के लिए दुखद होंगी इसलिए निर्माण स्थल पर बोर्ड लगा दिए गए कि फोटो खींचना और वीडियो बनाना मना है। अब इसका कोई कारण और तर्क तो हो नहीं सकता। इसलिए यह खबर तो है ही। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज इस आशय की एक खबर है। अखबार ने लिखा है कि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रवक्ता ने फोटो नहीं खींचने की सूचना देने वाले बोर्ड के बारे में पूछने पर टिप्पणी करने से मना कर दिया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।