ए हो.. चौकीदार.. बना है एकादश अवतार….जोगीरा….सारारारारा !


चौकीदारों को चोर कहा जाना बुरा लग रहा है, तो चोरों को भी चौकीदार से तुलना कम बुरी नहीं लग रही।


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दास मलूका

देश में चुनावी फगुनहट बह रही है। चोर-चोर और चौकीदार-चौकीदार का शोर हर शख्स को झकझोर रहा है।

चौकीदारों को चोर कहा जाना बुरा लग रहा है, तो चोरों को भी चौकीदार से तुलना कम बुरी नहीं लग रही। चौकीदार तो अपनी शिकायत लेकर चुनाव आयोग तक जाने के मूड में थे, लेकिन चोरों के हाथ सिर्फ मायूसी है। उनके धंधे की पहली शर्त ही गोपनीयता है लिहाजा वो ‘ओवर ग्राउंड’ भी नहीं आ पा रहे।

बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए जिस तरह चूहों ने सभा बुलाई थी, उसी तर्ज पर इस कलंक से पीछा छुड़ाने के लिए चोरों ने कुंभ के तत्काल बाद संगम तट पर एक सभा आहूत की। 

चोरों की सभा में एक सीनियर प्रयागराजी चोर (जो पहले इलाहाबादी कहा जाता था) ने नैतिकता से जुड़ा सैद्धांतिक सवाल उठाया

“गुरु चाहे जउन हो….मगर जो खुल्ले में हो रहा वो कुच्छो होय चोरी नै हो सकत। ई कहनै गलत है।“  

चोरों की सभा में अभी इस पर निन्दा प्रस्ताव लाने की तैयारी चल ही रही थी कि एक राहत की खबर आई। प्रधान सेवक ने खुल्ले में कह दिया कि हां वो चौकीदार हैं। प्रस्ताव आने से पहले ही गिर गया। लेकिन एक कनपुरिए चोर ने मार्के की बात कही जिसके बाद फिर सबके कान खड़े हो गए।

“….तुम कुछ भी कहिते रहो लेकिन अगले ने फिर वोई वाली कर दी !”

“क्या..?”

“….कि मल्लब वो चौकीदार है इसलिए वोई चोर है”

एक पढ़े लिखे चोर ने आंखे फाड़ कर आवाज़ में थोड़ी सरगोशी के साथ कहा

“यानी कि चौकीदार अब चोर का पर्यायवाची….यानी कि सिनॉनिम हो गया”

तो दूसरे ने उससे ज्यादा सरगोशी के साथ कहा

“यानि अब जहां-जहां चौकीदार लिखा जाएगा….वहां वहां चोर पढ़ा जाएगा”

सभा की अध्यक्षता कर रहे सीनियर इलाहाबादी चोर ने सबको ढाढस बंधाया

“जाए दो में….अब तो चउकीदरवे भी खुद को चउकीदार नहीं कहते। केत्ते साल हो गए कान से चउकीदार सुने। इ तो नेतवे सब हैं जो फिर सुनाई देवे लगा है। वर्ना सब तो सिकोर्टी गार्ड अउर का कहते हैं कि वाच मैन हो गए हैं”

“लेकिन इन सबका मालिक एक है…..पूछो कौन ?”

सब चोरों ने कोरस में पूछा…..कौssssन ?

“गेस करौ सब लोग……हिंट दें…..राज्यसभा में है !”

इतना कह कर चोरों की सभा के सीनियर ने दांत निपोर दिया। कुछ गेस करने में जुट गए तो कुछ को गूंगे के गुड की तरह अंदर ही अंदर ज्ञान हो गया। और होली के भंग में तरंग लगाती चोरों की सभा बिना किसी ख़ास नतीजे के विसर्जित हो गयी।

दिल्ली में चर्मा जी के चैनल से लेकर सबसे तेज़ वालों तक ने सुरक्षा सभा बुला रखी थी। इन सभाओं में दिन भर देश की सुरक्षा पर चर्चा होती रही जिसमें नतीजा निकाला जाना था कि देश चौकीदार के हाथ में ही सुरक्षित है। हालांकि इस पर पूरा दिन लगाने की जरूरत नहीं थी। चैनलों के चोमू पहले से ही इस नतीजे पर पहुंचे हुए थे।

उनके कान में लगे इयर प्लग में लगातार ये साउंड इको कर रहा था….मैं देश नहीं मिटने दूंगा !

शाखा बाबू ने मन ही मन कहा……ये एकादश अवतार है……चौकीदार !

अपनी इस कल्पना पर वो मन ही मन गदगद से हो उठे……एकादश अवतार……चौकीदार !

फिर नारे की टोन में जरा ज़ोर से बोले

एकादश अवताsssर…..

फिर खुद ही जवाब दिया

चौकीदाsssर !

गली से ठेला लेकर गुज़रते कबाड़ी ने सिर्फ उन्हें चौकीदार कहते सुना, मगर फिरकी लेने से बाज़ न आया….और जवाबी हांक लगा दी

चोssर है। 

शाखा बाबू भन्ना गए। गरियाते हुए बरामदे में निकले। उनका गुस्सा देख कबाड़ी के पैरों के नीचे से ठेले की पैडल खिसक गयी।

“काहे गुस्सा रहे हैं बाऊजी….अरे, ईss हम थोड़ी कह रहे हैं। ई तो साला पूरा देस कह रहा है”

“देश कह रहा है ! तुम देश कब घूम आए बे ?”

सकपकाए कबाड़ी ने सफाई दी

“मने टिबिया में तो एही सुनाई पड़ रहा है, आ हमरे खातिर तो टिबिए न देस है, बाकि हमसे काsss मतलब ?”

शाखा बाबू को अचानक कबाड़ी का ये तर्क दार्शनिक जैसा लगने लगा। उन्हें लगा ये कबाड़ी नहीं कबीर है जो फटी कमीज नुची आस्तीन में उनके सामने खड़ा है। शाखा बाबू को लोक लाज की परवाह न होती तो वो कबाड़ी के सम्मान में न जाने क्या कर जाते। फिलहाल वो बुदबुदाते हुए घर के भीतर वापस लौट आए।

“सही कहा….टीबिए देश है….देशवे टीबी है…..देश देखिए, चाहे टीबी देखिए बात एक्के है !”

दोपहर का खाना शाखा बाबू का इंतजार कर रहा था, शाखा बाबू को देश देखने की भूख थी, टीवी खुल गया और देश……चौकीदार-चौकीदार की हुआं-हुआं में डूबा हुआ था।

शाखा बाबू का पोता अपनी छाती पर मुक्का मार-मार कर पूरे घर में बरबराता घूम रहा था।

“हां….मैं भी चौकीदार हूं….मैं भी चौकीदार हूं”

उसे इस होली पर नयी वाली पिचकारी चाहिए। वो वाली पिचकारी जिसकी शक्ल मिसाइल जैसी है, और जिस पर मोदी जी का मोनालीसा की रहस्यमय मुस्कान वाला फोटो छपा है।

मोदी, मिसाइल, मुस्कान, मोनालीसा…..और अंत में पिचकारी।

लेकिन उसकी मां को इस बार गोझिया रेडीमेडे चाहिए। एक तो गोझिया बनाने में जांगर बहुत लगता है और अगले दिन मारे थकान देवर लोग के संग होली खेलने में रस नहीं आता। छत पर पड़ोसिन के संग आलू के चिप्स काटती बोली…

“एक काम तो मोदिया ठीक किया, गोझिया रेडीमेड बनवा दिया”

“एम्मे मोदिया का किया…दिल्ली बाला हमर दीदी कहथ हय कि ओइजा गोझिया रेडीमेडे मिलथ हय….उहो कोनो बिकानेर बाला बनावथ….गुजराथी नय“         

“अच्छा तो एहिजा देर से आया है….हमको लगा सब काम मोदिए कर रहा है, तो ई भी उहे किया होगा” शाखा बाबू की पतोहू ने कहा

“हमरे ई तो कहथ रहे कि आजकल चौकीदारी कर रहा है…..जब ऊ चौकीदारी करथ हय तो का जनि ओकर कमवा के करथ हय”

दोनों सहेलियों ने चिंता भरी नजर से एक दूसरे को देखा और कद्दूकस पर तेजी से हाथ चलाने लगीं।

फगुआ के रंग में डूबे मोहल्ले के लफंडर गली में पल्टू का जोगीरा ललकारते हुए घूम रहे थे 

केकरे खातिर पान बनल बा केकरे खातिर बांस
केकरे खातिर पूआ पुड़ी केकर सत्यानाश….जोगीरा सारा रारा…।
नेतवन खातिर पान बनल बा पब्लिक खातिर बांस
अफसर काटें पूआ पुड़ी सिस्टम सत्यानाश….जोगीरा सारा रारा….।