शाखा बाबू की तबीयत ख़राब है।
अन्तिम चरण में उनके यहां भी वोटिंग थी। कभी बरखा-बुन्नी तो कभी बदरफट्टू घाम। फिर भी वोट देने गए और जब से लौटे हैं खटिया पर हैं। किलस के पतोहू आती है और एक कप इलेक्ट्रॉल पिला कर चली जाती है।
मुंह-पेट सब चल रहा है। हाजत के लिए भी सहारा लेकर जाना पड़ रहा है।
पतोहू ने बिहारी पड़ोसन से पूछा – “का जनी बथरूमवा ला काहे इज्जत घर-ओर बोलत है बुढ़वा।“
पड़ोसन ने हंसी की ठिसकारी छोड़ते हुए कहा – “अब जेकर छप्पन इंच नै ओकरा इज्जतै न बचावे के भैल।”
शाखा बाबू की हरारत में और इज़ाफ़ा कर रहा है मिजाजपुर्सी करने वालों का रिएक्शन।
हर आने-जाने वाले का एक ही जवाब है।
“मोदिया तो आ रहा है मगर हमरे यहां थोड़ा फंसा है… बाकी आ रहा है मोदिए!”
शाखा बाबू चिढ़ जाते हैं।
“धै मरदवा, जहां पूछो बस एक्के बात है। हमरे हियां फंस्सल है, बाकिर आ रहा है मोदिए। अरे तो आ कहां से रहा है?”
शाखा बाबू के गुस्से से स्टूल पर रखी गिलास थरथरा जाती है।
प्रधानमंत्री की प्रेस कान्फ्रेंस पर महल्ले के पुराने समाजवादी ससुरे अलग चिटका रहे हैं।
“मोदी और मायावती में अन्तर नै, ऊ पर्चा पढ़ के बोलत है, ई पर्चा रट के बोलत है।”
शाखा बाबू किसको बताएं प्रधानमंत्री ने खुद क्या कहा।
“बिना प्लान के हमारा कुछ नहीं होता”! तो ये प्रेस कान्फ्रेंस भी किसी प्लान का हिस्सा होगी। पता चलेगा बेटा… अभी तो बदरी-केदार की सोचो।
शाखा बाबू की धड़कन बढ़ी हुई है। नतीजों को लेकर बेकरारी चढ़ी हुई है। बहस साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर छिड़ी हुई है।
मल्लब आचार्य जी ये बताइए साध्वी ने ग़लत क्या कहा? नगर प्रचारक से एक पकठे युवा ने प्रश्न किया।
आचार्य जी ने मूंछों में मुस्कराते हुए आराम से कुछ ऐसे उत्तर दिया जैसे वो स्वयं साक्षात कृष्ण हों और सामने वाला पार्थ।
“विचार कोई ग़लत नहीं होता, समय उचित या अनुचित होता है। इस विमर्श के लिए ये समय अनुचित था बन्धु। वर्ना हमें इस निकष तक तो अंतत: पहुंचना ही है कि गोडसे आखिर थे क्या!”
दूसरे भाई जी ने जोड़ा-
“अभी इतना ही बहुत है कि हर आतंकी हत्यारा होता है, लेकिन हर हत्यारा आतंकी नहीं होता”
आचार्य जी गहरी सांस लेकर बोले- “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति”!
शाखा पार्थ के मन में अगली जिज्ञासा जगी।
“मोदी जी फिर आ रहे हैं न आचार्य जी? आपका आकलन क्या कहता है?”
आचार्य जी ने विहंस कर उत्तर दिया-
“चरैवेति–चरैवेति… हमारा काम है चलते रहना। जब जब जो-जो होना है, तब तब तो-तो होता रहेगा”।
समाजवादियों के ठीहे पर भी दोपहर उतर चुकी थी।
बंगाली बाबू ने दुकानदार से पूछा- “का हो, घमंजा बनेगा कि समोसा?”
दुकानदार ने बालूशाही पर अंगोछा हौंकते जवाब दिया-
“घमंजा बने चाहे समोसा माछी तब्बो उड़ावे के पड़ी।”
“मल्लब मोदिया आ गया तब्बो?”
“तब त कई जने माछी उड़ाएंगे। हमसे ज्यादा न कहलवाओ बंगाली बाबू। अबकी राजनाथो कहीं मारगदरसक न हो जाएं”!
“का कह रहे हो भाई?”
बंगाली बाबू की फट गयी… आंखें, ये अनुमान सुन कर!
“एकदम सही बात… ई जो आएगा गांधीनगर से मोटका, का ऊ माछी मारेगा! गृह मंत्रालय चलाने का पुराना एसपीरिएंस है उसको”- समाजवादी ने जोड़ा।
तब राजनाथ का करेंगे?
एक साथ डकार लेते और वायु विमोचन करते पंडित जी ने जवाब दिया-
“पुनर्मूषको भव! कुछ दिन फिर अध्यक्ष रह लेंगे, ऊ अध्यक्ष पद के गुलजारी लाल नन्दा हैं। बाकी देखो अगवें आ रहा है।”
“नहीं, पहले ई बताओ मोदिया आ रहा है कि नहीं!”
“अरे महराज, पूरी कायनात मोदिया को लाने में जुटी है तो तुम अनोखे हो। टरम्प से लेकर चाइना तक। पाकिस्तान से लेकर अजरबैजान तक… गनीमत है कि बाबा बिसनाथ नहीं कह रहे कि हम मोदिया के लिए काशी छोड़ देंगे।”
हताश समाजवादी ने खैनी रगड़ते हुए कहा-
“छोड़ै दिए हैं। मोदी-मोदी के नारे में हर-हर महादेव की हुंकार तो चपा गयी है।”
ज्योतिषियों की सभा में अलग मार मची है।
हर बाबा का कलन-फलन अलगे चल रहा है। कोई कहता है आएगा, कोई कहता है नहीं आएगा।
एक महाराज ने कहा देश का कालसर्प योग खत्म हो रहा है। दूसरे का कहना है देश की कुंडली में आगे गुरु-चांडाल योग है।
एक जजमान टाइप की जिज्ञासा जगी-
“मल्लब जून से गुरु और चांडाल दोनों…?”
सारे बाबा सन्नाटे में और निगाहें जजमान टाइप पर।
सकपकाए जजमान ने सहम कर कहा–
“नहीं, ऐसे ही मुंह से निकल गया। मल्लब आएगा तो मोदी ही नSS!”
जब तक बड़े महाराज खड़ांऊ उठाते, तब तक जजमान अपनी तशरीफ़ उठा कर ले भागा।
उधर सट्टा बाज़ार के सटोरिये असमंजस के बावजूद मोदी-मोदी कर रहे हैं!
“बताइए मोदी जी को सब पता है। कोई प्रधानमंत्री सट्टा बाज़ार के बारे में एतना सोचता है। लोग कह रहे हैं प्रेस कान्फ्रेंस में कुछ नहीं बोले। जिनकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। चौदह में उनके आने पर सट्टा बाज़ार घुस गया था, ये उनको भी पता था। सट्टा तो देस में वैलिड होकर रहेगा मोदी जी की कृपा से।”
“मल्लब आएंगे तो मोदी जी है कि नहीं”- लपलपाते जिज्ञासु ने कहते हुए पूछा या पूछते हुए कहा।
सटोरिये ने कानी ऊंगली में दबाई सिगरेट का गहरा कश खींचा और धुआं छोड़ता बोला-
“ई सट्टा बाजार है बाबू, फर्जी सैफोलॉजी की दुकान नहीं! मन की बात अपनी जगह, धन की बात अपनी जगह।”