‘कोदण्ड’ राम की खाते हैं… बंगाल में सरकार बनाएंगे!

राजशेखर त्रिपाठी
काॅलम Published On :


चुनाव बाद योगी अयोध्या पहुंचे। अयोध्या में भगवान राम की आदमकद काष्ठ प्रतिमा का अनावरण किया। उनके इस कृत्य से हरषित भए गए सब संता। बस आकाश से पुष्प वर्षा न हुई। एक गदगद साधु ने टीवी कैमरे पर बाइट दी-

“ये राम मंदिर के लिए योगी की हरी झंडी है”!

शाखा बाबू को साधु की वाणी में भविष्यवाणी दिखी। मन गदगद हो गया। आँख डबडबा गयी। भर्राए गले से सपूत से पूछा-

“कहो ई कोदण्ड का होता है हो?”

सपूत ने चौंक कर घिन्नाए मुंह से पूछा “का?”

“अरे अजोध्या में जोगी जौन मूर्ति लगवाए हैं ऊ कोदण्ड राम की है।”

“हम तो नहीं सुने कभी… ई रामौ किसिम किसिम के हैं”, सपूत ने आजिज मिजाजी से जवाब दिया।

शाखा बाबू की शंका का समाधान घर में प्रवेश करते भाई जी ने किया।

“अशल में दक्षिण भारत में जिश राम की पूजा होती है उनको कोदण्ड राम ही कहा जाता। ये भगवान का वही धनुस था जिशशे उन्होंने रावण का वध किया था। इश कोदण्ड धनुस शे निकला बाण लच्छ भेद कर ही आता था।”

ये वाले भाई जी हमेशा खड़ी बोली हिन्दी ही बोलते हैं, मगर गिरिराज सिंह इफेक्ट के साथ।

शाखा बाबू के सपूत उसी आजिज मिजाजी के साथ भुनभुनभुनाते हुए भीतर चले गए।

“भाक तेरी दण्ड-बाण…. दण्ड-बाण!”

सपूत की बहुरिया माने शाखा बाबू की पतोहू मुंह में आंचल दबा के खिस्स से हंस पड़ी।

उधर चाय की दुकान पर चौड़े होते हुए समाजवादी जी ने बंगाली बाबू से पूछा-

“कोदण्ड राम की मूर्ति को अखबार में आदम कद बता रहा था, लेकिन टीबिया में तो वो जोगी के कद से बहुत ऊंची थी!”

“मने जोगी का कद एतना बड़ा हो गया कि भगवान के कद के बराबर हो जाए!”

झुंझला कर बंगाली बाबू ने जवाब दिया।

दुकान वाले ने माहौल के मुताबिक बंगाली बाबू को भगौने की बची-खुची चाय बिना मांगे मुफ्त में बढ़ायी और धीरे से टहोका दिया-

“जोगी का कद छोड़ौ बंगाली बाबू ई बताओ कि सरकार में किसका कद केतना बढ़ा?”

सवाल कायदे का था लेकिन समाजवादी जी ने बाकायदा जोड़ा-

“थोड़ा और खोल कर पूछो…!”

“अरे, मने सरकार में नंबर दो कौन है? शपथ ग्रहण ले त राजनाथे लग रहे थे।”

बंगाली बाबू ने चाय सुड़क कर कहा-

“अरे काग़ज़ में तो पिछली सरकार में भी राजनाथे नंबर दो थे। त सच्चे थे का?”

“अच्छाSSS?”

चाय वाला पहेली में उलझ गया।

“मल्लब उ नंबर दू थे ही नहीं! त अब सरकार में नंबर दो कौन है?”

आदत से मजबूर समाजवादी जी ने पूरी मुंह फटई से जवाब दिया-

“मोदी, और कौन”!

चाय की दुकान पर मौजूद हर शख्स ने फटी आँखों से समाजवादी जी को देखा और समाजवादी जी जनेऊ से पीठ खुजलाते लघुशंका निवारण के लिए बढ़ गए।

बंगाली बाबू उनके पीठ पीछे खिन्न मन से बोले-

“भगवान ने मुंह दिया है तो कुच्छो बोल दीजिए। इमरजेंसी में चार लाठी का खा लिए बड़का राजनीत के बिस्लेसक बनते हैं”।

फिर बंगाली बाबू ने अपनी नागरिक शास्त्र की किताब खोल दी।

“देखो, अइसा है सरकार में परधान मंत्री सबसे ऊपर होता है और उसके बाद होता है गृह मंत्री यानि नंबर दो। इसीलिए सरकार मोदी सरकार कही जाती है और अब अमित शाह मोदी के बाद नंबर दो माने जाएंगे।”

अब बारी बड़ी देर से चुपाई साधे बीड़ी बाज़ की थी। उसने बीड़ी सुलगाने के बहाने बंगाली बाबू की सुलगा दी।

“तब काहें कह रहे थे कि राजनाथ पिछली सरकार में भी नंबर दो नहीं थे, आख़िर गृह मंत्री तो वही थे न?”

बंगाली बाबू को यह उद्दंडता लगी, लेकिन बड़ी चतुराई से बोले-

“हम कह नहीं रहे थे, पूछ रहे थे”!

सवाल उठाने वाला सन्न, ये भी नहीं कह सकता था कि रिवाइंड करके दिखाएं क्या, रिकॉर्डिंग थोड़ी हो रही थी।

बंगाली बाबू ने कमर सीधी कर वायु विमोचन किया। इस आवाज़ में गहराई और चौड़ाई दोनों थी। मुफ़्त की चाय ने आराम पहुंचाया। झुंझलाहट भी थोड़ी कम हुई।

चर्चा अब ममता बनर्जी की ओर मुड़ गयी।

“अब ममता का क्या होगा हो”?

“जो मंजूरे जयश्रीराम होगा”! बंगाली बाबू ने जवाब दिया।

(जनता की जानकारी के लिए बताते चलें बंगाली बाबू सचमुच के बंगाली नहीं हैं। एक बार नौकरी की तलाश में बंगाल गए, लौटे तो उनके अंदाज़ में कुछ ऐसा था कि लोग उन्हें बंगाली बाबू कहने लगे, वो सुनने लगे और फिर बंगाली बाबू ही होकर रह गए)

“बंगाल में तो बामपंथी सब था, सेकुलर था, ई जयश्रीराम वाला कहां लुकाया था महराज”?

एक सवाल उठा और बंगाली बाबू से पहले किसी और ने लौक लिया।

“ममतवा त कह रही है कि सब बाहरी हैं! बाहरी माने जूपी-बिहार वाला!”

“झुट्ठे हैं सब…”, समाजवादी जी लघुशंका से लौट आए थे।

बंगाली बाबू बड़े दिनों बाद समाजवादी जी से सहमत दिखे।

“अरे बंगाली माने बारो मास… तेरो पूजा। माने साल में महीना बारह आ बंगाली का पूजा तेरह… बाकी ज्ञान पेलते रहिए… ई बामपंथिए सब आ के बीजेपी में बइठ रहा है।”

वायु विमोचन से बंगाली बाबू के अंदर काफ़ी हल्कापन आ गया था। उन्होंने अपना ज्ञान दर्शन आगे बढ़ाया।

“हम जब कलकत्ता गए थे तो नारा लगता था मार्क्सबाद-जिंदाबाद आ बंगाली सब बूझता था माछभात-झिंगाभात! जोती बाबू के साथ शुरु, जोती बाबू के साथ ख़तम!”