उतरते सावन की बरसात ने हाल-बेहाल कर रखा है। मोहल्ले में घंटों से बिजली गुल है। उमस के मारे, लोग बेचारे गली के नुक्कड़ पर जमा हैं। मोहल्ला महासभा में अनुच्छेद 370 की चर्चा गर्म है। उमस और पसीने ने चर्चा में गर्माहट कुछ ज्यादा बढ़ा दी है।
“कहो कश्मीर का मौसम इस बखत कैसा है हो?”
एक सज्जन ने अचानक बहस में व्यतिक्रम पैदा किया और चर्चा का रुख 370 से मोड़ कर मुहल्ले की सड़ी हुई गर्मी तक ले आए।
“जाना है का… चले जाओ… वहां बारहों मास ठंडे, ठंडा रहता है.. और अब तो घरवाली को भी ले जाने की ज़रूरत नहीं…।”
सवाल पूछने वाले को जवाब की आख़िरी लाइन ज़्यादा नागवार गुजरी। कुछ हिमाकत किसिम की। इस तरह किसी को मुंह लगाने के वो आदी नहीं, सो सड़ा सा मुंह बना कर चुप हो गए। अगले को उनकी नाराज़गी समझ में आ गयी।
“अरे एतना खिसियाने की जरूरत नहीं है महराज, हम तो वही कह रहे हैं जो सरकारी नेतवा सब कह रहा है। 370 हटने के बाद कश्मीर में बहुत कुछ फ्री हो गया है, कश्मीरी दुल्हन लाना भी आसान हो गया है।”
इस सफाई का कुछ ख़ास असर नहीं दिखा।
दरअसल, मोहल्ला महासभा में अलग-अलग उम्र के लोग हैं। लाज-लिहाज रखना मजबूरी है। मगर बात ऐसी थी कि हंसी की दबी-दबी हिस-फिस छुपी न रही।
अचानक किसी की समझ में आया कि माहौल बहक रहा है तो उसने बात दूसरी दिशा में मोड़ दी।
“यार बात बताओ… कांग्रेस में अध्यक्ष बनने लायक कौनो नेता ही नहीं बचा! राहुल बाबा से गिरे तो सोनिया मम्मी पर अटके! तो दू ढाई महीने से ई नाटक काहे चल रहा था?”
ये बात समाजवादी जी के काम की थी। बल्कि ऐसी बातों पर एक्सपर्ट कमेंट देना वो अपना स्वयंसिद्ध अधिकार मानते हैं… और लोग सुनते भी हैं। लिहाजा समाजवादी जी करीने से अपने हथेली की खैनी से बचा गर्दा झाड़ते बोले-
“वो इसलिए चल रहा था कि हर ख़ासो आम को इत्तिला हो जाए कि कांग्रेस ने लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष तलाशने का काम किया। अब जब कोई आगे आने को तैयार ही नहीं तो का करें सोनिया और का करें राहुल?”
“मतलब तो वही हुआ ना कि अध्यक्ष बनने लायक कोई मिला ही नहीं!”
समाजवादी जी ने प्रश्नकर्ता को इस भाव से देखा जैसे इसकी जड़ बुद्धि में कुछ आ ही नहीं सकता, हालांकि इस मसले पर वहां जड़ बुद्धि ही ज़्यादा थे। कम से कम समाजवादी जी के लेवल का सियासी चिन्तन तो किसी का नहीं था, इसलिए शंका समाधान करना उनकी ज़िम्मेदारी थी। लिहाजा प्रश्नवाचक शैली में वो शुरू हुए-
“चलो अच्छा तुम्हीं बताओ किसको बना देते?”
“काहें, सिंधिया और पायलट का नाम चल ही रहा था। ऊ महाराष्ट्र वाला कौनो बासनिक है उसके नाम की भी चर्चा थी।”
समाजवादी जी इस जवाब पर तंज के भाव से ह: ह: ह: करते हुए हिले।
“अरे यार कांग्रेस को समझ पाओ… ये एतना आसान भी नहीं है… नाम चलना अउर बात है और कमान मिलना अउर बात है। गांधी परिवार हटना भी चाहे तो कोई उनको हटने देगा का? बहुतों की दुकान बंद हो जाएगी।”
समाजवादी जी की ऐसी ही गूढ़ बातों से मोहल्ला महासभा उनकी कायल है। ऐसे मौके कम आते हैं मगर आते जरूर हैं, जब लोग उनका लोहा मानने को मजबूर होते हैं। एक आध के मुंह से तो अक्सर अफ़सोस की गहरी सांस भी निकल जाती है…
“राजनरायन के पीछे न गया होता तो आज ई आदमी कहां होता, आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते।”
ख़ैर साहब, कहां वे दिन और कहां वे लोग? अब समाजवादी जी को घर में ही दो जून की रोटी मिल जाती है तो उनके मुंह से निकलता है- ख़ुदा ख़ैर करे!
लोग अभी समाजवादी जी को सुनना चाहते थे। कइयों की शंका का पूरा समाधान नहीं हो सका था।
“सिंधिया को तो राहुल गांधी भी बहुत मानते हैं… उसको बनाने में का दिक्कत थी?”
“अरे राहुल न मानते हैं”, समाजवादी जी ने तपाक से जवाब जड़ा… “सवाल ये है कि वो किसकी मानता है। एक बार अध्यक्ष बन गया तो कहां अहमद पटेल और कहां ग़ुलाम नबी आज़ाद। किसी की नहीं सुनेगा!”
इस जवाब से कुछ लोगों का शंका समाधान हुआ। एक आध ने सहमति में सिर भी हिलाया, तो समाजवादी जी ने आगे जोड़ा-
“देखो, मोदी और शाह के रहते तो कांग्रेस का यूं भी कुछ होना-हवाना नहीं है। पार्टी के नाम पर जो थोड़ी गोटी लाल है उसका रंग कौन फीका करे। सोनिया–राहुल की जय जय करके दुकान जमी है तो जमे रहने दो।”
बारी बंगाली बाबू की थी। चबूतरे पर पसरते और डकार लेते बोले-
“यार तुम तो बड़े ज्ञानी हो… लेकिन ई बताओ कि टिबिया में कह रहा था कि अंतरिम अध्यक्ष बनायी गयी हैं सोनिया। तो अंतरिम रह के का करेंगी। लउंडा तो भाग खड़ा हुआ, ये बात साफ़ है।”
समाजवादी जी सन सतहत्तर की रौ में आ गए थे आज। बोले-
“बंगाली बाबू, सुबह का भागा शाम को पार्टी दफ़्तर लौट आए तो उसे भागा नहीं कहते, एक बात… रही बात सोनिया की तो वो अगले मनमोहन सिंह की तलाश करेंगी।”
कई आंखों ने फट कर, सिकुड़ कर एक साथ पूछा… “मतलब”?
“मतलब ये कि कांग्रेस को राहुल के भागने के बाद अध्यक्ष की कुर्सी गरम करने के लिए एक और मनमोहन सिंह की तलाश है। जो वक्त बेवक्त कहता रहे कि राहुल जी के लिए मैं कभी भी कुर्सी छोड़ दूंगा! का समझे?”
सबको, अपनी-अपनी समझ से कुछ समझ में आया, कि अंधेरे में लुका-छिपी खेलता मोहल्ले के आवारा बच्चों का गिरोह अचानक ज़ोर से चिल्लाया।
आ गईsssss
घंटों से लापता बिजली वापस लौट आयी थी। मोहल्ला सभा के सदस्यों को अब अपने घर का रास्ता दिखने लगा था।