दास मलूका
पाँच साल पहले ‘चाय पर चर्चा’ मोदी जी के लिए चुनावी प्रोजेक्ट था। वक्त के साथ और ‘स्ट्राइक्स’ के शोर में वो जुमला तो गुम हो गया; मगर देश में `चाय पर चर्चा’ अब भी जारी है।
चाय की दुकान पर ऐसी ही एक चर्चा में फिर वही शाश्वत चिंता सामने आयी।
“समझै में नहीं आ रहा, कउन दे रहा है कउन ले रहा है!
चर्चा के केन्द्र में थे मोदी जी के हाल के साक्षात्कार। जिनमें उनके दिए जवाबों से ज़्यादा पूछे गए सवालों पर बहस गर्म थी।
“मल्लब ये है गुरु कि मोदिया किसी सवाल से डरता नहीं है ! हर सवाल का चौड़े से जवाब देता है और सबकी पोल पट्टी खोल कर रख देता है, है कि नहीं!”
“अच्छा ई गोसाईं बबवा को देखो…शाम को 7 बजा नहीं कि रो तड़प के आसमान सर पे उठा लेता है…”
“अरे भाई बहस करते-करते कुर्सिया पर खड़ा हो जाता है” एक ने आगे जोड़ा।
अगले को ये दख़ल रास न आई- “थोड़ा धीरे छोड़ो यार तुम तो अइसा मोदियाए हो कसम से….खड़ा हो जाता है, खड़ा कर देता है, चारों ओर नाचने लगता है, लेकिन कुर्सी पर खड़ा तो हम कबहूं न देखे!”
“अरे तो….अब हो जाएगा…..तुम बात पूरी करो यार!”
किसी ने सुलह कराई, “नहीं मतलब हम कह रहे हैं कि…..एतना बवाल काटे रहता है, लेकिन मोदी के आगे मिनिर-मिनिर हो गए बेट्टा!”
“अरे भाई ऊ मोदी है….उसका 56 इंच का है….मिनिर-मिनिर न करैं तो का करैं? पाकिस्तान की अब तक दगी पड़ी है”
“अच्छा एक बात बताओ गोसाईं बबवा तो अकेले ले रहा था। ई एबीवीपी वाले दो लोग काहें ले रहे थे?”
“एवीबीपी नहीं यार खाली एsssबीsssपीss !” किसी तीसरे ने संशोधन किया।
“हां हां ओही….अब पांच साल से एतना सुन रहे हैं कि फरकै नहीं लगता…”
“सही बात है…”
दूसरे ने ताईद की तो अगला फिर अपने ओरिजिनल सवाल पर लौट आया।
“तो हम कह रहे हैं कि दो लोग काहें ले रहे थे ?”
जवाब पहले से तैयार था केवल दिेए जाने का इंतज़ार कर रहा था- “देखो अउव्वल तो ले कोई नहीं रहा था ! सब दे ही रहे थे ! मोदिया की कोई क्या लेगा जो मोदिया ही पटक्क के न ले ले !”
“अरे यार हम इंटरभ्यू लेने की बात कर रहे हैं…”
“तो हम भी तो इंटरभ्यू देने की ही बात कर रहे हैं, किसको देख के तुमको लगा कि वो इंटरभ्यू ले रहा है? हमको तो सब देते हुए ही नजर आए !”
“मोदिया इंटरभ्यू ले रहा था और मीडिया वाले दे रहे थे !”
“सौ कैरेट की बात…..उसने तो साफ़ पूछ लिया कि बिपच्छ से सवाल क्यों नहीं करते हो। किसी के पास जवाब था ही नहीं !”
इसी बहस में मोहल्ले का मुहफ़ट तोतला भी कूद पड़ा, “अच्चा हमतो तो लुबिका फूफी का तवालै नहीं तमझ आया थोली देर!”
कऊन सवाल बेssss!
“अले ओई….मोदी जी मैं तो थक जाती हूं। मना कल देती हूं। मुदते नहीं होगा। आप त्यों नहीं थकते कबी?”
“अच्छा-अच्छा, बाद में समझ में आ गया था न SSS…” एक चिढ़ी आवाज़ ने बहस को भटकने से रोका
“हां अउल ता हम एतने बेकूफ थोली हैं….ऊ तो मोदी दी की हंसी ते कनफूज हो दये थे।”
पीछे से गदेली पर सुर्ती फटकते गुंठऊ ने बड़ी देर की चुप्पी के बाद हस्तक्षेप किया…
“हां कनफूजन स्वाभाविक है….अभी फगुआ बीते दिनै कितना हुआ”
चर्चा में ज़ोर का ठहाका लगा और वातावरण कुछ हल्का हुआ
तब तक अगला सवाल आया, “यार ई चैनल चौबीस का चौधरिया कुर्मी है का ?”
“कौन चौधरिया जी ?”
“अरे वही संदीप चौधरिया जिसके कपार पर कांग्रेस का आलोक सरमवा बीच बहस में पानी फेंक कर भाग गया”
“भाग गया! वहीं बइठ के ललकार रहा था पट्ठा भागा कहां ?”
“अरे मल्लब ओही…..लेकिन बात उसकी नहीं चौधरिया की कर रहे हैं। ऊ कुर्मी है का ?”
“पता नहीं……बकिर ई पूछ काहें रहे हो ?”
तब तक दूसरे ने अपने जनरल नॉलेज का तड़का दिया
“नहीं ऊ जाट है…..एक बार हम ओही के मुंह से सुने थे !”
“ऊ कहां मिल गया तुमको ?”
“मिल नहीं गया टीबिए पर सुने थे। कह रहा था हम जाट हैं?”
“न्ना हम नहीं मान सकते……जाट होता तो वहीं घुमा के देता सरमा सरऊ को ! तुम्हारी जानकारी में गलती है”
“जानकारी हमारी गलत नहीं है…..बकिर टीआरपी जो न कराए…..हो सकता है फिक्सिंग हो। बाकि कंगरेसिए भी गज्जब हरामी हैं…..आजकल चौराहे पे मीडिया की चढ्ढी उतार रहे हैं और गल्ली में माफी मांग रहे हैं…कि अच्छा चलो हो गया माफ करो !”
इसी बीच किसी को चौधरी से कुछ और याद आया, “अरे ऊ चउरसियवा कहां है हो आजकल…..दीपक चउरसिया !”
“पता नहीं कहां हैं……लेकिन चउरसिया तमोली होते हैं ई तो सबको पता है। तमोली….मल्लब पान बेचे वाले।”
ये ज्ञान पिटे हुए पूर्व लोहिया भक्त ने दिया, और कान पर जनेऊ चढ़ाते लघुशंका निवारण के लिए बढ़ लिए।
लोहिया का नारा एक बार फिर दम तोड़ गया कि ‘जाति तोड़ो, दाम बांधो’…..ये सवाल कहीं किसी के मन में नहीं था कि ताज़ा सियासी समय में दाम क्यो बांध तोड़ रहा है और जनेऊ क्यों नए सिरे से बांधा जा रहा है?