संजय कुमार सिंह
आज यह तय करना मुश्किल रहा कि किस खबर की चर्चा की जाए। कई अखबार पलटने के बाद भी मन लायक मुद्दा नहीं मिला। जो मिला उसमें अनुवाद ज्यादा करना पड़ता। कल ही एक खबर अनुवाद किया था आज भी राजद्रोह की खबर के मामले में टेलीग्राफ की एक खबर अनुवाद करने लायक है। इसके मुताबिक मामला चलाने के लिए पुलिस को सरकार से अनुमति लेनी होती है और जेएनयू मामले में यह अनुमति दिल्ली सरकार से लेनी है जो अभी तक नहीं मिली है। इस मामले में आपको यह बताना दिलचस्प हो सकता था कि कानून क्या कहता है और सरकार क्या चाहती है तथा इस कानून के तहत कितने मामले दर्ज हुए हैं और सरकार को कहां सफलता मिली है। दिल्ली सरकार ने जेएनयू मामले में पुलिस को राजद्रोह का मामला चलाने की अनुमति नहीं दी तो क्या होगा आदि। पर इसमें समय लगता और चूंकि मैं तय नहीं कर पाया हूं कि क्या लिखा जाए इसलिए कुछ ऐसा ढूंढ़ रहा था जो जल्दी लिखा जा सके।
इसी क्रम में दैनिक जागरण एक शीर्षक पर ध्यान अटका। शीर्षक है, भाजपा को बंगाल में रैलियों की मंजूरी, रथयात्रा में पेच। तुरंत याद आया कि हिन्दुस्तान टाइम्स में छपा है की रैली की अनुमति नहीं मिली। ऐसा ही कुछ टाइम्स ऑफ इंडिया में भी था। यही नहीं, कल सोशल मीडिया पर भी ऐसी ही चर्चा थी। हिन्दुस्तान टाइम्स फिर से देखा तो पहले पन्ने पर उसके ‘मस्ट रीड’ (जरूर पढ़ें) कॉलम के तहत एक शीर्षक है, जिसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, “पश्चिम बंगाल में रथ यात्रा : भाजपा को झटका”। दो लाइन के शीर्षक के साथ छह लाइन की खबर बताती है कि मंगलवार को भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई को सुप्रीम कोर्ट में झटका लगा और सर्वोच्च अदालत ने राज्य में रथ यात्रा की अनुमति नहीं देने के राज्य सरकार के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में यही खबर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक का अनुवाद होगा, “सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा से कहा : यात्रा पर बंगाल की चिन्ता दूर करें”। इस खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार का डर कि रथ यात्रा से कानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है, निराधार नहीं है और आगे यह भी कहा कि यात्रा की अनुमति तभी दी जा सकती है जब पार्टी (भाजपा) राज्य प्रशासन की चिन्ता दूर करे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने कोलकाता संस्करण में मामूली बदलाव करके इस खबर को डबल कॉलम कर दिया है पर दिल्ली में यह सिंगल कॉलम ही है।
इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर ऐसी कोई खबर नहीं है। कोलकाता संस्करण में जरूर इस खबर को पहले पन्ने पर दो कॉलम में छापा है। एक्सप्रेस की खबर का शीर्षक है, भाजपा यात्रा को अनुमति नहीं मिली, शीर्ष अदालत ने निर्णय बगाल सरकार पर छोड़ा। कोलकाता के द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर एक कॉलम में एक लाइन के शीर्षक के साथ कुल 10 लाइन में निपटा दी गई है। बाकी विवरण राष्ट्रीय खबरों के पन्ने पर नहीं, पूर्व या पूर्वी भारत के खबरों के पन्ने पर है। पहले पन्ने की खबर का शीर्षक है, भाजपा को यात्रा पर झटका। सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा की प्रस्तावित रथयात्रा को राज्य में अनुमति नहीं देने के बंगाल सरकार के निर्णय की पुष्टि की और कहा कि वह यह नहीं कह सकता है कि राज्य सरकार ने जो शंकाएं जताई हैं वे पूरी तरह निराधार हैं।
इसके बाद मैंने दैनिक जागरण के शीर्षक को फिर से पढ़ा। अब समझ में आया कि जागरण भी सही ही कह रहा है, “भाजपा को बंगाल में रैलियों की मंजूरी, रथयात्रा में पेच”। उसने सिर्फ अनुमति नहीं मिलने को पेच से ढंक दिया है और रथयात्रा की मंजूरी नहीं मिली तो रैली से काम चलाने की मजबूरी को पहले कर दिया है। आगे खबर से पता चलता है कि रैली की मंजूरी का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में था ही नहीं। हाई कोर्ट ने रैली करने से मना नहीं किया है। यही है संपादकीय स्वतंत्रता। इसमें कुछ गलत नहीं है। आपको भ्रम होता है तो हो। अखबार तो अपनी लाइन पर चलेगा। बंगाल की खबर जो कलकत्ता के अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है वह दिल्ली में पहले पन्ने पर।
खबर इस प्रकार है (नेट संस्करण से) : सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा को पश्चिम बंगाल में रथयात्रा निकाले जाने की इजाजत देने से इन्कार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कहा कि वे बैठकें और रैलियां कर सकते हैं, लेकिन यात्रा नहीं निकाल सकते। कोर्ट ने हालांकि अपनी सुनवाई में यह भी कहा कि अगर भाजपा यात्रा के बदले हुए प्लान के साथ आती है तो अदालत इस पर जरूर विचार करेगी। पश्चिम बंगाल में रथयात्रा निकालने की अनुमति के लिए भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। आठ जनवरी को हुई पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की ममता सरकार से इस पर जवाब-तलब किया था। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रथयात्रा पर रोक के कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 21 दिसंबर के फैसले को चुनौती दी थी।
दिसंबर में भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने पूरे प्रदेश में रथयात्रा निकालने का एलान किया था। राज्य सरकार ने यात्रा से कानून- व्यवस्था को नुकसान होने की बात कहते हुए यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद भाजपा ने कलकत्ता हाई कोर्ट में रथयात्रा पर राज्य सरकार की रोक के खिलाफ अर्जी दी थी। कलकत्ता हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने भाजपा की प्रदेश इकाई को रैली की इजाजत दे दी थी। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने रथयात्रा निकालने की इजाजत देने वाले एकल पीठ के फैसले को पलट दिया गया। भाजपा की प्रदेश इकाई आगामी आम चुनावों से पहले पूरे पश्चिम बंगाल में यह यात्रा निकालना चाहती थी। भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि शांतिपूर्ण यात्रा के आयोजन का अधिकार उनको संविधान देता है और ममता सरकार राजनीतिक प्रतिशोध में इसे रोक रही है। वहीं राज्य सरकार ऐसी किसी यात्रा से प्रदेश में शांति भंग हो जाने की बात कह रही है।
आइए, अब देखें कि दूसरे अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर है कि नहीं और है तो क्या। दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। भास्कर ने इसे अंतिम पन्ने पर दो कॉलम में छापा है। शीर्षक है, “बंगाल में रथयात्रा नहीं सिर्फ रैली और सभाएं करे भाजपा”। दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। नवभारत टाइम्स में यह पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है और विस्तार अंदर के पन्ने पर होने की सूचना भी है। राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में छपी है। फ्लैग शीर्षक है, भाजपा को झटका। मुख्य शीर्षक है, रथयात्रा को मंजूरी नहीं रैली और बैठक की अनुमति। अमर उजाला ने पहले पन्ने पर न्यूजडायरी में इस खबर को अंतिम या तीसरी खबर के रूप में छापा है। शीर्षक है, भाजपा की रथयात्रा को अनुमति नहीं।
तमाम अखबार पलट लेने के बाद लगा कि आज एक और खबर चर्चा लायक थी, जिसे हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर तीन कॉलम में छापा है। प्रधानमंत्री की कोल्लम और बालांगीर की रैली की खबर का शीर्षक है, “सबरीमला मंदर पर केरल सरकार की स्थिति ‘शर्मनाक’ : मोदी”। आप जानते हैं कि जमाने से सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत नहीं है। सप्रीम कोर्ट ने हाल में महिलाओं को प्रवेश की इजाजात दे दी है पर मंदिर प्रशासन इसकी अनुमति नहीं दे रहा है। कुछ महिलाएं मंदिर में जा चुकी हैं। इसके बाद मंदिर को कथित रूप से पवित्र किया गया । कुल मिलाकर यह कानून व्यवस्था का मामला है और केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कराने की कोशिश कर रही है जबकि भाजपा इसके खिलाफ है। खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री ने कल कहा कि कम्युनिस्ट भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं का सम्मान नहीं करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )