अख़बारनामा: नोटबंदी को धक्का बताती राजन की टिप्पणी नभाटा ने अंदर एक कॉलम में निपटा दी

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संजय कुमार सिंह


केंद्र सरकार के पांच साल पूरे होने वाले हैं और पूर्ण बहुमत से चुनकर आई सरकार को फिर से चुनाव मैदान में उतरना है। तैयारियां शुरू हैं और नाम बदलने के साथ मंदिर-मूर्ति की चर्चा भी चल रही है। देश में चुनावी माहौल बनाने में अखबारों की बड़ी भूमिका है और खबरों का खेल इसमें काफी महत्व रखता है। नोटबंदी और जीएसटी पर किसी जानकार की राय ऐसी खेल वाली खबरों में है। सरकार (वित्त मंत्री अपने लेख में) इसे कामयाब तो बताती है पर चुनावी सभाओं में इसका उपयोग वैसा नहीं हो रहा है जैसे किसी सफलता का होना चाहिए।

ऐसे में देश के जाने-माने अर्थशास्त्री, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की टिप्पणी का अपना महत्व है। बर्कले स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में शुक्रवार को ‘भारत के भविष्य’ पर आयोजित दूसरे भट्टाचार्य स्मारक व्याख्यान में राजन ने नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को भारत की आर्थिक वृद्धि की राह में दो बड़ी अड़चन बताया जिसने पिछले साल आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को प्रभावित किया। उन्होंने यह भी कहा कि सात प्रतिशत की मौजूदा वृद्धि दर देश की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है।

राजन ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के लगातार दो झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला। इन झटकों के कारण हमें ठिठकना पड़ा।’ इससे पहले नोटबंदी की दूसरी बरसी पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, ‘नोटबंदी से प्रलय की भविष्यवाणी कर रहे लोग गलत साबित हुए। पिछले दो साल के आंकड़ों से पता चलता है कि टैक्स का दायरा बढ़ा है। अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई और लगातार पांचवें साल भारत सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली मुख्य अर्थव्यवस्था बना हुआ है।’ राजन के यह सब कहने का मतलब है।

इसीलिए दिल्ली के अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे पहले पेज पर रखा है। मुंबई के टीओआई में यह खबर लीड के बराबर में है पर दिल्ली में इसकी जगह सड़क दुर्घटना की खबर है और इस खबर को पहले पेज से पहले के अधपन्ने पर छापा गया है और शीर्षक में ‘नोटबंदी’ का ही प्रयोग किया गया है। कोलकाता के द टेलीग्राफ ने भी इसे पहले पेज पर छापा है। राजन भी कहते हैं नोटबंदी जिम्मेदार है। अखबार ने राजन के हवाले से लिखा है कि 2012 से 2016 तक भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी पर इन दो झटकों ने इसे चूर कर दिया।

हिन्दी अखबारों में अमर उजाला और दैनिक भास्कर ने इस खबर को लीड बनाया है। अमर उजाला में यह पहले पन्ने पर चार कॉलम में है जबकि दैनिक भास्कर में पहले पेज पर एक्सक्लूसिव खबरें हैं और इसे सामान्य खबरों के पहले पेज पर रखा गया है। दोनों अखबारों में यह खबर पूरी प्रमुखता और विस्तार से है।

राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पेज पर है और फ्लैग शीर्षक है, “खरी-खरी : राजन बोले, नोटबंदी जीएसटी से झटका” और मुख्य शीर्षक है, “हर फैसले में पीएमओ का दखल भी बड़ी समस्या”।

नवोदय टाइम्स ने इस खबर को व्यापार की खबरों के पेज पर तीन कॉलम में लीड बनाया है और विस्तार से कई हाईलाइट्स के साथ छापा है।
दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर पेज 19 पर देश-विदेश की खबरों के पन्ने पर दो कॉलम में छोटी सी छापी है। शीर्षक है, “नोटबंदी, जीएसटी से आर्थिक विकास हुआ बाधित।”

नवभारत टाइम्स में यह राजनीति की खबरों के पेज पर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, “एक पावर सेंटर से नहीं हो सकता काम : राजन”। नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था को नुकसान की सूचना बोल्ड में है।

(टाइम्स ऑफ़ इंडिया और नवभारत टाइम्स एक ही ग्रुप के अख़बार हैं। हिंदी में जिस तरह इस ख़बर को कम महत्व दिया गया है, उससे शंका होती है कि हिंदी पाठकों को सूचित करने की राह में कहीं राजनीतिक हस्तक्षेप का राोड़ा तो नहीं। वरना कौन संपादक इस ख़बर को पहले पन्ने पर नहीं रखेगा- संपादक )

दैनिक जागरण में यह खबर आर्थिक खबरों के पेज पर है। शीर्षक है, “नोटबंदी, जीएसटी से विकास दर हुई धीमी।” एक बॉक्स भी है जिसका शीर्षक है, “शक्ति का केंद्रीकरण बड़ी समस्या”। अखबार में संपादकीय पेज पर संजय गुप्त का एक आलेख है जिसका शीर्षक है, नोटबंदी पर घिसी-पिटी राजनीति। हाईलाइट है, “यह सही है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को एक झटका लगा था लेकिन बीते दो साल में यह पटरी पर आ गई है और जीएसटी से भी उबर रही है।”

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।