संजय कुमार सिंह
दैनिक भास्कर ने भाजपा सांसद मनोज तिवारी को अवमानना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से बरी किए जाने लेकिन कड़ी फटकार लगाने की खबर को आज चार कॉलम में लीड बनाया है। मैं लिखता रहा हूं कि सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी कई बड़ी खबरें आम तौर पर अखबारों में पहले पन्ने पर जगह पा जाती हैं और प्रमुखता से छपती हैं। पर आज यह खबर कुछ अलग है और अंग्रेजी के अखबारों, हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस तथा टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पेज पर नहीं है। पर कोलकाता के द टेलीग्राफ ने इसे पहले पेज पर छापा है। कोलकाता हाईकोर्ट के एक अन्य मामले की खबर के साथ।
टेलीग्राफ का शीर्षक हिन्दी में लिखा जाए तो कुछ इस प्रकार होगा, “अवज्ञा के दिनों में, सीना ठोंकने वालों के लिए क्या दया दवा है?” अखबार ने इसके साथ मनोज तिवारी की एक फोटो छापी है जिसमें वे दो उंगलियों से अंग्रेजी का वी अक्षर बनाए हुए दिख रहे हैं। अखबार का कैप्शन है, “विजयी? सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई नहीं की और इसे उनकी पार्टी, भाजपा पर छोड़ दिया उसके बाद विजयी संकेत दिखाते मनोज तिवारी।”
भास्कर ने अपनी खबर के साथ मनोज तिवारी की जो फोटो लगाई है उसमें वह दोनों हाथ जोड़े ऊपर की ओर देख रहे हैं। इसके साथ लिखा है, “मैं कानून का सम्मान करता हूं। इसके बाद (नीचे) लिखा है, स्थिति के अनुसार जो उचित कार्रवाई की आवश्यकता थी वह मैंने की। सिर्फ विरोध के प्रतीक के रूप में मैंने सील तोड़ दी थी। मेरा इरादा कानून का उल्लंघन करना नहीं था। भीड़ को काबू करने और कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रतीकात्मक सील तोड़ने की कार्रवाई जरूरी थी। मैं कानून का सम्मान करता हूं। – मनोज तिवारी” अखबार ने इसके साथ सुप्रीम कोर्ट की चार सख्त टिप्पणियां भी प्रकाशित की हैं और लिखा है, “भले ही कोर्ट ने तिवारी को बरी कर दिया लेकिन उनपर सख्त टिप्पणी की है।” कोर्ट की टिप्पणी उल्लेखनीय है। आप भी पढ़ें।
भीड़ के दबाव पर : मनोज तिवारी की तरफ से पेश वकील से मिला जवाब बेहद चौंकाने वाला था। हमें बताया गया कि मनोज तिवारी एक राजनीतिक पार्टी के प्रसिद्ध नेता हैं और क्षेत्र में देखकर 1500 लोगों की भीड़ वहां पर जमा हो गई। भीड़ के उस दबाव की वजह से उन्होंने सीलिंग को तोड़ दिया। उनके व्यवहार पर : ऐसे व्यवहार के परिणाम विनाशकारी भी हो सकते है। अगर भीड़ एक निर्वाचित सांसद को इससे भी अधिक गंभीर अपराध करने के लिए दबाव डालती है तो इसका मतलब यह होगा कि वह भीड़ के निर्देशों पर वह गंभीर अपराध भी कर देगा। इस तरह की स्थितियां तो बार-बार पैदा हो सकती हैं। नेतागिरी पर : अगर नेता भीड़ का अनुयायी बन जाता है तो वह नेता नहीं रहता। वह उस भीड़ का ही हिस्सा होगा। इस मामले में हमें और अधिक कुछ नहीं कहना है। हम इस मामले में राजनीतिक पार्टी पर निर्णय छोड़ते हैं। गलतबयानी पर : तिवारी ने बेवजह मॉनीटरिंग कमेटी के खिलाफ गलत बयानबाजी की। गलत व्यवहार और छाती ठोक कर कमेटी पर गंभीर मगर गलत आरोप लगाना, यह स्पष्ट दर्शाता है कि कैसे वह किसी भी कानून का कितना कम सम्मान करते हैं।
अखबार ने इसके साथ यह भी लिखा है, अब भी कानूनी कार्रवाई मुमकिन : “बेशक सुप्रीम कोर्ट से भाजपा सांसद मनोज तिवारी को सील तोड़ने के मामले में राहत मिल गई हो, लेकिन पुलिस उनके खिलाफ अब भी कानूनी कार्रवाई कर सकती है। मामला कोर्ट में होने की वजह से पुलिस ने अभी तक सांसद के खिलाफ कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया था। हालांकि, उन पर जो आरोप हैं वे सब जमानती अपराध के दायरे में आते हैं। पुलिस कोर्ट के ऑर्डर को पढ़ कर आगे की कार्रवाई के बारे में विचार कर रही है।” सवाल उठता है कि क्या पुलिस और मनोज तिवारी की पार्टी भाजपा इस मामले में कुछ करेगी? करना होता तो कल का पूरा दिन था और करने की अपेक्षा करने के लिए तमाम अखबार हैं। पर किसी में ऐसा कुछ इस खबर के साथ प्रमुखता से नहीं दिखा जबकि टेलीग्राफ ने आज के संदर्भ में इस फैसले की महत्ता बताने वाले और भी अंशों का उल्लेख किया है।
नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर दो कॉलम में है। शीर्षक है, “तिवारी को फटकार कर कोर्ट बोला, बीजेपी चाहे तो ले ऐक्शन”…उपशीर्षक है, “सील तोड़ने पर अवमानना नहीं”…इस बारे में दैनिक भास्कर ने जस्टिस मदन बी लोकुर के हवाले से यह टिप्पणी चार कॉलम के अपने शीर्षक से ऊपर छापी है, “तिवारी ने जिस डेयरी की सीलिंग तोड़ी, वह मॉनिटरिंग कमेटी के निर्देश पर सील नहीं हुई थी, इसलिए हम उन्हें बरी करते हैं, लेकिन उन्होंने सीना तोड़ कर गलत कार्य किया, इससे हम बेहद आहत हैं”… भास्कर ने लीड का शीर्षक लगाने में ‘बेइज्जत’ और ‘बाइज्जत’ को एक साथ लिखने का अनावश्यक प्रयोग किया है क्योंकि मामला बाइज्जत बरी करने का है ही नहीं। इससे पूरी खबर की गंभीरता कम होती है हालांकि, कुल मिलकार प्रस्तुति शानदार है।
नभाटा ने अपनी खबर के साथ सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी लगाई है जो इस प्रकार है, यह बेहद दुखद है कि एक चुने हुए प्रतिनिधि ने कानून हाथ में लिया। अगर उनकी पार्टी को भी ऐसा ही लगता है तो वह उनपर कार्रवाई कर सकती है। मनोज तिवारी के बयान का शीर्षक है, “मुझे जो ठीक लगा, मैंने किया- मनोज तिवारी”… नीचे लिखा है, ” सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मनोज तिवारी ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते मुझे जो ठीक लगा, मैंने वही किया। इसमें कुछ गलत नहीं था। तिवारी ने मांग की कि मॉनिटरिंग कमिटी को भंग करके नई कमिटी बनाई जाए और जहां भी कमिटी के निर्देश पर सीलिंग हुई है उसकी नए सिरे से जांच हो। अखबार ने इसे पेज पांच पर जारी बताया है।
दैनिक जागरण में आज पहले और दूसरे पेज पर पूरा विज्ञापन है। तीसरे पेज को पहला बनाया गया है। हालांकि उसपर भी खूब विज्ञापन है और उसपर भी यह खबर नहीं है। चौथे पर भी विज्ञापन है और पांचवें को भी पहले पेज जैसा बनाया गया है। हालांकि मनोज तिवारी वाली खबर इसपर भी नहीं है। छठे पेज पर, “सांसद मनोज तिवारी को ‘सुप्रीम’ राहत” शीर्षक से यह खबर तीन कॉलम में है। इसके साथ कोर्ट की तीखी टिप्पणियां भी हैं। सिंगल कॉलम की एक खबर भी है जिसका शीर्षक, “पिक एंड चूज पर सीलिंग न करें मॉनिटरिंग कमेटी : मनोज तिवारी” है… जागरण ने हाथ जोड़े ऊपर देखते मनोज तिवारी की फोटो का कैप्शन लगाया है, राहत मिलने के बाद मनोज तिवारी ने इस तरह ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।
नवोदय टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पेज पर नहीं है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।