संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों में भी बुलंदशहर की घटना ही छाई हुई है। आइए देखें कि सांप्रदायिक तनाव और उच्च राजनीतिक तापमान की स्थिति में यह फॉलो अप कैसा है। सबसे पहले द टेलीग्राफ। खबर पहले पेज पर लीड है। शीर्षक का अनुवाद मोटे तौर पर इस तरह होगा, “साजिश का आरोप मजबूत हुआ, भूमि मालिक ने कहा कि बरामद पशु अवशेष खेत में दफन नहीं करने दिया गया”। अखबार ने उस खेत के मालिक राजकुमार चौधरी की पत्नी के हवाले से लिखा है कि वे बरामद अवशेष को वहीं दफन कर देना चाहते थे पर बाहरी लोगों ने हमें ऐसा नहीं करने दिया। यह पूरा मामला अलग है जो किसी अखबार में प्रमुखता से नहीं दिखा। हिन्दी अखबारों में स्थानीय खबर या सूचना के नाम पर ऊल-जलूल विस्तार और अनावश्यक जानकारी है पर इस लीड को फॉलो नहीं किया गया है। इस सूचना के बावजूद की मारे गए इंस्पेक्टर की पत्नी ने कहा कि उन्हें धमकी आती थी। जाहिर है, धमकी आती थी तो भाजपा के करीबी लोगों की होगी। पुलिस उस लीड के अनुसार जांच कर पाएगी कि नहीं – ऐसे में खबर तो यह है। पर …
हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को चार कॉलम में लीड बनाया है। शीर्षक का अनुवाद मोटे तौर पर इस प्रकार होगा, “पुलिस वाले की हत्या का मुख्य अभियुक्त बजरंग दल वाला है”। उपशीर्षक है, “बुलंदशहर – पुलिस ने चार को गिरफ्तार किया, कहा मुख्य अभियुक्त फरार है; परिवार ने सरकार की निन्दा की”। अखबार ने मुख्य खबर के साथ तीन कॉलम में एक और खबर छापी है जिसका शीर्षक है, “उत्तर प्रदेश सरकार दबाव में आई तो भाजपा नेता साजिश का शोर मचाने लगे”। खबर यही कहती है कि घटना के लिए नेता प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पेज पर दो कॉलम में है। शीर्षक है, “यूपी में पुलिस वाले की हत्या 4 गिरफ्तार, मुख्य साजिशकर्ता बजरंगदल का, फरार”। इसके साथ अखबार ने एक और खबर सिंगल कॉलम में छापी है जिसका शीर्षक है,”गोहत्या पर कार्रवाई :मुख्य मंत्री योगी”।
इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को पहले पेज पर तीन कॉलम में छापा है। शीर्षक है, “बजरंग दल से पूर्व प्रधान तक बुलंदशहर की भीड़ के कुछ लोगों से मिलिए”। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें भीड़ में मौजूद कुछ लोगों का परिचय दिया गया है और इनमें बजरंग दल के लोगों से लेकर पूर्व प्रधान तक शामिल हैं। अखबार की यह एक्सक्लूसिव खबर है और परिश्रम व खर्च करके तैयार की गई लगती है। इसमें मुख्य अभियुक्त को बजरंग दल से जुड़ा बताया गया है और यह पुलिस के हवाले से है। पुलिस ने उसे बजरंग दल का जिला संयोजक कहा है। अखबार ने इसके साथ दो कॉलम में एक और शीर्षक लगाया है, “रोते हुए बेटे ने पूछा : अगली बारी किसके पिता की?”
दैनिक भास्कर ने इस खबर को सात कॉलम में लीड बनाया है। फ्लैग शीर्षक है, “बुलंदशहर हिंसा – गोहत्या के संदेह पर उग्र हुई भीड़ में शामिल चार हमलावर गिरफ्तार, 27 नामजद, 60 अज्ञात”। मुख्य शीर्षक है, “इंस्पेक्टर की हत्या करने वाली भीड़ का लीडर बजरंग दल का जिला प्रमुख अन्य आरोपी भारतीय जनता युवा मोर्चा और विश्व हिन्दू परिषद के”। अखबार ने फ्लैग शीर्षक के आखिर में लिखा है, 27 नामजद, 60 अज्ञात। वैसे तो यह पुरानी सूचना है और कल भी छपी थी। पर आज उसके नीचे मुख्य खबर से अलग एक कॉलम की एक खबर लगाई है जिसका शीर्षक है सभी फरार, यूपी पुलिस उनके संगठनों के नाम बताने को भी तैयार नहीं। मुझे नहीं लगता कि इसमें भी कुछ नया है। आरोपी शुरू में फरार होते ही हैं। पकड़ने में समय लगता ही है।
भास्कर की खबर का इंट्रो है, “झड़प में मारे गए युवक का परिवार भी मांग रहा था 50 लाख रुपए, 5 लाख पर माना”। मेरा मानना है कि अखबार में छपी सूचनाएं नजीर होती हैं, लोग याद रखते हैं और इस आधार पर आगे की कार्रवाई करते हैं। यह मामला ऐसा नहीं है कि इतनी चर्चा करके छोड़ दिया जाए। इस पर एक अलग खबर होनी चाहिए थी और बताया जाता कि दोनों तरफ से क्या तर्क और दलीलें थीं। सरकारी कायदा क्या है, या है भी कि नहीं और यह भी कि ड्यूटी पर मारे जाने और भीड़ में होने की वजह से गोली लग जाने से मरने में फर्क होता है।
नवोदय टाइम्स ने इस खबर को लीड बनाया है। बुलंदशहर कांड के तहत, “27 नामजद 4 गिरफ्तार” शीर्षक है और उपशीर्षक, “मुख्य आरोपी बजरंग दल के नेता की तलाश, इंस्पेक्टर की राजकीय सम्मान से अंत्येष्टि” से यह फॉलोअप खबर की तरह है। दैनिक जागरण ने पहले पेज पर चाल कॉलम में शीर्षक लगाया है, “मुख्य आरोपित बजरंग दल नेता योगेश राज फरार”। अखबार ने इस खबर के साथ इससे जुड़े अन्य पहलू और दूसरे अंश भी छापे हैं। अखबार ने पहले पेज पर खबर के साथ सूचना छापी है, गोकशी पर बवाल विशेष पेज -11। यहां करीब तीन चौथाई पेज में कई खबरें हैं और इनमें एक खबर, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा कराना तो नहीं था मकसद” शीर्षक से इस पेज पर लीड है।
अमर उजाला ने भी इस खबर को लीड बनाया है। शीर्षक तो सूचना देने वाली है लेकिन खबर के कई पहलू और अन्य संबंधित विवरण मुझे लगता है जरूरत से ज्यादा हैं। ऐसी ही एक खबर है, “इंस्पेक्टर की पत्नी ने कहा – मुझे सौंप दो हत्यारे, मैं मारूंगी (पेज4)”। एक और खबर है, “इंस्पेक्टर की पत्नी बोलीं – पति को मिलती थीं धमकियां”। कायदे से इसका विस्तार होना चाहिए था पर वह नहीं है। अखबार में एक और सूचना प्रमुखता से है, “एडीजी आनंद कुमार ने बजरंग दल का नाम लेने से किया परहेज कहा, दोषियों पर करेंगे सख्त कार्रवाई, एसआईटी-एडजी जांच में सामने आएगा पूरा सच।” यही नहीं, अखबार ने सियासत बुलंद के तहत सभी नेताओं के बयान एक साथ छापे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि परिश्रम और समय इसमें भी लगाया गया है पर क्या इसकी जरूरत है? रिकार्ड और संदर्भ के लिए तो ये सूचनाएं ठीक हैं पर आम पाठक को क्या इसकी जरूरत है? इतना वह पढ़ेगा?
हि्दुस्तान ने इसे पहले पेज पर टॉप के चार कॉलम में छापा है। शीर्षक है, “कातिलों की तलाश, हिन्दू संगठनों पर निगाहें”। पेज 7 पर, “घटना बड़ी साजिश” खबर होने की सूचना है। यह पेज असल में गोकशी पर हिन्सा से जुड़ी खबरों का पेज है। और इस पर कई खबरें हैं। इनमें लीड है, “एफआईआर ने पुलिस की पोल खोली”। फ्लैग शीर्षक है, “लगातार मुठभेड़ करने वाली पुलिस नहीं चला सकी गोली , सिर्फ होमगार्ड ने हवाई फायर किया”। यहां और दूसरे अखबारों में भी एक गैर जरूरी सूचना खूब प्रमुखता से छपी है जो निश्चित रूप से पुलिस की दी हुई होगी। खबर है कि .32 बोर की गोली से हुई इंस्पेक्टर और सुमित की हत्या। यह जांच का एक हिस्सा है और आम पाठक को इससे कोई मतलब होगा ऐसा मुझे नहीं लगता है। इसलिए, मुझे यह और ऐसी कई सूचनाएं बेकार लगीं।
और शायद इसीलिए इंदौर के दैनिक प्रजातंत्र ने इस मामले को लीड तो बनाया है पर खबर इतनी ही छापी है।