आइए, बताऊं कैसे? सबसे पहले द हिन्दू में आज टीकाकरण पर तीन खबरें पहले पन्ने पर हैं, इंडियन एक्सप्रेस में यह बहत सामान्य घटना की तरह है, मंत्रालय ने कहा कोई संबंध नहीं और बात खत्म, शैली में जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, टीकाकरण हिचक की बाधा से जूझ रहा है। टीकाकरण शुरू होने की खबर का शीर्षक टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में बिल्कुल एक ही था। पर आज दोनों का शीर्षक एक ही खबर के मामले में काफी अलग या उलट है। एक तरफ इंडियन एक्सप्रेस ने अगर मामले को सामान्य बताने की कोशिश की है और स्वास्थ्य मंत्रालय के कोई संबंध नहीं को प्रमुखता दी है तो टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक भी टीकाकरण अभियान की पोल खोलने वाला है। इसके साथ दूसरी खबर के शीर्षक का भाव है, सरकार ने अपने बचाव में अलर्ट जारी कर दिए या अलर्ट जारी कर औपचारिकता निभाई।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने पांच कॉलम में छापा है कि कोवैक्सिन बनाने वाली फर्म ने नागरिकों को चेतावनी दी कि मेडिकल कंडीशन हो तो टीका न लें। यह चेतावनी तीन लाख से ज्यादा लोगों को टीका लगने के बाद आ रही है और कई लोगों को टीका लग गया यह मनुष्य को गिनीपिग बनाने का ही उदाहरण है। कोई भी दवा किसी भी बीमार को बिना उसका लाभ-नुकसान जाने क्यों दी जानी चाहिए। पर यह दवा दी गई क्योंकि सरकार ने अनुमति दे दी है और जब नुकसान हो गया तब चेतावनी। यह चेतावनी पहले ही आनी चाहिए थी और मेडिकल कंडीशन वालों को कोई अनजानी दवा नहीं दी जानी है यह सामान्य समझ है। आज की खबरें पढ़कर लगा रहा है कि अघोषित रूप से प्रयोग चल रहा हो, किसी सौदे के तहत या किसी मकसद से देश की जनता को गिनीपिग बना दिया गया है और टीके के दुष्प्रभाव को बहुत ही सामान्य ढंग से लिया जा रहा है।
दूसरी तरफ, अखबार पूरी बात सही ढंग से नहीं बता रहे हैं। यह जानबूजकर हो रहा हो, अनजाने में हो या पूर्वग्रह के कारण पर आज तो साफ दिखाई दे रहा है। और यह इंडियन एक्सप्रेस तथा टाइम्स ऑफ इंडिया में इस मामले में छपी खबरों से साफ है। टीकाकरण के प्रभाव की स्थिति में मुआवजा के लिए क्या स्थिति है इस संबंध में पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने आरटीआई के जरिए स्वास्थ्य मंत्रालय से यह जानकारी मांगी थी कि देश मे मुफ्त वैक्सीन लगाने की लागत क्या आएगी और इसका खर्च कौन उठा रहा है? जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि उक्त जानकारी देना देशहित में नहीं है।
जाहिर है, खर्च भारत सरकार नहीं उठा रही है, पीएम केयर्स उठा रहा होता तो बताने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी और भाजपा या कोई गैर सरकारी संगठन बगैर किसी स्वार्थ के उठाएगा तो खुद बताएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है। भारी खर्च उठाने वाले का नाम नहीं बताने का साफ मतलब है कि उसके स्वार्थ अलग हैं और इस संबंध में टीका बनाने वाली कंपनी द्वारा चंदा दिए जाने तथा उसे सरकार संरक्षण और प्रचार का मौका देने की खबर पहले से है। ऐसे में आज “द हिन्दू” में टीकाकरण से संबंधित तीन खबरें चौंकाती हैं। मीडिया पर सरकारी नियंत्रण और टू मच डेमोक्रेसी में मीडिया की हालत के मद्देनजर जो खबर नहीं है उनकी तो छोड़िए जो हैं वो कम डरावनी नहीं हैं। खासकर इसलिए भी टीका लगावाने वालों में सरकार और नेता लोग आगे नहीं हैं।
हिन्दू की पहली खबर लीड है, “एलर्जी, बुखार और खराब प्रतिरक्षण की स्थिति में कोवैक्सिन का उपयोग नहीं किया जाएगा”। उप शीर्षक है, “भारत बायोटेक ने भी खून पतला करने वाली दवाइयों का उपयोग करने वालों में टीके का उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी।” धूम-धड़ाके से जांच शुरू होने के बाद इस तरह की चेतावनी और निर्णय टीकाकरण का सच तो बताते ही हैं यह भी पता चलता है कि भारत में सबसे पहले टीका उपलब्ध होने के दावे के बीच भारत को प्रयोगशाला बना दिया गया है और नागरिकों को गिनी पिग। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब इस तरह चलता नहीं रह सकता है लेकिन जब तक समझ में आएगा या हम संभलेंगे तब तक दवा बनाने वाली कंपनियों का काम पूरा हो गया रहेगा और उन्हें पर्याप्त गिनी पिग लगभग मुफ्त में मिल चुके होंगे। हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार अभी तक (तीन दिन में) 429409 लाख लोगों को टीका लग चुका है।
हिन्दू की दूसरी खबर इसी क्रम में है पर आगे की जानकारी भी देती है जो दूसरे अखबारो में नहीं है या कम प्रमुखता से है। हिन्दू में शीर्षक है, “तीसरे दिन 1.48 लाख लोगों को टीका लगा। प्रतिकूल मामले 580 हुए।“ प्रतिशत में यह संख्या चाहे जितना कम हो 580 लोग कम नहीं होते हैं। भले ही इन लोगों ने स्वेच्छा से टीका लगवाया हो पर आश्वासन (या प्रेरणा) तो भारत सरकार और प्रधानमंत्री का है। मीडिया का काम लोगों को सही स्थिति बताना है पर वह मुख्य रूप से प्रचारक की भूमिका में है। कहने की जरूरत नहीं है कि टीका लेने वालों की संख्या कम हो रही है। लक्ष्य पहले दिन ही पूरा नहीं हुआ था पर 1.91 लाख लोगों को टीका लगा था। तीसरे दिन यह संख्या 1.48 लाख रह गई। अगर टीका फायदेमंद है सबको लगना है और रोज एक लाख लोगों को महीनों लगता रहे तो 100 दिन में एक करोड़ लोगों को लग पाएगा। 135 करोड़ लोगों को लगने में कितना समय लगेगा इसका अंदाजा लगाया फिर समझिए कि जल्बाजी क्यों मचाई जा रही है और टीका लगने या इसके असर के मामले में जल्दबाजी का कोई मतलब है? बेशक मकसद चुनाव में लाभ उठाना है।
पहले पन्ने पर द हिन्दू की तीसरी खबर का शीर्षक है, टीका लगवाने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की संख्या कम हुई। सोमवार को यह संख्या 16.7 प्रतिशत कम हुई। 24 साधारण और दो गंभीर प्रतिकूल मामलों की रिपोर्ट हुई। कहने की जरूरत नहीं है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और उनके साथ सफाई कर्मचारियों को पहले टीका लगाना सुनने में भले सामान्य लगता हो पर टीके की जांच जब पूरी नहीं हुई है और उससे नुकसान के मामले सामने आ रहे हैं तो स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ज्यादा समय तक बेवकूफ बनाना संभव नहीं है और उसका असर दिख रहा है। आगे और दिखेगा। देखना है किसान कानून वापस नहीं लेने वाली सरकार इस मामले में अपने निर्णय लागू करवाने के लिए क्या करती है।
जो बात मैंने हिन्दू की तीन खबरों को पढ़ने के बाद कही है वही ‘खबर’ हिन्दुस्तान टाइम्स में आज लीड है। शीर्षक है, टीका हिचक की बाधा से जूझ रहा है। जब कुछ साफ-साफ बताया नहीं जा रहा है, कई सवाल अनुत्तरित हैं तो लोग क्यों न हिचकें?। जब मामला स्वास्थ्य का है। जान जा सकती है और फायदा कोई नहीं है या खास नहीं है। निश्चित रूप से हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर अगर टीकाकरण की नकारात्मक छवि बनाती है और मुमकिन है सरकार को पसंद न आए तो इंडियन एक्सप्रेस की खबर में वह गंभीरता नहीं है जो मुझे हिन्दू और हिन्दुस्तान टाइम्स की खबरों से नजर आ रही है। जाहिर है, आम पाठक खासकर हिन्दी का जो एक ही अखबार पढ़ता है और जो लोग अखबार नहीं पढ़ते हैं वे इस तथ्य को जान ही नहीं पाएंगे।
इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर बहुत ही सकारात्मक अंदाज में छपी है। टॉप पर छपी इस दो कॉलम की खबर का शीर्षक तीन लाइन में है, “टीका लगवाने वालों की संख्या तीन लाख पार कर गई; दो मौतें पर कोई संबंध नहीं है : मंत्रालय”। हिन्दुस्तान टाइम्स ने चार लाख से ज्यादा लिखा है पर शीर्षक इतना सकारात्मक नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस का उपशीर्षक है, “उत्तर प्रदेश में वार्ड ब्वाय, बेलारी में 43 साल के व्यक्ति की मौत कार्डियोपलमनोनरी डिजीज से हुई”। कहने की जरूरत नहीं है कि किसी व्यक्ति को टीका लगने के बाद कार्डियोपलमनोनरी डिजीज हो जाए और यह इतना गंभीर हो कि उससे मौत भी हो जाए तो क्या टीका (जो अभी तक पूरी तरह जांचा नहीं गया है) दाग मुक्त हो सकता है? दूसरे दवाइयों के परीक्षण में नियम है कि स्वस्थ व्यक्ति को ही टीका लगाया जाएगा और कोई बीमारी हो तो पहले बताया जाएगा और उसका ख्याल रखा जाएगा। क्या इन मामलों में ऐसा हुआ? अगर बीमारी पहले से थी तो टीका लगना ही नहीं चाहिए था – चाहे जिस कारण से उसे टीक लगा, टीका लगाने का काम जल्दबाजी में किए जाने के कारण ही लगा पर अखबार उस मामले में शांत है। अगर अखबार यह सब नहीं देखेंगे तो मरने वालों को कौन पूछता है?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।