नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाये तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर दिल्ली के सभी बॉर्डर केंद्रों पर 25 नवम्बर 2020 से ही विभिन्न राज्यों के लख-लख किसानों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के बीच सीमावर्ती उत्तर प्रदेश में घोषित पंचायत चुनाव में फंसी भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) को बिहार में भी तीन स्तरीय पंचायत के इसी बरस अप्रैल-मई में संभावित चुनावों को लेकर पसीने छूटने लगे हैं।
बिहार के पंचायत चुनाव के कार्यक्रम की अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। इसे संपन्न कराने के लिए बिहार राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारियां जोरों पर हैं। इन तैयारियों के बीच ही राज्य में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नितीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में भाजपा और अन्य दलों के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) की 81 दिन पुरानी गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल का आज विस्तार कर दिया गया। पंचायत चुनाव की तैयारियों का और जायजा लेने से पहले हम चुनाव चर्चा के इस अंक में इस मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा करेंगे। गौरतलब है कि हम इस कॉलम के हालिया अंक में उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव की विस्तार से चर्चा कर चुके हैं.
मंत्रिमंडल विस्तार
मोदी सरकार के पूर्व मंत्री और भाजपा के मुस्लिम चेहरा ,शाहनवाज हुसैन की हालिया विधान परिषद उपचुनाव में जीत के साथ ही उनका सियासी पुनर्वास तय हो गया था। उनको नीतिश कुमार मंत्रिमंडल के विस्तार में आज मंत्री भी बना दिया गया. लोकसभा और राज्यसभा के भी कई बार सदस्य रहे शाहनवाज हुसैन को भविष्य में मुख्यमंत्री पद के लिये भाजपा तुरूप के पत्ते की तरह आजमायेगी, ऐसे कयास लगने शुरु हो गये हैं। जदयू और भाजपा के बीच सरकार का नेतृत्व , उत्तर प्रदेश की सियासत में विगत में हुए प्रयोग की भांति ‘चक्रवार’ यानि कुछ माह या बरस पर बारी-बारी से बदलने का फार्मूला आजमाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
इजरायल में मिली-जुली सरकार के नेतृत्व के विगत में आरम्भ पैटर्न पर भारत में पहली और अभी तक आखिरी बार ये फार्मूला उत्तर प्रदेश में 1990 के मध्य में आजमाया गया था. इसकी बदौलत पूर्व मुख्यमंत्री एवम बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती, भाजपा के समर्थन से छह माह के लिये मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गयी थीं लेकिन उन्होंने इस फार्मूला के तहत भाजपा नेता कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री कुर्सी संभालने का समर्थन नहीं किया। ये दीगर बात है कि भाजपा ने बसपा समेत कुछ दलों के विधायकों को फोड़ कर और कुछ अन्य दलों का समर्थन जुटा कर कल्याण सिंह के कुर्सी पर बैठने का प्रबंध कर लिया।
बिहार में अगर वह फार्मूला आजमाया गया तो नये मुख्य्मंत्री के नाम पर भाजपा में शाहनवाज हुसैन के सिवा कोई बड़ा नेता फिलहाल सक्रिय नहीं है। हालिया बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जदयू के नेतृत्व में भाजपा और कुछ छोटे दलों की नई सरकार बनने पर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री कुर्सी पर फिर और कुल मिलाकर पांचवी बार काबिज होने में कामयाब रहे. नये चुनाव में निर्वाचित भाजपा विधायक, जद विधायक से कहीं ज्यादा हैं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा के बडे प्रांतीय नेता सुशील कुमार मोदी को नये मंत्रिमंडल से बाहर ही रखा गया. उन्हे प्रधानमंत्री मोदी के संक्षिप्त नाम, नमो की तर्ज पर ‘सुमो‘ और ‘छोटा मोदी’ भी कहते हैं. बाद में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के रचे नये चक्रव्यूह के तहत सुमो जी सूबे की सियासत से ही हटा दिया गया. उन्हें बिहार से दिल्ली भेज दिया गया जहाँ वह इसी सूबे से राज्यसभा सदस्य बन गये हैं. विधान परिषद की सीट से दिये उनके इस्तीफे के कारण हुए उपचुनाव में ही शाहनवाज हुसैन निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. शाहनवाज 1990 के दशक में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्यमंत्री रह चुके हैं।
नीतीश कुमार ने कल ही एक समारोह के दौरान पत्रकारों से कहा था कि नए मंत्रियों की सूची पर भाजपा की हरी झंडी मिलते ही मंत्रिमंडल का विस्तार कर देंगे। उन्होंने वही किया जो फिर साबित करता है कि मुख्यमंत्री की उनकी कुर्सी भाजपा के रहमो करम पर टिकी हुई है।
नीतिश बाबू ने नए चुनाव के बाद नई सरकार के गठन के समय खुले आम कहा था उन्होंने मुख्यमंत्री का पद भाजपा को देने की पेशकश की थी जिसे भाजपा ने स्वीकार नहीं किया। भाजपा के उस अस्वीकार के रहस्य को समझना मुश्किल नहीं है. भाजपा ने चुनाव में नीतिश कुमार को ही मुख्यमंत्री पद के लिए एनडीए के दावेदार रूप में पेश किया था। अमित शाह ने यहाँ तक कह दिया था कि चुनाव में भाजपा से ज्यादा विधायक जदयू के जीत जाने पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे।
बहरहाल, भाजपा की ये दिलदारी दिखावटी लगती है और वह मौक़ा मिलते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी अपने को बैठा सकती है।
बिहार में सरकार का नेतृत्व भाजपा का रहे ये उसका ही नहीं उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( आरएसएस ) का भी पुराना सपना है। त्रिपुरा जैसे राज्यों में पहले कभी भाजपा का कोई विधायक नहीं था। वहाँ भी भाजपा की अपनी सरकार बन गई। लेकिन बिहार में कभी उसकी अपनी सरकार नहीं बनी। यह बात भाजपा को टीस पहुँचाती है।
मंत्रिमंडल विस्तार में 17 और मंत्री बनाये गए। भाजपा कोटे से नौ और जदयू कोटे से आठ नए कैबिनेट मंत्री बने , जिससे अब कुल 31 मंत्री हो गए। नये मंत्रियों के शपथ के बाद उनके विभाग का बँटवारा भी कर दिया गया है. आपराधिक छवि के पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी को जदयू कोटा से फिर मंत्री बनाया गया है. वह 1999 में और 2014 में भी मंत्री रहे थे. जदयू कोटा से बने अन्य नए मंत्रियों में श्रवण कुमार, संजय झा और लेसी सिंह प्रमुख हैं.
भाजपा के नए मंत्रियों में नितिन नवीन ( बांकीपुर) , सुभाष सिंह (गोपालगंज ) ,भागीरथी देवी ( रामनगर )और कृष्ण कुमार ऋषि (बनमनखी) प्रमुख हैं. इस विस्तार से पहले मंत्रिमंडल के 14 सदस्यों में मुख्यमंत्री नितीश समेत 5 जदयू के तथा दो उपमुख्यमंत्री, तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी समेत सात मंत्री भाजपा के थे. दो नए मंत्री एनडीए में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा (हम) के हैं.
विधान सभा की कुल 243 सीटों के निर्धारित अनुपात में राज्य में अधिकतम 36 मंत्री बनाये जा सकते हैं। इस हिसाब से अभी पांच सीट और खाली है. अभी एनडीए में शामिल दलों के 127 विधायक हैं जो स्पष्ट बहुमत से कुछ ही ज्यादा हैं. इनमें भाजपा के 74 , जदयू के 44 , हम के 4 , वीआईपी के 4 और शेष अन्य दलों के या निर्दलीय हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल राजद के 75, कांग्रेस के 19 तथा कम्युनिस्ट पार्टियों में से भाकपा माले के 12 , माकपा के 2 और भाकपा के 2 समेत अन्य दलों के कुल 110 विधायक हैं. शेष विधायक सत्तारूढ़ एनडीए और महागठबंधन के बाहर के दलों के और निर्दलीय हैं. उनमें हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम के पांच विधायक और लोक जनशक्ति पार्टी का भी एक विधायक हैं. भाजपा के विजय कुमार सिन्हा विधान सभा अध्यक्ष हैं.
बिहार विधानसभा भवन के सौ वर्ष
रोमन स्थापत्य शैली में बने राज्य विधानसभा भवन का सात फरवरी को एक सौ वर्ष पूरा हुआ. इसी दिन 1920 में इसकी पहली बैठक हुई थी, जिसे ब्रिटिश राज में बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा ने सम्बोधित किया था।
पंचायत चुनाव
बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. इस बार ऑनलाइन नामांकन की व्यवस्था भी होगी। आयोग, कोरोना कोविड 19 महामारी से निपटने की केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार ही ये चुनाव कराएगा। पंचायत चुनाव में पहली बार इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन (इवीएम) का प्रयोग किया जाएगा।
पंचायत चुनाव के लिए आयोग ने 19 फरवरी को मतदाता सूची का अंतिम तौर पर प्रकाशन करने के निर्देश दिए हैं. सभी जिलों में 24 फरवरी तक मतदाता सूची का प्रकाशन कर दिया जाएगा।
भारत के संविधान में 1992 में 73 वें संशोधन अधिनियम के तहत वर्ष 2006 में बिहार पंचायत राज अधिनियम बना। इसके तहत ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत , प्रखंड (ब्लॉक) स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद हैं. पूरे राज्य में अभी 8386 ग्राम पंचायत, 534 पंचायत समिति और 38 जिला परिषद हैं. ग्राम पंचायत वार्डों में विभक्त हैं जिनकी पूरे बिहार में कुल संख्या करीब 1.15 लाख है. हर ग्राम पंचायत के साथ ग्राम कचहरी भी कायम है.
बैठ मुसहरी पंचायत
हम खुद सहरसा जिला के 151 पंचायत में से सोनबरसा प्रखंड के ” बैठ मुसहरी पंचायत” के वोटर हैं. इसके प्रथम मुखिया बसनही गाँव वासी हमारे बाबा एवं स्वतंत्रता सेनानी मुक्तिनाथ झा थे। वे कई दशक तक मुखिया रहे और कुछ वर्ष पहले दिवंगत हुए. वे बिहार के प्रथम निर्वाचित स्नातक शिक्षा प्राप्त मुखिया थे। उनके बाद उनके दूर के रिश्ते के पौत्र इसी गाँव के स्नातक शिशिर कुमार झा दो बार मुखिया चुने गए, उनके पितामह के भ्राता शम्भूनाथ झा बिहार से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक सर्चलाइट , इंडियन नेशन , दैनिक प्रदीप और आर्यावर्त के सम्पादक रहे। वह बिहार विधान परिषद के सदस्य थे और संयुक्त विधायक दल की मिली जुली सरकारों के दौर में 1960 के दशक में समाजवादी नेता बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की 13 दिन टिकी सरकार में मंत्री भी रहे।
इस पंचायत के मुखिया अभी रामलगन यादव है. पंचायत का नाम अधिसंख्यक मुसहर अनुसूचित जाति के आधार पर रखा गया। इस पंचायत में अभी करीब पांच हजार वोटर हैं जिनमें अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों और ब्राम्हण के अलावा बड़ी संख्या में संथाल आदिवासी भी बसे हुए हैं.
पंचायत में शिक्षा का स्तर संतोषजनक है। अकेले बसनही गाँव में चार स्कूल है। पंचायत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बिदेसिया मजदूर के रूप में कृषि एवं निर्माण कार्यों में मजदूरी करने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जाता है। जाहिर है पंचायत चुनाव में दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन का असर पड़ सकता है.
*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।