सत्रहवें लोकसभा चुनाव के साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लंबित चुनाव ‘सुरक्षा’ कारणों से नहीं कराने का निर्वाचन आयोग का निर्णय अधिकतर कश्मीरियों के पल्ले नहीं पड़ा। राज्य में लोकसभा की सभी छह सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। लोकसभा के लिए राज्य में पांच चरणों में 11 अप्रैल, 18 अप्रैल, 23 अप्रैल, 29 अप्रैल और 6 मई को मतदान कराये जा रहे है। सुरक्षा कारणों से अनंतनाग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में तीन चरणों में मतदान होगा, लेकिन 87 सीटों की विधानसभा के चुनाव टाल दिए गए हैं। प्रथम चरण में जम्मू में 72 प्रतिशत और बारामूला में 35 प्रतिशत मतदान की खबर है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से मिली जांकारी के अनुसार 54 फीसदी विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने भी वोट डाले। कहीं से अप्रिय घटना की खबर नहीं है। ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि विधानसभा चुनाव साथ में नहीं कराने के पीछे सुरक्षा के कारण होने का आधार कितना तार्किक है।
हिमालय की वादियों में पसरे इस राज्य के मुख्यतः तीन क्षेत्र हैं: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की एक करोड़ से कुछ अधिक आबादी का 67 प्रतिशत मुस्लिम, 30 फीसदी हिन्दू और एक प्रतिशत से कुछ अधिक बौद्ध है। राज्य का 78114 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान अधिकृत है जिसमें से 5180 वर्ग किलोमीटर उसने चीन को सौंप रखा है। चीन ने भी लेह (लद्दाख) के 37555 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है
1934 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह के शासन में तब के विधायी निकाय प्रजा सभा के लिए प्रथम चुनाव हुए थे। इसमें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित 21 सीटों में से 14 मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ने जीती थीं। इस रियासत का 1947 में विलय हो जाने के बाद भारत के संविधान से अलग बने राज्य के संविधान के तहत 1957 में चुनाव के बाद शेख अब्दुल्ला प्रथम मुख्यमंत्री बने। जम्मू-कश्मीर के 20वें संविधान संशोधन, 1988 के जरिये विधानसभा की सीटों की संख्या 111 कर दी गयी। इनमें से 24 पाकिस्तान अधिकृत हिस्से में हैं जहां राज्य के संविधान की धारा 48 के तहत चुनाव कराने की अनिवार्यता नहीं है। इसलिए सदन की प्रभावी सीटें 89 ही हैं जिनमें दो मनोनीत सीटें शामिल हैं। सदन की 46 सीटें कश्मीर घाटी में, 37 जम्मू में और चार लद्दाख क्षेत्र में हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में छह में से तीन सीटें- जम्मू, उधमपुर और लद्दाख बीजेपी ने जीती थीं। तीन अन्य- अनंतनाग, बारामुला और श्रीनगर पीडीपी ने जीती थीं। श्रीनगर में करीब 14 लाख मतदाता हैं। श्रीनगर लोकसभा सीट से निर्वाचित पीडीपी के तारीक अहमद कारा ने जब अक्टूबर 2016 में इस्तीफा दे दिया तो वहां अप्रैल 2017 के उपचुनाव में फारुख अब्दुल्ला जीते। श्रीनगर में फारुख अब्दुल्ला प्रत्याशी हैं। लोकसभा की 2016 से ही रिक्त अनंतनाग सीट पर उपचुनाव ‘सुरक्षा कारणों’ से नहीं कराये गए। अनंतनाग सीट 2016 में महबूबा मुफ़्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से उनके दिए इस्तीफा के कारण रिक्त हुई थी। इस बार अनंतनाग में तीन चरणों में मतदान कराये जा रहे है। वहां करीब 13 लाख मतदाता हैं। महबूबा मुफ़्ती यहां से पीडीपी की प्रत्याशी हैं।
उत्तरी कश्मीर के बारामुला लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में करीब 11 लाख मतदाता हैं। पिछली बार पीडीपी के मुजफ्फर हुसैन बेग यहां से जीते थे। इस बार भाजपा ने मोहम्मद मकबूल वार को और कांग्रेस ने फारुक अहमद मीर को प्रत्याशी बनाया है। जम्मू लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में करीब 18 लाख मतदाता हैं। 2014 में यहां से भाजपा के जुगल किशोर जीते थे। लद्दाख में कुल 1.6 लाख मतदाता हैं। पिछली बार यहां से जीते भाजपा के थुप्सतान छिवांग ने क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाकर 2018 में पार्टी और संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था।
उधमपुर से 2014 में भाजपा के जितेंद्र सिंह जीते थे। 2014 के चुनाव में भाजपा ने जम्मू और उधमपुर की सीटें जीती थीं। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने वहां अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किये हैं, लेकिन कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का गठबन्धन चुनावी मुकाबले में डटा है।
भारत के संविधान से अलग जम्मू-कश्मीर के अपने संविधान के प्रावधानों के तहत वहां विधानसभा चुनाव छह बरस पर कराये जाते हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के नवम्बर-दिसंबर 2014 में हुए पिछले चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। तब भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी। पीडीपी नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद उनकी पुत्री महबूबा मुफ़्ती ने दोनों के गठबंधन की नई सरकार बनाने के लिए कोई हड़बड़ी नहीं की। वह काफी सोच-समझ कर ही 4 अप्रैल 2016 को पीडीपी-भाजपा गठबंधन की दूसरी सरकार की मुख्यमंत्री बनीं। दोनों दलों के बीच कभी कोई चुनावी गठबंधन नहीं रहा। दोनों ने सिर्फ राज्य की सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनाव पश्चात गठबंधन किया। यह गैर-चुनावी गठबंधन अगले चुनाव के पहले ही टूट गया। बीजेपी इस गठबंधन की सरकार के रहते हुए अगले आम चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी।
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में जो अपनी ही गठबंधन सरकार गिरायी उसके गहरे चुनावी निहितार्थ थे। भाजपा प्रवक्ता राम माधव ने ऐसा करने के दो बड़े कारण बताए जो उनके शब्दों में ‘आतंकवाद को नियंत्रित करने में महबूबा मुफ़्ती सरकार की विफलता’ तथा गैर-मुस्लिम बहुल जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों की ‘उपेक्षा’ है। राज्य में बीजेपी का जनाधार इन्हीं दोनों क्षेत्रों में है।
चन्द्रप्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल के लिए ‘चुनाव चर्चा’ कॉलम लिखते हैं




















