![](https://mediavigil.com/wp-content/uploads/2020/11/mamta-new.jpg)
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बिहार जीतने के बाद अब पश्चिम बंगाल में चुनावी भिड़ंत की बिगुल लगभग बजा चुकी है. तय है कि वह बिहार की तरह बंगाल में भी जीत हासिल करने के लिये अपने कब्जे की केंद्रीय सत्ता की तरकस के सारे तीर आज़मायेगी. इस चुनाव में मोदी जी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगी है क्योंकि वह पश्चिम बंगाल की राजसत्ता से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अखिल भरतीय तृणमूल काग्रेस ( एआईटीएमसी ) को उखाड़ फेंकने की वीररस भरी हुंकार 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार भरते रहे हैं.
भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के हिन्दुत्व की अश्वमेधी रणनीति को चुनावी कामयाबी में बदलने के लिये बंगाल में बरसों से दिन-रात एक किये हुए उसके सैंकड़ो प्रचारको की उम्मीद्द की ये अग्नि परीक्षा भी है।
सीपीएम कांग्रेस आदि का महागठबंधन
पश्चिम बंगाल में टीएमसी के सत्ता में दाखिल हो जाने के पहले 1977 से करीब तीन दशक तक लगातार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ( सीपीएम ) की अगुवाई की वाम मोर्चे की सरकार रही थी। राज्य में सत्ता से हटने के बाद वामपंथी दलों की ताकत लगातार कम होती गई है। सीपीएम मौजूदा विधान सभा में टीएमसी ही नहीं , कांग्रेस से भी पीछे है। मैदानी ताकत में सीपीएम अब भाजपा के धनबल और बाहुबल ही नही नवीकृत उभार के कारण जन-समर्थन में भी पिछड गई लगती है. यही मुख्य कारण है कि सीपीएम ने अब कांग्रेस के साथ खुल कर चुनावी गठबंधन करने का नीतिगत निर्णय कर लिया है. यह बिहार की तरह का महागठबंधन ही है चाहे उसका औपचारिक नामकरण जो हो. यह महागठबंधन पौराणिक शास्त्रों में भगवान शिव की वर्णित बारात की तरह लगता है जिसमें टीमसी के सिवा वामपंथी और मध्यपंथ की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टिया संग हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीएमसी ने पिछले लोकसभा चुनाव से कुछ पहले अपने पाले में विपक्षी दलों की एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए 19 जनवरी 2019 को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विशाल रैली आयोजित की थी। इस रैली के मंच पर जुटे बीसेक दलों के नेताओं ने मोदी सरकार को हटाने की हुंकार भरी थी। ममता बनर्जी ने इस रैली में ‘ बदल दो, बदल दो , दिल्ली की सरकार बदल दो ’ का नारा देकर विश्वास व्यक्त किया था कि ‘ एकजुट विपक्ष‘ लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करेगा। उन्होंने विपक्ष की अगुवाई करने की अपनी लालसा इंगित कर साफ कहा था कि भाजपा की हार की स्थिति में प्रधानमंत्री कौन होगा ये फैसला चुनाव बाद होगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उस चुनाव में भाजपा की भारी जीत हुई और मोदी ही फिर प्रधानमंत्री बन गये।
तभी साफ हो गया था कि कांग्रेस और सीपीएम, दोनो ही विपक्ष की बागडोर दीदी को सौंपने के सुझाव के बिल्कुल खिलाफ हैं। ममता बनर्जी ने भी घोषणा कर दी थी कि टीएमसी पश्चिम बंगाल में लोक सभा की सभी 42 सीटों पर अपने बूते चुनाव लड़ेंगी। तब हमने मीडिया विजिल के इस स्तम्भ में ये सवाल स्वाभाविक ही उठाया था कि दीदी को विपक्षी दलों की एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए यह रैली आयोजित करने की जरुरत क्यों पड़ी। स्पष्ट था कि वो रैली पश्चिम बंगाल की नहीं बल्कि केंद्र की सत्ता में टीएमसी की हिस्सेदारी की दावेदारी प्रदर्शित करने के लिए आयोजित की गई थी। इसका सन्देश यह भी था कि टीएमसी, भाजपा की आक्रामकता के सामने अलग-थलग नहीं रहना चाहती थी है। लेकिन इस विधान सभा चुनाव में टीएमसी के अलग–थलग पड जाने की नौबत आ सकती है।
उस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और बसपा प्रमुख मायावती स्वयं नहीं गये थे लेकिन उनकी पार्टियों का उच्चस्तरीय प्रतिनिधित्व था। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के खिलाफ क्षेत्रीय दलों का फ़ेडरल फ्रंट कायम करने में जुटे तेलंगाना के मुख्यमंत्री एवं तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष केसीआर भी रैली में अनुपस्थित थे। केसीआर ने तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में अपनी पार्टी की जीत के बाद फ़ेडरल फ्रंट के लिए उत्साहित होकर ओडिसा के मुख्यमंत्री एवं बीजू जनता दल अध्यक्ष नवीन पटनायक और ममता बनर्जी से भी भेंट की थी। वह भेंट औपचारिकता बनकर रह गई। नवीन पटनायक भी टीएमसी की उस रैली में नहीं थे।
टीएमसी की उस रैली में वामपंथी दलों की भी भागीदारी नहीं थी. यह अस्वाभाविक नहीं था. क्योंकि इन दलों का टीएमसी से लम्बे अर्से से जबरदस्त राजनीतिक टकराव रहा है। वामपंथी दलों का कहना है कि राज्य में साम्प्रदायिक सौहार्द में बिगाड़ और भाजपा के उभार के लिए टीएमसी जिम्मेवार है।
रैली में पूर्व प्रधानमंत्री एवं जनता दल सेकुलर के नेता एचडी देवेगौड़ा, आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं तेलुगुदेशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू , लोकसभा में कांग्रेस के तब के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे , पूर्व रक्षा मंत्री एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री एवम् आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव, जम्मू -कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, भाजपा से अलग हो चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, बिहार विधानसभा में विपक्ष एवं राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव्, गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल एवं दलित नेता जिग्नेश मेवानी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता एम.के स्टालिन, लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव , राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष अजित सिंह और उनके पुत्र एवं पूर्व सांसद जयंत चौधरी समेत कई नेता उपस्थित हुए थे। इनमें से अधिकतर अब टीएमसी से कट गये लगते हैं.
साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण
भारतीय जनता पार्टी ने उस रैली के जवाब में पश्चिम बंगाल के सभी 42 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में रैलियां की जिसकी शुरुआत पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा करने के तुरंत बाद मोदीजी ने खुद 28 और 31 जनवरी के अलावा आठ फरवरी को भी रैली की. भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभायें की गई। भाजपा प्रदेश प्रमुख दिलीप घोष ने कोलकाता की विपक्षी रैली का जवाब देने के लिए प्रचार अभियान छेड़ सभी लोकसभा क्षेत्रों में बाइक और साइकिल रैली आयोजित करवायी।.
माना जाता है कि टीएमसी को इस चुनाव में भाजपा कड़ी टक्कर दे सकती है क्योंकि राज्य के मतदाताओं के बीच हाल में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होता नज़र आ रहा है। भाजपा कहने लगी है कि इस विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में ममता राज का अंत हो जायेगा।
भाजपा की चुनावी तैयारियों में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और बढ़ाने पर जोर है। राजनीतिक बदलाव के लिए भाजपा और उसके समर्थक संगठनों की कोशिश बढ रही है। वे हिंदुत्व के वर्चस्व का आह्वान कर ‘ मुल्लों और काजी ‘ को बाहर करने के लिए तत्पर सरकार बनाने पर भी जोर दे रहे हैं।. मीडिया की खबरों के मुताबिक़ बजरंग दल के एक शिविर में नारा लगाया गया, ‘ जागो तो इक बार हिंदू जागो तो…मार भगाएं सब मुल्ला काजी….पलट गए सरकार / जागो तो इक बार हिंदू जागो तो। भाजपा की नजर वर्ष 1971 के कट ऑफ डेट के बाद बिना कागज के बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू प्रवासियों पर है। हिंदू ‘ जागरण ‘ अभियान के तहत विश्व हिंदू परिषद ने राज्य के सभी जिलो में धर्म-सम्मेलन आयोजित किये हैं।
बंगाल पर इस्लामी शासन 13 वीं सदी से प्रारंभ हुआ। 16 वीं सदी शताब्दी में मुग़ल शासन में बंगाल व्यापार एवं उद्योग का केन्द्र बन चुका था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का प्रादुर्भाव बंगाल से ही हुआ था। 15 वीं सदी के अंत तक यहाँ यूरोपीय व्यापारियों का आगमन हो चुका था। 18 सदी के अंत तक यह क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गया था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही बंगाल का मुस्लिम बहुल पूर्व बंगाल (अभी बांग्लादेश) तथा हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल में विभाजन हुआ .
बहरहाल , देखना यह है कि भाजपा की हिंदुत्व की आक्रामक राजनीति को रोकने में ममता बनर्जी का सियासी करिश्मा कितना असरदार साबित होगा और दीदी बिन महागठबंधन करे क्या चुनावी रंग दिखाती है।
*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और वहीं से बिहार चुनाव रिपोर्ट करने के बाद अब बंगाल का रुख कर चुके हैं। यह रिपोर्ट उन्होंने बंगाल से भेजी है।