पहला पन्ना: ममता बोलीं, “हार स्वीकारें!” अखबारों ने छापा, “फ़ायदा हो तो पीएम के पैर छू सकती हूं!” 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


 

ममता ने मुख्य सचिव का तबादला वापस लेने की मांग की, अखबारों ने महत्व नहीं दिया 

 

आज फिर बंगाल और ममता बनर्जी। कल मैंने लिखा था कि ममता बनर्जी के बैठक में शामिल नहीं होने का नतीजा यह रहा कि केंद्र सरकार ने राज्य के मुख्य सचिव का हाथो-हाथ तबादला कर दिया। इतनी तेजी इस सरकार ने जनहित के कामों में दिखाई होती तो शायद बंगाल चुनाव नहीं हारती। पर मुख्य सचिव की खबर पढ़कर मुझे लगा था कि यह सिस्टम पर हमला है और इसका विरोध तो होगा ही होना चाहिए। आप मुख्य सचिव की तरफ से सोचिए। वो तो नौकरी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के साथ थे। बैठक में निमंत्रण अगर ममता बनर्जी को था उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों? और अगर उन्हें ही था ममता बनर्जी के नाम पर राजनीति क्यों। और अगर ममता बनर्जी के साथ उन्हें भी आना था तो कार्रवाई सिर्फ मुख्य सचिव के खिलाफ क्यों? जाहिर है यह सब कोई मुद्दा नहीं है और मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री की बुलाई बैठक से गायब रहे हैं। ममता बनर्जी ने तो देर से और थोड़ी देर के लिए ही सही, हिस्सा लिया ही था। और जैसा अखबारों में छपा वे फाइल देकर दूसरे पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में गई थीं। ऐसे में मुख्यसचिव के खिलाफ कार्रवाई खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे से ज्यादा कुछ नहीं है। 

पूर्व नौकरशाह जवाहर सरकार ने इस संबंध में आज टेलीग्राफ में लिखा है, “यह विडंबना ही है कि नरेन्द्र मोदी (2001 से 2014 तक मुख्यमंत्री) जो संघीय व्यवस्था में राज्यों की स्वायत्तता के सबसे बड़े पैरोकार थे, ने अब खुद भारत की संघीय संरचना को बर्बाद करने की जिम्मेदारी उठाई है और इसमें उनकी असहिष्णुता औरंजेब जैसी है।ऐसे लोकतंत्र में ममता बनर्जी ने मांग की है कि मुख्य सचिव का तबादला वापस लिया जाए। और हिन्दू ने आज इसे लीड बनाया है। आप कह सकते हैं कि यह पहले पन्ने की खबर नहीं है। लेकिन हिन्दू ने लीड बनाया है। क्योंकि कौन सी खबर कब आई वह ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यही नहीं, विपक्ष ने भी इस तबादले की निन्दा की है और इसे संघवाद पर हमला कहा है। वैसे भी, जैसा मैंने पहले कहा, मुख्यमंत्री के साथ रहने पर किसी राज्य के मुख्यसचिव का तबादला हो जाए तो राज्यों का काम कैसे चलेगा? पर अखबारों में इस खबर को प्रमुखता नहीं मिली है। मुख्यमंत्री ने तबादले को असंवैधानिक कहा है, तब भी। 

इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को पहले पन्ने पर नहीं छापा है लेकिन ममता बनर्जी से जुड़ी एक खबर पहले पन्ने पर जरूर है। शीर्षक है, बंगाल के लिए मैं प्रधानमंत्री के पैर छू सकती हूं, पर मुझे अपमानित मत कीजिए। इसमें मुख्यसचिव के तबादले को वापस लेने की मांग के बारे में कुछ नहीं है। अखबार ने आज जिस सरकारी (या भाजपाई) प्रचार को लीड बनाया है वह मेरे किसी और अखबार में लीड नहीं है। इस खबर का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कोविड अनाथों के लिए सहायता, मुफ्त शिक्षा और कर्मचारियों के आश्रितों के लिए पेंशन की घोषणा की। अखबार ने इसे सरकार के सात वर्ष पूरे होने पर की गई घोषणा के रूप में प्रस्तुत किया है और उपशीर्षक में बताया है कि बच्चों के लिए योजना पीएम केयर्स के तहत है। अखबार ने यह नहीं बताया है कि सोनिया गांधी ने 19 मई को चिट्ठी लिखकर ऐसे बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की मांग की थी। यह सूचना हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर में दी है कि अनाथों को पीएम केयर्स के तहत सहायता मिलेगी। यहां सात साल पूरे होने पर घोषणा जैसी कोई खबर पहले पन्ने या अधपन्ने पर नहीं है। 

मैं मुख्य सचिव का तबादला आदेश वापस लेने की ममता बनर्जी की मांग की बात कर रहा था। आप जानते हैं कि ममता बनर्जी के बैठक में शामिल नहीं होने से संबंधित खबरों के साथ कल ममता बनर्जी का जवाब या उनका पक्ष नहीं था। इसलिए आज उनका पक्ष होना ही चाहिए। इसमें तबादला वापस लेने की मांग सबसे महत्वपूर्ण है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है। खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में भी नहीं है। यहां शीर्षक है, “तूफान समीक्षा भाजपा की बड़ी पार्टी थी ममता बनर्जी ने कहा, बैठक में राजनीतिक लोग थे जो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बैठक में शामिल होने के हकदार नहीं हैं। इसमें बताया गया है कि भाजपा गंदे खेल खेल रही है और चुनाव हारने के बाद राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है। मुझे नहीं लगता कि ममता बनर्जी से असहमत हुआ जा सकता है। फिर भी मीडिया का बड़ा वर्ग अक्सर सरकारी पक्ष ही प्रचारित करता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने ममता बनर्जी का जो पक्ष पहले पन्ने पर छापा है उसका शीर्षक है, “बंगाल की सहायता हो तो मैं प्रधानमंत्री के पैर छू सकती हूं 

ममता बनर्जी ने जो कहा उसे टेलीग्राफ ने आज कायदे से छापा है। अगर कल आरोप लगाने वालों का दिन था तो आज जवाबों का होना ही चाहिए। सात कॉलम में दो लाइन का शीर्षक है, “अपनी हार मानिए, गंदा खेल खेलना बंद कीजिए। मुझे काम करने दीजिए : प्रधानमंत्री से दीदी। इसके साथ मुख्य सचिव के तबादले पर जवाहर सरकार की टिप्पणी पांच कॉलम में है और दो कॉलम में शीर्षक है, हार नहीं मानूंगी : मुख्य मंत्री। कहने की जरूरत नहीं है कि आज ममता बनर्जी की खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर हो सकती थी। ममता बनर्जी ने जो कहा और जो छपा वह सब आपने देख लिया। अब बताता हूं कि आज के अखबारों में लीड क्या है। इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दू, और टेलीग्राफ के लीड की चर्चा हो गई। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर आधे से ज्यादा विज्ञापन है और आज पहले पन्ने से पहले का अधपन्ना है। इसमें लीड है, दिल्ली में नए मामले कम हुए, 1,000 से नीचे गए। पहले पन्ने पर लीड है, भारत ने क्वैड समूह का समर्थन किया। टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड का शीर्षक है, भारत में कोविड के मामले तीन हफ्ते में 50 प्रतिशत कम हुए। टाइम्स ने इसके साथ एक तस्वीर छापी है जिसका कैप्शन है, गुड़गांव के एक मॉल के ड्राइव इन सेंटर में टीका लगवाती महिला। 

टीकों का रहस्य सुलझ नहीं रहा है। दिल्ली सरकार के केंद्र बंद हो रहे हैं, राज्यों के पास टीकों का स्टॉक नहीं है और दिल्ली (एनसीआर पढ़ें) में ड्राइव इन सेंटर खुल रहे हैं जो निजी अस्पतालों के हैं। सवाल उठता है कि इनके पास टीके कहां से आ रहे हैं जो महंगे लग रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि दिल्ली सरकार की करामात है पर सच यह भी है कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कल यह सवाल उठाया था। आज वह खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है, अंदर होगी।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।