असम में 27 मार्च, एक अप्रैल और सात अप्रैल को कुल तीन चरण में नई विधान सभा के चुनाव के लिए वोटिंग होगी. काउंटिंग पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडीचेरी विधान सभा चुनाव के कार्यकर्म के अनुसार एक साथ दो मई को की जाएगी. उसी दिन सबके आधिकारिक परिणाम मिल जाने की संभावना है.
गुवाहाटी से प्रकाशित अखबार ‘द सेंटिनल’ के पूर्व सम्पादक दिनकर कुमार के एक लेख के अनुसार प्रधानमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा) के नेता नरेंद्र मोदी ने असम में भाजपा की ढेकियाजुली चुनावी रैली में अजीबोगरीब दावा किया. मोदी जी के शब्द थे: साजिशकर्ताओं ने भारतीय चाय को भी नहीं बख्शा. विदेश में भारतीय चाय की छवि धूमिल करने की साजिश रची जा रही है. मैं आपको देश को बदनाम करने की साजिश के बारे में बताना चाहता हूं. वे भारतीय चाय की छवि दुनिया में व्यवस्थित रूप से बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.
मोदी जी का ये दावा नोबेल पुरसकार विजेता पर्यावरण एक्टिविस्ट ‘ग्रेटा थुनबर्ग’ द्वारा भारत में दिल्ली बॉर्डर पर किसानो के 25 नवम्बर से चल रहे आंदोलन के दौरान भारतीय युवती एक्टिविस्ट दिशा रवि और अन्य की बनाई बहुचर्चित ‘टूलकिट’ पर उनकी ‘चतुर बनिया’ वाली प्रतिक्रिया है.
इस टूलकिट में भारत के कम्प्यूटर सॉफ्टपावर उद्योग विषय में योग और चाय को शामिल करने की बात है. जाहिर है मोदी जी ने असम में अंग्रेज राज में लगाये गये सैंकडों चाय बागान में कार्यरत लाखो श्रमिक वोटर को बरगलाने की कोशिश की है जो उनकी नज़र में बडा वोट बैंक हैं.
वास्तविकता ये है दुनिया भर में इन चाय-बागान श्रमिकों की अल्प मजदूरी और कठिन काम की बात उठी है. मोदी जी ने चाय-बागान श्रमिकों की दुर्दशा की बात को भारत की छवि ‘बदनाम’ करना बताया तो दिल्ली पुलिस ने खुद पर्यावरण प्रेमी वकील दिशा रवि को फर्जी आरोप में गिरफ्तार कर लिया. निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका नामंजूर कर दी. बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत याचिका मंजूर की.
चाय बगान के मजदूर पहले कांग्रेस का वोट बैंक माने जाते थे. उनका हिंदू हिस्सा, असम की सत्ता में भाजपा के दाखिल होने के बाद उसके मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ ( आरएसएस ) के सक्रिय हुए हजारो प्रचारकों के दुष्प्रचार के परिणामस्वरूप भाजपा की तरफ ओर भी ज्यादा खिसक गया है.
चाय बगान श्रमिकों की करीब बीस प्रतिशत आबादी ईसाइयों की है जो अभी भी भाजपा के खिलाफ हैं. भारत के कुल 7100 चाय बागान में से करीब 700 असम में ही हैं. इनमें करीब चार लाख बिदेसिया ( माइग्रेंट ) मजदूर काम करते हैं जो ज्यादातर बिहार के हैं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम
मोदी जी की सरकार द्वारा 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम संसद से पारित कराने के बाद असम में वोटरों का तीव्र ध्रुवीकरण हुआ है. विपक्षी दलों ने इस कानून का विरोध किया लेकिन भाजपा की राज्य सरकार उस विरोध को साम दाम दंड भेद से दबाने में कामयाब रही. विरोध-प्रदर्शन में शामिल कई नेता भाजपा के पाले में चले गये. कुछ ने अपनी अलग पार्टी बना ली जो भाजपा के ही काम आ रही है.
महागठबंधन एक्सप्रेस
हमने चुनाव चर्चा के 28 जनवरी 2021 के अंक में लिखा था बिहार से ‘महागठबंधन एक्सप्रेस’ असम पहुंच गई. पर इस राज्य में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बड़ी ‘चाणक्यगीरी’ है. राज्य में कांग्रेस और सभी संसदीय कम्यूनिस्ट पार्टियो ने जो महागठबंधन बनाया उसमें कांग्रेस के साथ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) , कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सिस्ट (सीपीआईएम), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट (सीपीआईएमएल), ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ ) और आंचलिक गण मोर्चा ( एजीएम) भी हैं.
महागठबंधन के जीतने पर मुख्यमंत्री कौन होगा इसकी घोषणा नहीं की गई है. कांग्रेस और एआईयूडीएफ पहली बार चुनावी गठबंधन में साथ आये हैं. महागठबंधन में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) , असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद , (अजायुछाप), असम जातीय परिषद (एजेपी) , कृषक मुक्ति संग्राम समिति और पिछले बरस बने ‘राईजर दल’ को भी लाने के प्रयास हैं.
असम के कांग्रेस प्रभारी जितेंद्र सिंह ने विधान सभा चुनाव में महागठबंधन की जीत का विश्वास व्यक्त किया है लेकिन कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा जर्जर हो चुका है. स्थानीय निकायो के हालिया चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत खराब रहा. 2016 के चुनाव में कांग्रेस को अपनी 52 सीटों से हाथ धोना पडा था. वह कुल 26 सीटें ही जीत सकी थी.
असम की 126 सीटों की विधान सभा में अभी कांग्रेस के 20 और एआईयूडीएफ के 14 विधायक हैं. कांग्रेस के दो विधायक हाल में भाजपा पाले में चले गए। गठबंधन में शामिल अन्य किसी भी पार्टी का कोई विधायक नहीं है।
राज्य के कद्दावर कांग्रेस नेता एवम पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का निधन हो चुका है. इससे कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व कमजोर हुआ है. प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रिपुन बोरा ने नई चुनावी मोर्चाबंदी की घोषणा के समय पत्रकारों से कहा अगर कांग्रेस राज्य में सत्ता में आती है तो वह उसी तरह किसानों का कर्ज माफ करेगी, जैसा राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब की कांग्रेस सरकारों ने किया है.
अमित शाह का मिशन असोम
असम उन पांच विधान सभा चुनाव वाला अकेला राज्य है जहाँ मोदी जी की भाजपा सत्ता में है. असम विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा को 60 , एजीपी को 14 और बीपीएफ को 12 सीटें मिली थीं. आगामी चुनाव के लिये भाजपा का उत्साह सातवे आसमान पर है. अभी भाजपा के नेतृत्व में साझा सरकार है। इसमें शामिल दलों में असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) प्रमुख हैं.
भाजपा ने असम चुनाव के लिये नई रणनीति इसके चुनाव कार्यक्रम की निर्वाचन आयोग द्वारा की गई घोष्णा के बहुत पहलेै दिसम्बर 2020 में शुरु कर दी थी.
भाजपा ने पड़ोसी पश्चिम बंगाल की तर्ज पर असम में भी विपक्षी दल में सेंधमारी की है.
अमित शाह ने इस चुनाव में भाजपा की जीत के लिये कुल 126 विधान सभा सीट में से 100 जीतने का टार्गेट तय किया है. उनका प्रचार का मुद्दा है कि कांग्रेस ने पूर्वोत्तर भारत में लंबे अरसे तक राज किया पर उग्रवादियो से सुलह की कोई बातचीत नहीं की. विकास के नाम पर कांग्रेस ने सिर्फ भूमिपूजन किया. मोदी जी की प्रेरणा से भाजपा सरकार ने अनेक परियोजनाओं को कागज से जमीन पर उतारा. उन्होने विधान सभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के ठीक पहले चार सरकारी विकास परियोजनाओं का श्रीगणेश कर कांग्रेस से निकाले दो विधायकों अजंता नियोग और राजदीप गोआला को भाजपा में शामिल कर लिया.
अमित शाह ने भाजपा की चुनावी रणनीति बदल डाली है. भाजपा ने 2016 का पिछला विधान सभा चुनाव बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ( बीपीएफ) और असम गण परिषद ( एजीपी ) से गठबंधन कर लड़ा था. भाजपा ने बीटीसी चुनाव से ऐन पहले अपने गठबंधन से बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का हटा दिया. भाजपा ने हाल में सियासत में उतर आये छात्र नेता प्रमोद बोरो की कट्टरपंथी ‘यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल’ (यूपीपीएल) से हाथ मिला लिया. ये पार्टी बीटीसी चुनाव में भाजपा के साथ रही थी.
तीवा ऑटोनोमस काउंसिल (टीएसी) चुनाव में भी भाजपा ने कुल 36 में से 33 सीट जीती थी. टीएसी के 2015 के पिछले चुनाव में भाजपा को तीन सीटें ही मिली
थीं.
बंगाली मुस्लिम
बंगाली भाषा को असम की बराक घाटी के तीन जिलों में आधिकारिक मान्यता हासिल है. राज्य की कुल आबादी में बांग्ला भाषी करीब 34 प्रतिशत है. असम में बंगाली मुसलमानों की पार्टी,आल इंडिया यूनाटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) भी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियो के महागठबंधन में शामिल है. इसके नेता इत्र महाव्यापारी और अनेक बार लोकसभा चुनाव जीत चुके बदरुद्दीन अजमल हैं. उनके द्वारा 2005 में बनाये एआईयूडीएफ का आधार बांग्ला भाषी मुस्लिम समुदाय है. एआईयूडीएफ ने 2006 के विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीती थी. 2011 के पिछले विधान चुनाव में उसे करीब दो गुणा ज्यादा सीट मिली. एआईयूडीएफ के संगठन सचिव मोहम्मद अमीनुल इस्लाम के अनुसार भाजपा सरकार ने पिछले पांच बरस में असम को तबाह कर दिया है।
बोडो जनजातीय क्षेत्र
बोडोलैंड नाम से लोकप्रिय इस क्षेत्र में 12 विधानसभा सीट हैं. कांग्रेस और भाजपा, दोनो महागठबंधन ने बोडो क्षेत्र में कुछेक छोटी स्थानीय पार्टियों से चुनावी समझौता कर रखा है. पहाड़ी जनजातियों के स्वायत्तशाषी क्षेत्र में आरएसएस के प्रचारकों की ‘वनवासी’ इकाई की बदौलत क्षेत्र में भाजपा की पैठ बढ़ी है.
बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के हालिया चुनाव के परिणामो से भाजपा गदगद है. फरवरी 2020 में बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद यह पहला चुनाव था. बीटीसी के 2015 के पिछले चुनाव में भाजपा ने एक ही सीट जीती थी. इस बार भाजपा नौ सीट जीतने में कामयाब रही
बहरहाल, देखना यह है कि मोदी जी की चुनावी ‘चाय पर चर्चा’ और असम की नई महागठबंधनी सियासी तस्वीर चुनाव में क्या गुल खिलाती है।
*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।