चुनाव चर्चा: बंगाल ने मोदी सरकार का कूटचक्र और आरएसएस का सपना तोड़ा!

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
काॅलम Published On :


प्रधानमंत्री एवम भारतीय जनता पार्टी के एकछत्र नेता नरेंद मोदी की ‘न्यु इंडिया’ टीम को संविधान में नामित देश, ‘इंडिया दैट इज भारत’ की टीम ने हालिया विधान सभा चुनावो में चारो खाने चित्त कर दिया. भाजपा का ‘नेश्नल डेमोक्रेटिक अलायंस’ (एनडीए) गठ्बंधन ऐडी चोटी का जोर लगा कर भी असम और पुडुचेरी विधान सभा चुनावो के सिवा और कही भी जीत नहीं सका. भाजपा की बंगाल, केरल और तमिलनाडु में करारी हार हुई.

 

बंगाल

मोदी जी की पार्टी ने कथित तौर पर केंद्रीय सत्ता और धनबल के जोर पर निर्वाचन आयोग से सांठगांठ कर बंगाल की 10 बरस से मुख्यमंत्री एवम आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी को नंदीग्राम सीट पर हाल तक उनके ही सियासी सिपहसालार शुभेंदु अधिकारी से परास्त करवा दिया. लेकिन भाजपा भारत में रेनासा की भूमि बंगाल को फतह नही कर सकी. उसने बंगाल का चुनाव जीतने के लिये साम्प्रदायिक जहर से लबालब भरी अपनी तरकश के सभी तीर चलाये. पर वह टीएमसी को लगातार तीसरी बात जीत दर्ज करने से नही रोक सकी।

पश्चिम बंगाल में अन्य सभी राज्य से ज्यादा कुल 8 चरण में वोटिंग करायी गयी. विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 292 पर ही वोटिंग हुई. दो सीटों पर चुनाव स्थगित करने पड़े. स्पष्ट बहुमत के लिए किसी पार्टी या गठबंधन को 148 सीट चाहिये. टीएमसी ने 213 सीट जीती. भाजपा की झोली में 77 सीट गई. बंगाल में 34 बरस तक राज करने वाली सीपीएम और उसके वाम मोर्चा में शामिल कोई दल एक भी सीट नहीं जीत सका. वही हाल राज्य में सीपीएम से पहले राज कर चुकी कांग्रेस का रहा जिसने सीपीएम से खुला चुनावी गठबंधन किया था.

बंगाल में मोदी जी ही नहीं बल्कि उनके खासम-खास केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी व्यक्तिगत पराजय हुई है. वे कोरोना कोविड महामारी में खुद अपनी सरकार के तय किये स्वास्थ्य सुरक्षा एहतियात के निर्देशो की खुल्लमखुल्ला अवहेलना कर अक्सर बिन मास्क पहने चुनावी रैलिया और रोड शो करते रहे.अमित शाह ने अपनी सियासी चाणक्यागिरि के दम पर 200 से ज्यादा सीट जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया था.

मोदी जी रैलियो में अपार धनबल से जुटाई भीड़ को इंगित करते नहीं अघाते थे. उन्होने अहंकारी मुद्रा में यहाँ तक ऐलान कर दिया था कि इस चुनाव के परिणाम आने के बाद बंगाल की नई सरकार के कोलकाता में शपथ ग्रहण समारोह में वह स्वयम उपस्थित होंगे. उन्हे पता चल गया होगा नई सरकार की मुख्यमंत्री पद की शपथ पांच मई को ममता बनर्जी ही लेंगी , जिन्हे वह और अमित शाह चुनाव प्रचार के दौरान अश्लील भंगिमा के साथ आवारा लड़कों की तरह ‘दीदी ओ दीदी’ कहते रहे.

बांग्ला सम्बोधन से बंगाल से बाहर भी देश-विदेश में लोकप्रिय दीदी, फिलवक़्त इंडिया दैट इज भारत में एकमेव महिला मुख्यमंत्री हैं. भारत की सियासी आज़ादी के पहले और बाद में भी अभी तक कोई ऐसी महिला नेता नहीं हुई जिन्होने पुरुष सत्तात्मक भारतीय समाज बिन किसी पुरुष ‘मेंटोर’ के अपनी पार्टी खड़ी कर उसे चुनावी विजयश्री भी दिलाई हो. दीदी ने मानो ‘पैट्रिआर्की’ को झन्नाटेदार थप्पड़ मार मोदी जी से सवाल किया है ‘कि रे बोका, खेला होबे ?’

 

तमिलनाडु

तमिलनाडु में पिछले कुछ बरस से सरकार पर काबिज ‘आल इंडिय अन्ना द्रविड मुनेत्र कषगम’ (अन्ना द्रमुक) के एक गुट के साथ केंद्रीय सत्ता के जोर पर औपचारिक गठबंधन कर चुनाव लडी भाजपा, बिल्कुल औंधे मुँह गिरी.विधानसभा की 234 सीटें हैं.स्पष्ट बहुमत के लिए 118 सीट चाहिये.

डीएमके ने खुद ही 133 सीट जीत ली.उसकी सह्योगी कांग्रेस ने 18 सीट जीती. एआइडीएमके को 66 और उसकी सहयोगी भाजपा को 4 सीट मिली है.एक अन्य पार्टी पीएमके को 5 सीट मिली. दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के क्रांतिकारी नेता और 1927 से 1953 तक सोवियत रूस के शासक रहे जोसफ स्टालिन पर नामित उनके पुत्र मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन के नेतृत्व में द्रविड मुनेत्र कषगम ( द्रमुक), कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियो के संयुक्त मोर्चा की जीत हुई. निवर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे स्टालिन का पहली बार मुख्यमंत्री बनना तय है.

 

केरल

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्किस्ट ) यानि सीपीएम के नेता एवम 2016 से केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का फिर मुख्यमंत्री बनना तय है. उनके नेतृत्व में सीपीएम के ‘लेफ्ट एंड डेमोक्रेटिक फ्रंट ‘यानि वाम लोकतांत्रिक मोर्चा इस पूर्ण शिक्षित राज्य की सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही है. यह सौभाग्य केरल में 1957 मे लिजेंड्री नेता ईएमएस नम्बूदरीपाद की लोकतांत्रिक रूप से चुनी पहली कम्युनिस्ट सरकार के बाद से किसी को नही मिला है.

अरब सागर तटवर्ती केरल विधान सभा की कुल 140 सीटें हैं. बहुमत का आंकड़ा 71 सीट है.सी पी एम ने अके ले 62 सीट जीती. उसकी सहयोगी पार्टियो में से कम्युनिस्ट पार्टी औफ इंडिया (सीपीआई) ने 17 सीट जीती.

राज्य में युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का नेतृत्व कर रही कांग्रेस सिर्फ 21 सीट जीती. यह कांग्रेस के पूर्व प्रमुख राहुल गांधी के लिये जोर का झट्का है जो सीपीएम की कडी आपत्ति के बावजूद 2019 के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की अपनी ‘पारिवारिक’ सीट अमेठी के साथ ही केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनावी मैदान में कूद पडे थे. ये दीगर बात है राहुल गांधी अमेठी में मोदी सरकार की कपडा मंत्री स्मृति इरानी से हार गये पर वायनाड से जीत गये.

केरल में मेट्रोमेन ई श्रीधरण जी को अपने जाल में फंसाने वाली भाजपा का बैंड बज गया. वयोवृद्ध श्रीधरण जी खुद हार गए. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती भाजपा केरल के 2016 के पिछले चुनाव में जीती अपनी एकमात्र सीट भी इस बार हार गईं.

 

असम

भाजपा ने मुख्यमंत्री सर्बानंदा सोनोवाल को इस चुनाव में नई सरकार के मुख्यमंत्री पद के लिये अपना दावेदार औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया था फिर भी वह भाजपा गठबंधन को चुनावी जीत दिलाने में सफल रहे.

असम की कुल 126 सीट में से भाजपा ने बहुमत से कुछ कम 60 सीट जीती है. उसकी सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने 9 सीट जीती है. इसलिये भाजपा गठ्बंधन की सरकार तो बन जायेगी. लेकिन मोदी सरकार द्वारा बनाये नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम के पूर्व मुख्य मंत्री प्रफुल्ल कुमार मोहंती और एजीपी कार्यकर्ताओ के बीच प्रबल विरोध है. भाजपा के इशारा पर मोहंती जी को एजीपी से चुनाव से पहले ही निकाल दिया गया. पर एजीपी कार्यकर्ता बैचेन हैं. इस कारण असम में भाजपा गठ्बंधन की नई स्ररकार के सिर पर खतरा मंडराता रहेगा.

कांग्रेस ने 29 सीट जीती है. उसकी सहयोगी ‘आल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट’ (एआईयूडीफ ) ने 16 सीट जीती है जो इत्र व्यापारी बदरुद्दीन अजमल की मुस्लिम पह्चान की सियासत करने वाली पार्टी है. शेष चार सीट बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) को मिली है जो कुल मिलाकर मोदी सरकार के खिलाफ ही रहती है। सर्बानंदा सोनोवाल जी भाजपा में आने से पहले कांग्रेस मे रहे थे. वह 5 बरस पहले मोदी सरकार में खेल एवम युवा मामलो के केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं.

 

पुडुचेरी

इस केंद्र शासित प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवम आल इंडिया एनआर कोंग्रेस (एआइएनआरसी) के संस्थापक एन रंगास्वामी का नई सरकार का मुख्यमंत्री बनना तय है. उसने 30 सदस्यो की विधानसभा की 10 सीट जीती है. उसके चुनावी गठबंधन में शामिल भाजपा ने 6 सीट जीती है.विधान सभा में तीन सदस्य केंद्र सरकार मनोनीत करती है. स्पषट बहुमत के लिये 18 विधायको के समर्थन की दरकार है. जाहिर है मनोनीत किये जाने वाले सभी तीन विधायक भी रंगास्वामी जी की नई सरकार बनने पर उसका विरोध नहीं बल्कि समर्थन ही करेंगे. इससे पहले सरकार चला रही कांग्रेस दो सीट ही जीत सकी।

चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार ने पुडुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी को बरखास्त कर दिया. केंद्रीय सत्ता और धनबल के जोर पर भाजपा ने सत्तारूढ़ गठबंधन में तोडफोड भी की. इसके परिणामस्वरूप विधान सभा में अविश्वास प्रस्ताव हार जाने पर गठबंधन की सरकार ने इस्तीफा दे दिया. इस पर पुडीचेरी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. राष्ट्रपति शासन में ही चुनाव हुए.

इन पांच विधानसभा के साथ ही लोक सभा की कर्नाटक में बेलगाम और आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जातियो के लिये सुरक्षित तिरुपति सीट पर उपचुनाव हुए. बेलगाम मे तो भाजपा जीत गई पर ‘धर्मनगरी’ तिरुपति लोक सभा सीट पर भी भाजपा की जमानत जब्त हो गई.

भारत के निर्वाचन आयोग ने दो मई को ही विभिन्न राज्यों की कुल 14 विधान सभा सीटों पर उपचुनाव में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में डाले गए वोट की गिनती भी एक साथ कर उनके भी परिणाम घोषित कर दिये हैं. उनमें से अधिकतर पर भाजपा की हार हुई है.

 

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव

दो मई की ही सुबह आठ बजे से उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रदेश में पंचायत चुनाव की काउंटिंग की. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव काउंटिंग पर रोक लगाने की जनहित याचिका खारिज कर दी थी. भारत के लोकतंत्र में पंचायती चुनाव ‘चुनावो की जननी’ मानी जाती हैं. उत्तर प्रदेश के तीन स्तरीय पंचायत चुनाव में कुल दो लाख से भी अधिक सीटें हैं.

उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग भारत के निर्वाचन आयोग से अलग एवं स्वतंत्र है. परिणामो के अनुसार मुख्य्मंत्री योगी आदित्यनाथ की भाजपा और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिह यादव की समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर हुई है।

 

महामारी में चुनाव

कोरोना कोविड 19 महामारी के बढते प्रकोप के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने मद्रास हाईकोर्ट के कड़े निर्देश के अनुरूप सभी जगह काउंटिंग के दौरान व्यापक स्वास्थ्य सुरक्षा और अन्य एहतियाती प्रबंध किए थे. सबसे पहले पारंपरिक बैलेट पेपर पर डाक से मिले मतपत्रों की गिनती की गई जो सिर्फ भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के सेवारत कर्मियों को दिए जाते हैं.

बहरहाल , ये तो हुए चुनाव परिणाम जो किसी भी हिसाब से मोदी जी के लिये सुखद नहीं माने जा सकते हैं. दरअसल ये परिणाम मोदी जी ही नहीं , भाजपा, भाजपा के गठ्बंधन एनडीए और भाजपा के ‘मातृ संगठन’ राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ ( आरएसएस) के लिये बहुत निराशाजनक हैं. मोदी जी की सरकार की सेहत पर कोई खास खतरा तत्काल पडने की सम्भावना कम ही नजर आती है. लेकिन कोविड महामारी से बेहाल अवाम के आक्रोश की इस चुनावी अभिव्यक्ति से मोदी सरकार की जो भी नैतिक ताकत पहले रही हो, वह चकनाचूर हो गई है.

आरएसएस के लिये और भी ज्यादा निराशाजनक स्थिति लगती है. क्योंकि 2025 में आरएसएस की स्थापना की शताब्दी मनाने के उपलक्ष्य में ‘इंडिया दैट इज भारत’ को हिंद राष्ट्र घोषित करने का उसका पुराना सपना पूरा करना मोदी सरकार के लिये लगभग असम्भव हो गया है. कैसे? ये बात हम इस साप्ताहिक चुनाव चर्चा कॉलम के अगले अंको में राज्यवार विस्तृत समीक्षा में रेखांकित करेंगे.

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।