चुनाव चर्चा: विधानसभा चुनावों में चकनाचूर हुई मोदी की छवि!

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
काॅलम Published On :


प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की केंद्रीय सत्ता में बनी सरकार के सात बरस  हुए चुनावों में और उसके बाद के सियासी दांवपेंच में उनकी ताकत लगभग चकनाचूर हो गई लगती है. हालिया पांच विधान सभा चुनावों में एकमात्र असम में उनकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में गठबंधन सरकार थी. वहाँ के इस बार के भी चुनाव में भाजपा को अपने बूते स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. बंगाल और केरल में भाजपा की करारी हार हुई. तमिलनाडु में भी इस चुनाव में भाजपा और सत्तारूढ अन्ना द्रविड मुनेत्र कषगम (अन्नाद्र्मुक) के नये औपचारिक गठबंधन की जबर्दस्त शिकस्त हुई.

केंद्र शासित पुडुचेरी में द्रविड मुनेत्र कषगम (द्र्मुक) के नेत्रित्व में गठबंधन सरकार थी जिसे चुनाव के ऐन पहले भाजपा की सियासी जोड़तोड़ के कारण सदन में विश्वास प्रस्ताव हार जाने पर इस्तीफा देना पड़ गया. चुनाव में पुडुचेरी के मुख्य्मंत्री रहे कांग्रेस के पूर्व नेता एन रंगास्वामी की नई बनाई पार्टी आल इंडिया एनआर कांग्रेस (एआईएनआरसी) के साथ भाजपा का गठबंधन था जिसे स्पष्ट बहुमत नही मिला. फिर भी रंगास्वामी की सरकार इसलिये बन गई कि 33 सदस्यो के सदन में उन की पार्टी सीट जीत कर सब से बड़ा दल है और उसे मोदी सरकार द्वारा मनोनीत किये जाने वाले सभी तीन विधायक का समर्थन मिलने की सम्भावना है. असम में भाजपा का गणित ही गडबड नहीं हुआ उसकी आंतरिक केमिस्ट्री भी हवा हवाई होने की कगार पर पहुंच गई.

बंगाल में ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुकी हैं. लेकिन बंगाल समेत विभिन्न चुनावी राज्यो के नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ लेने के बाद ही नई विधान सभा का विधिवत गठन हो सकेगा. नई विधानसभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक के दिन से शुरु माना जाता है.

मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल असम में 31 मई, बंगाल में 30 मई , केरल में का एक जून को, 234 सीट के तमिलनाडु का 24 मई को समाप्त होगा. केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की नौ जून 2016 को निर्वाचित 30 सीट की पिछली विधान सभा का कर्यकाल इस बरस 8 जून तक था. उसे पहले ही भंग कर पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन लागु कर दिया गया. चुनाव राष्ट्रपति शासन में ही हुए.

 

हिमंत बिस्वा सरमा का ‘धोबिया पटान दांव’

कांग्रेस से भाजपा में आये नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने पार्टी के आला नेताओं के साथ कई दिनो की अपनी खींचतान में मोदी जी की एक नहीं चलने दी. बाद में समझौता के तहत राजधानी गुवाहाटी के शंकर कलाक्षेत्र में 10 मई 2021 को दोपहर बारह बजे आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में सर्वानन्दा सोनोवाल की सरकार जगह नई सरकार की बागडोर सम्भाल ली. शपथ राज्यपाल, भाजपा में रहे जगदीश मुखी ने दिलायी. सोनोवाल के पहले हिमंत बिस्वा सरमा ही मुख्यमंत्री थे.

भाजपा ने इस चुनाव में किसी को मुख्यमंत्री पद के लिये अपना दावेदार घोषित नहीं किया था. दरअसल भाजपा ने केरल में मेट्रोमेन ई श्रीधरण के सिवा किसी भी चुनावी राज्य में मुख्य मंत्री पद के लिये अपना दावेदार पेश नहीं किया था. इसके कारण मोदी जी ही बेहतर बता सकते हैं. कहते हैं भाजपा का मातृ संगठन , राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ (आरएसएस) सोनोवाल को फिर मुख्यमंत्री बनाना चाहता था. लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा की इस धमकी के बाद आरएसएस की भी एक नहीं चली कि यदि उन्हे मुख्यमंत्री की कुर्सी नही दी गई तो वे अपनी सरकार बनाने के लिये नवनिर्वाचित अधिकतर भाजपा विधायको को संग लेकर कांग्रेस की शरण में भी जा सकते हैं.

हिमंत बिस्वा सरमा, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन.बिरेन सिंह ये तीनो ही पूर्वोत्तर भारत में भाजपा ऐसे नेता हैं जो पहले कांग्रेसी थे. वैसे ये तीनो ही कांग्रेस में रह कर भी कुल मिलाकर मुस्लिम विरोधी ही रहे थे. भाजपा में आने के बाद से हेमंत बिस्वा सरमा और भी जोर से कहते रहे हैं कि भाजपा को मुस्लिम वोटों की ज़रूरत ही नहीं है. कांग्रेस से 2015 में भाजपा में आये हेमंत बिस्वा
सरमा जालुकबारी सीट से लगातार पांचवीं बार विधायक बने हैं.

 

बंगाल

294 सीट के बंगाल विधान सभा में कांग्रेस ही नही राज्य में 34 बरस सत्ता में रही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा के किसी भी घटक दल को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली. वाम मोर्चा के 27 प्रतिशत वोट कम हुए. संयोग है या कुछ और कि भाजपा के इतने ही प्रतिशत वोट बढ़े. जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के अध्यक्ष रहे सियासी टीकाकार और कोलकाता युनिवर्सिटी के रिटायर हिंदी प्रोफेसर जदीश्वर प्रसाद चतुर्वेदी का दावा है कि वाम-कांग्रेस की सभी सीट भाजपा के खाते में गई और ये ‘गज़ब राजनीतिक ट्रांसफर’ है। सरसरी तौर पर ऐसा लग सकता है.

लेकिन क्या वाकई में ऐसा हुआ है? क्या राज्य में कांग्रेस से औपचारिक चुनावी गठबंधन करने वाले वाम दलों और कांग्रेस के परम्पारगत वोट, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की तरफ बिल्कुल नही गये ? इसका सही उत्तर बाद में उप्लब्ध होने वाले विस्तृत चुनावी आंकडो के गहन अध्ययन से ही मिल सकता है.

हम अपनी तरफ से यह जरूर इंगित करना चाहेंगे कि मोदी जी के न्यू इंडिया के चुनावों में सिर्फ गणित ही नहीं केमिस्ट्री भी होती है और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनो ( ईवीएम) से वोटिंग और काउंटिंग के ‘ गारबेज इन गारबेज आउट’  के ‘सी-वोटर’ टाइप सिफोलोजिकल निष्कर्ष अंततोगत्वां सही ही साबित हों, ये कोई जरुरी नहीं है, गौरतलब है कि सन 2016 के पिछले चुनाव में तीन सीट ही जीत सकी भाजपा की इस बार 76 सीट पर जीत हुई

 

तमिलनाडु

दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र एमके स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक ने 10 साल बाद इस राज्य की सम्भाल ली है. उन्होने11 मई को  मुख्य्मंत्री पद की
शपथ ली . राज्य में द्रमुक की सरकार इसके पहले पांच बार 2006-11, 1996-2001, 1989-91, 1971-76 और 1967-71 में रह चुकी है. स्टालिन पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं. वह पिछली विधानसभा में विपक्ष के नेता थे.

कुल 234 विधानसभा सीटों में से द्रमुक को 133 सीटों पर जीत मिली. द्रमुक के सहयोगी दल कांग्रेस ने 18, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा ) ने दो-दो तथा विदुथलई चिरूथैगल काचि (वीसीके) ने चार सीट जीती है. 2016 में डीएमके ने 89 और कांग्रेस ने आठ सीट जीती थी.

अन्नाद्रमुक केवल 66 सीट जीत सकी. उसकी सहयोगी के रूप में भाजपा को सिर्फ चार सीट मिली. पिछले चुनाव में अन्नाद्रमुक ने जे. जयललिता (अब दिवंगत) के नेतृत्व लगातार दूसरी बार जीत हासिल की थी. 2016 में अन्नाद्रमुक ने 136 सीट जीती थी.

अभिनेता से नेता बने कमल हासन के ‘ मक्कल निधी मैयम (एमएनएम) समेत चार गठबंधन चुनाव मैदान में उतरे थे. कमल हासन कोयंबटूर दक्षिण सीट पर भाजपा की महिला नेता वनति श्रीनिवासन से हार गये.

 

केरल

केरल के मुखयमंत्री पी विजयन ने राज्य विधान सभा में सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की जबरदस्त जीत के बाद नई सरकार बनाने से पहले मौजूदा सरकार का औपचारिक इस्तीफा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को सौप दिया है.

सीपीएम के जानकार सूत्रो ने इस स्तम्भ्कार को फोन पर बताया कि कम्युनिस्ट नेता विजयन की नई सरकार का गठन 18 मई के बाद ही होने की सम्भावना है. कुल मिलाकर देखा जाये तो इन चुनावो में भाजपा की हार ही नहीं नही हुई है मोदी जी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी जोर का झट्का लगा है, वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के अगले बरस निर्धारित चुनाव का सामना करने के लिये इस चुनावी झटके और कोरोना कोविड 19 महामारी की भारत भर में पसर चुकी मारक नई लहर से कैसे निपटेंगे, ये भविष्य के गर्भ में है.

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।