मोदी चुप क्यों जब उनके हनुमान चिराग़ पासवान ‘विभीषण’ से युद्धरत हैं?

प्रेमकुमार मणि प्रेमकुमार मणि
काॅलम Published On :


सबहिं नचावत राम गुसाईं

लोकजनशक्ति पार्टी के सदर चिराग पासवान इस चुनाव में अलग- थलग दिख रहे हैं। उनकी पार्टी एनडीए के कुजात हिस्से के रूप में 135 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वह अपवाद स्वरुप एक या दो सीट पर भाजपा उम्मीदवार के भी खिलाफ हैं; लेकिन मुख्य रूप से उनकी लड़ाई नीतीश कुमार से है। उनका संकल्प है किसी भी प्रकार नीतीश कुमार को सत्ता में नहीं आने देना है।

भाजपा नेताओं की तरह चिराग भी पौराणिक प्रतीकों का खूब इस्तेमाल करते हैं। अयोध्या के राममंदिर निर्माण के दौरान उसका स्वागत करते हुए उन्होंने खुद को शबरी की संतान बताया था। मैंने एक पोस्ट के द्वारा उनसे पूछा था कि आप स्वयं को शम्बूक की संतान क्यों नहीं मानते। लेकिन, इस पर तो उनकी मर्जी होनी ही चाहिए कि किस धारा या परंपरा से जुड़ते हैं। अब वह अपने को हनुमान बतला रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है रामकथा से उन्हें विशेष लगाव है। यह अच्छी बात है। पौराणिकता का इस्तेमाल करना कोई बुरी बात नहीं। महान विचारक कार्ल मार्क्स स्वयं को प्रोमेथ्युस (Prometheus) के रूप में रखते थे। प्रोमेथ्युस एक ग्रीक देवता है, जो स्वर्ग से आग लेकर धरती पर आ रहा था। वह शहीद हो गया। पौराणिक चीलों ने उसका कलेजा काढ़ खाया; लेकिन उसने धरती पर आग लाकर ऊर्जा स्रोत ला दिया और मर्त्यलोक का अँधेरा मिटा दिया।

कल एक कार्यक्रम के दौरान मुझ से पूछा गया कि चिराग के हनुमान रूप पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? यह एक अजूबा- सा सवाल था मेरे लिए। लेकिन मैंने कहा कि हनुमान और शम्बूक रामकथा में दलितों के दो रूप हैं। हनुमान पराक्रमी थे। बहादुर और जादुई व्यक्तित्व। कुछ भी उनके लिए असंभव नहीं था। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से राम की सेवा की। लंका-युद्ध में उनका पराक्रम सर्वोपरि था। उनकी बदौलत ही राम ने रावण को पराजित किया और सीता को मुक्त कराया। लेकिन रामराज में उनकी कोई खास औकात नहीं बन सकी। हनुमान पूंछ डुलाते और राम के चरणों में बैठे देखे गए। एक बार तो उन्हें भक्ति का प्रमाण भी दिखाना पड़ा, जिस में वह अपना सीना फाड़ कर राम को वहाँ अवस्थित दिखाते हैं। मेरे लिए यह अत्यंत ही करुण प्रसंग है। लेकिन कुल मिला कर यह होता है कि रामभक्ति के लिए अंततः उन्हें पुरस्कार मिलता है। जगह-जगह मंदिर, मूर्तियां और लड्डुओं के पुख्ता इंतजाम।

लेकिन शम्बूक एक अलग प्रसंग है। वह दैहिक ताकत नहीं, ज्ञान की ताकत का प्रतीक है। ज्ञान हासिल करने का अधिकार वर्णाश्रमी समाज में केवल द्विज का है। दलित-शूद्र हनुमान की तरह शारीरिक पराक्रम दिखलाएं, भक्ति करें। इसके एवज में उनके लिए सत्ता में लड्डुओं के इंतजाम संभव हैं। लेकिन यदि उन्होंने ज्ञान की ताकत हासिल करने की कोशिश की, तो सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। रामराज में  हनुमान के लिए लड्डुओं की व्यवस्था हुई और शम्बूक का वध हुआ। यही रघुकुल रीति है। रामराज का आदर्श है।

चिराग होशियार हैं। वह शम्बूक की चर्चा भी नहीं करते, उनके पिता अपने सोशलिस्ट दौर में खूब करते थे। चिराग चालाक हैं। उन को हनुमान बनना है। उनकी नजर सत्ता के लड्डुओं पर है। उन्हें अपने राम के लिए काम करना है। उनके राम आज उनके नरेंद्र मोदी हैं। जिनकी छवि उनके ह्रदय में विराजमान रहती है। अपने इस भाव को चिराग ने पूरी भक्ति और स्पष्टता के साथ बार-बार दुहराया है। अपने बिहार के प्रथम चुनावी रैली में ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस भक्त के दिवंगत पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि दी और ऐसा कर के बहुत कुछ कह दिया।

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का यह आधुनिक हनुमान अपने आप में पहेली है। पौराणिक हनुमान ने तो रावण से लड़ाई की थी। यह हनुमान विभीषण से लड़ रहा है। चुनाव सभा के मंच पर विभीषण बार-बार राम की तरफ देख रहा है कि राम अपने हनुमान को कुछ फटकार लगाएंगे। लेकिन राम ने इस विषय पर चुप्पी साध ली। कोई भी इस चुप्पी के अर्थ को समझ सकता है।

बिहार के इस चुनाव में एनडीए अपने चरित्र में भीतर फाँके तीन है। उसे अपने अंदरूनी लड़ाई से ही फुर्सत नहीं है। उसकी इस स्थिति ने महागठबंधन के लिए अनुकूलता पैदा कर दी है। लेकिन जनता को तो समझना है कि विभीषण के विरुद्ध हनुमान के प्रत्यक्ष और राम के छुप कर तीर चलाने की राजनीति क्या है। पौराणिक रामकथा में बाली को समझ में नहीं आया था कि सात ताड़-वृक्षों से छुप कर मर्यादा पुरुषोत्तम भला तीर क्यों चला रहा है! उसने गहरे दुःख के साथ कहा  ‘कारन कवन नाथ मोहि मारा’। इस आधुनिक कथा में विभीषण को समझ में नहीं आ रहा कि इस ज़माने का राम भला छुप कर तीर क्यों चला रहा है! उसकी स्थिति भी बाली की तरह ही है। वह भी बरबस कहना चाहता है-‘कारन कवन नाथ मोहि मारा’।


प्रेमकुमार मणि 1970 में सीपीआई के सदस्य बने। छात्र-राजनीति में हिस्सेदारी। बौद्ध धर्म से प्रभावित। भिक्षु जगदीश कश्यप के सान्निध्य में नव नालंदा महाविहार में रहकर बौद्ध धर्म दर्शन का अनौपचारिक अध्ययन। 1971 में एक किताब “मनु स्मृति:एक प्रतिक्रिया” (भूमिका जगदीश काश्यप) प्रकाशित। “दिनमान” से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक चार कहानी संकलन, एक उपन्यास, दो निबंध संकलन और जोतिबा फुले की जीवनी प्रकाशित। प्रतिनिधि कथा लेखक के रूप श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार(1993) समेत अनेक पुरस्कार प्राप्त। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।