शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने एक विशेष बेंच बैठा कर अपने आपको यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर लिया। न्याय के सभी सिद्धान्तों को धता बताते हुए आरोप के घेरे में आए प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने खुद ही इस बेंच की अध्यक्षता भी कर डाली। गोगोई साहब ने अपने ऊपर लगे आरोपों की स्वतंत्र जांच करने के बजाय इसे न्यापपालिका की स्वायत्तता से जोड़ते हुए किसी ‘बड़े हाथ’ की साजिश भी बता दिया।
लेकिन मेरा सवाल उस ‘बड़े हाथ’ के बारे में पता करना भी है। आज के दिन हमारे देश में किसके ‘हाथ बड़े’ हैं या फिर ‘बड़े हाथ’ वाले कौन-कौन व्यक्ति हो सकते हैं? सुविधा के लिए मान लीजिए ये हैं दस बड़े नाम-
नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, अजीत डोभाल, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल, नितिन गडकरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मलिकार्जुन खड़गे।
इनमें से अंत के तीन नामों को बाहर निकालना ही बेहतर है क्योंकि उनसे में कोई भी व्यक्ति न किसी सरकारी या संवैधानिक पद पर हैं और न ही उनके पास सत्ता की ताकत है, इसलिए उन्हें ‘बड़े हाथ’ में शुमार नहीं किया जा सकता।
फिर सवाल यह है कि जिस ‘बड़ा हाथ’ की तरफ खुलेखाम प्रधान न्यायाधीश इशारा कर रहे हैं, वह कौन है जो सर्वोच्च न्यायालाय के प्रधान न्यायाधीश को ‘फिक्स’ कर देना चाहता है? उनमें से किस व्यक्ति की जान सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले पर अटक जा सकती है?
अगर इस पर गौर करें तो पता चलता है कि राफेल ऐसा मामला है जिसमें देश के कई ‘बड़े-बड़े हाथ’ जख्मी हैं और बात उससे बहुत आगे बढ़ गई है। उस राफेल के तार ऊपर लिखे नामों में से तीन-चार के साथ सीधे जुड़ते हैं। तो क्या खेल वहां से हो रहा है?
हमें उसके बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है!
हां, कोर्ट की अवमानना का एक मामला राहुल गांधी के ऊपर भी है लेकिन वह सिर्फ अवमानना का मामला है जिसमें कोर्ट उन्हें दिन भर कोर्ट रूम में बैठा कर रख सकता है या अधिक से अधिक एक हफ्ते के लिए जेल में भी डाल सकता है। अवमानना का मामला हालांकि राजनीतिक मामला नहीं है और इससे राहुल गांधी के करियर पर कोई कलंक नहीं लग सकता है।
(याद करें, वादाखिलाफी के एक मामले में भाजपा के नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने सजा दी थी जिसमें उन्हें दिन भर कोर्ट में बैठने की सजा सुनाई गई थी)
इसलिए राहुल गांधी को इस मामले में ‘बड़ा हाथ’ मानना उचित नहीं जान पड़ता है।
रविवार की शाम तक ब्लॉग मंत्री अरुण जेटली प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के पक्ष में खुलकर उतर आए थे। इस खबर को इंडियन एक्सप्रेस ने आज विस्तार से पहले पेज पर छापा है। स्पिन डॉक्टर सह वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस घोषित समर्थन ने खेल को नया मोड़ दे दिया है। इसके कई राजनीतिक मतलब निकाले जाने लगे हैं क्योंकि जस्टिस गोगोई के ’बड़े हाथ’ वाले षडयंत्र के वह बहुत ‘बड़े’ किरदार रहे हैं। इसलिए यह स्वाभाविक है कि इस समर्थन को एक खतरनाक ‘समझौते’ के रूप में देखा जाए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं