अख़बारनामा: ऐक्सीडेंटल पीएम के बहाने एक और ‘एक्सीडेंट’ की बात


अमित शाह अभियुक्त थे। उन्हें बरी करने वाले जज को गरवनर बनाया जा चुका है।


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :



संजय कुमार सिंह

आप जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने एक किताब लिखी थी, दि ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर। मैंने यह किताब नहीं पढ़ी। इसकी कथा कहानी छपती रही है, मैंने उसे भी कायदे से नहीं पढ़ा है। इसलिए, मुझे यह भी पता नहीं था कि इस पर फिल्म बन रही थी। कल अचानक पता चला कि इसपर फिल्म बनी है और भाजपा के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से फिल्म का ट्रेलर ट्वीट किया गया। मुझे यह जरा अटपटा लगा पर भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ऐसे ऐक्सीडेंट होते रहे हैं और अखबारों में इनकी चर्चा नहीं होती है या नहीं के बराबर होती है। लेकिन कांग्रेस ने इसपर विरोध कर दिया तो चर्चा होनी ही थी। कल सोशल मीडिया पर यह मुद्दा छाया रहा। इस विवाद के चक्कर में एक खबर रह गई जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड बनाया है। पहले उसकी चर्चा कर लेते हैं।

इसके मुताबिक विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सोहराबुद्दीन मामले में सीबीआई नेताओं को फंसाना चाहती थी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है पिछले दिनों इस मामले में 22 अभियुक्तों को बरी किए जाने का फैसला 350 पन्नो से ज्यादा का है और शुक्रवार को टीओआई ने इसके कुछ हिस्से देखे। इसके मुताबिक, सीबीआई सच तलाशने के लक्ष्य पर काम नहीं कर रही थी। आप जानते हैं कि यह मामला गुजरात के गृहमंत्री हरेन पांड्या की हत्या से जुड़ा हुआ है और इसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अभियुक्त थे। उन्हें बरी करने वाले जज को गरवनर बनाया जा चुका है। दूसरी ओर, भाजपा ने पहले अपने नेता, हरेन पांड्या की हत्या सुलझाने में दिलचस्पी नहीं ली अब फैसले के इस अंश को मानें तो सीबीआई नेताओं (यानी अमित शाह) को फंसाने का काम कर रही थी। क्या अब सीबीआई के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी? कार्रवाई तो छोड़िए, मीडिया इस लाइन पर काम करेगा? देखते रहिए। 

फैसले के अंश टाइम्स ऑफ इंडिया ने कल देखे और यह खबर कई अखबारों में आज ही है। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, सीबीआई के पास नेताओं को फंसाने की थ्योरी और स्क्रिप्ट थी। यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में भी अंदर के पन्ने पर है। इसके मुताबिक भी जांच की दिशा पहले से तय या प्रेरित थी और सीबीआई ने अपना काम ठीक से नहीं किया। फैसले के इस अंश का मतलब साफ है कि सीबीआई पर यह आरोप है कि वह भाजपा नेताओं को फंसाने की दिशा में काम कर रही थी। क्या भाजपा को इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए? क्या भाजपा को इसपर ट्वीट नहीं करना था। पता नहीं किया भी हो तो …। लेकिन यह समझ से परे है कि भाजपा को अपने हरेन पांड्या की चिन्ता नहीं है। हालांकि उनकी तो हत्या हो गई पर सीबीआई अमित शाह को फंसा रही थी और वो सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष हैं। 

पुलिस और सीबीआई नेताओं को फंसा सकती है तो आम लोगों का क्या होगा? मशहूर गॉल्फर ज्योति रंधावा मुख्य रूप से जंगली मुर्गा मारने के कारण (आरोप और भी हैं) 14 दिन के लिए जेल में हैं और अदालत में छुट्टियां होने के कारण दो जनवरी से पहले जमानत की अपील भी दायर नहीं की जा सकती है। क्या अखबारों को और नेताओं को ऐसे मुद्दों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए। ऐसे समय में ऐक्सीडेंटल पीएम का उपयोग बीमा की तरह तो नहीं किया जा रहा है – इसकी जांच कौन करेगा? 

कहने की जरूरत नहीं है कि फिल्मों या किताबों पर विवाद से उनका प्रचार होता है और प्रचार की जरूरत हल्की फुल्की चीजों की होती है। आज के समय में बनी हुई फिल्म का प्रदर्शन रोकना लगभग असंभव है और जितनी रोक लगाई जाएगी उसकी उतनी प्रतियां बनेंगी, बिकेंगी या बंटेगी। यह सब लिखते हुए पत्रकार राणा अयूब की किताब, “गुजरात फाइल्स – एनाटोमी ऑफ अ कवर अप” की याद आती है। किताब क्या होगी यह नाम से ही स्पष्ट है। आज बात चली तो थोड़ी चर्चा किताब की भी। राणा अय्यूब का दावा है कि तहलका ने उन्‍हें इस असाइनमेंट के लिए भेजा था। लेकिन बाद में स्‍टोरी छापने से मना कर दिया। पुस्तक (अंग्रेजी वाली) के अंत में राणा अयूब ने लिखा है, संपादकों ने तय किया कि मेरी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की जाएगी। तब से मैं चुप हूं। अभी तक। इस किताब पर कोई विवाद हुआ क्या। कवर अप के संबंध में राणा अयूब से कोई बात हुई? इसके खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं करके इसकी चर्चा ही नहीं की गई। आप समझ सकते हैं क्यों। हालांकि, अभी वह मुद्दा नहीं है। 

दि ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर हमेशा की तरह सबसे अच्छी खबर अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ की है। शीर्षक है, मीट दि ऐक्सीडेंटल टूरिस्ट …. सात कॉलम के इस शीर्षक के बीच में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सिंगल कॉलम की पूरी लंबाई की फोटो है और इसका कैप्शन है, गोइंग ऑर कमिंग? नीचे लिखा है, शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में मोदी। एक तरफ तीन कॉलम की खबर है, “मोदी का विदेश यात्राओं का बिल : 2021 करोड़”। और दूसरी तरफ तीन कॉलम में ही खबर है, …. और ऐक्सीडेंटल पीएम के पबलिसिस्ट। आप जानते हैं कि संजय बारू पत्रकार रहे हैं और प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे हैं। इस सरकार में मीडिया सलाहकार नहीं रखने का रिवाज है। खबर के इस हिस्से में अखबार ने लिखा है कि फिल्म का प्रचार ट्वीटर पर करने के भाजपा के निर्णय से विवाद शुरू हो गया और इससे पहले कि केंद्रीय नेतृत्व इसे ध्यान बांटने (या विषय बदलने) का दूसरा मुद्दा कहता, कांग्रेस पदाधिकारी जाल में फंस चुके थे। 

आपको याद दिलाऊं कि कल शुक्रवार था और नोएडा के सेक्टर 58 स्थित पार्क में नमाज पढ़ने का दिन था। ऐक्सीडेंटल पीएम के चक्कर में कल सोशल मीडिया पर भी खबर दब गई। अखबारों में तो यह अंदर के पन्नों पर चली ही गई है। खबर यह है कि पुलिस-पीएसी तैनात कर दी गई थी और प्रशासन ने पार्क में पानी भर दिया था। जाहिर है, पार्क में नमाज नहीं पढ़ी गई। और एसएसपी ने कहा कि एहतियात के तौर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। हालांकि, लोगों ने नमाज पढ़े ही। कंपनियों की छत पर और पीर मजार पर। कल ही सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री ने लोकसभा में बताया कि मोदी सरकार ने अपनी योजनाओं के प्रचार पर अब तक 5246 करोड़ रुपए खर्च किए हैं और कल ही पॉस्को ऐक्ट में संशोधन हुआ। बच्चों के यौन शोषण पर अब मौत की सजा होगी। ये सब खबरें आज बिखर गई हैं। हालांकि ये वाली तो विज्ञापन में भी दिखेगी। 

अब आता हूं टेलीग्राफ की खबर पर। इसके मुताबिक, प्रधानमंत्री ने अगर विदेश यात्राओं पर 2021 करोड़ रुपए खर्च किए तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 से 20014 तक की अवधि में उन्हीं मदों पर 1346 करोड़ रुपए खर्च किए थे। मोदी जी 48 बार में 55 देश गए जबकि मनमोहन सिंह 38 बार में 33 देश गए। सरकार से पूछा गया था कि किस देश से कितने पैसे विदेशी निवेश के रूप में आए। अखबार ने लिखा है कि इसका सीधा संबंध नहीं हो सकता है फिर भी इसकी जानकारी दी गई पर यह नहीं बताया गया कि किस दौरे पर पर प्रधानमंत्री के साथ कौन गया था। मनमोहन सिंह के साथ गए लोगों को नाम भी नहीं बताया गया। इस सूचना को संवेदनशील प्रकृति का बताया गया और इस कारण इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है। अब इस सूचना और डिसप्ले के आलोक में अपने अखबार को देखिए और जानिए कि क्या खबर है और क्या नहीं। अमूमन अखबार वाले यह भी नहीं बताते कि अमुक सूचना मांगी गई और सरकार ने नहीं दी या देने से मना कर दिया। ऐक्सीडेंटल पीएम के चक्कर में एक और खबर दब गई है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )