डबल इंजन सरकारों में अगर सुशासन का कोई पुरस्कार हो तो वह नीतिश कुमार की बिहार सरकार को मिलना चाहिए। कोविड मौतें छिपाने में बिहार सरकार की सफाई का जवाब नहीं। बिहार और उत्तर प्रदेश की तुलना करें तो कोई मुकाबला नहीं। पोल खुलने की खबर ‘द टेलीग्राफ’ और ‘द हिन्दू’ में ही पहले पन्ने पर है तो यह हेडलाइन मैनेजमेंट की भी सफलता है। खबर यह है कि, बिहार में कोविड से मरने वालों की संख्या अचानक 72 प्रतिशत बढ़ गई। यह खबर आज ‘द हिन्दू’ और ‘द टेलीग्राफ’ में लीड है। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। दूसरी ओर, खबरों के चयन के नजरिए से देखें तो आज एक खबर चारों अखबारों में पहले पन्ने पर है।
यह खबर है, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सर्मा ने मुसलमानों से कहा है कि वे एक अच्छा परिवार नियोजन अपनाएं। इंडियन एक्सप्रेस में फोटो के साथ यह सूचना पहले पन्ने पर दी गई है कि खबर अंदर है। बाकी अखबारों में भी यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। पांचवां, द टेलीग्राफ अपवाद है। वैसे तो असम के मुख्यमंत्री की अपील पहले पन्ने पर है और ऐसा पहले नहीं होता था, कम से कम मुझे याद नहीं है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी एक धर्म के लोगों से कोई अपील करे। अपील जनता के नाम ही की जानी चाहिए, जिसके लिए होगी वह समझ ही जाएगा। अगर मुख्यमंत्री को लगता है कि सिर्फ मुसलमानों को परिवार नियोजन अपनाने की जरूरत है तो वे अपील सबसे करते जिन्हें जरूरत नहीं है वे समझ जाते। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेता ऐसा जान-बूझ कर करते हैं और अखबार वाले उसे प्राथमिकता देते हैं। वैसे भी, ऐसी कोई अपील की गई है इसे जानकर दिल्ली के लोग क्या करेंगे और अगर यह सूचना है तो कोई नई नहीं है।
डबल इंजन सरकार बनाने का दावा करने वाली भाजपा अगर आयातित नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी तो लोगों को अपना रंग दिखाना होगा और हो सकता है असम के मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा नेताओं को अपना रंग दिखाने की कोशश की हो और समर्थक मीडिया से प्रचार की अपेक्षा की हो। मुझे यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण लग रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं और अंतररात्मा की आवाज पर भाजपा की सरकार बनवा देने वालों के रहते इस बात की भी चर्चा है कि योगी जनसंघ से नहीं हैं। इस बार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन हो या हो भी कि नहीं। इस क्रम में कल योगी आदित्य नाथ का दिल्ली में होना, असम के मुख्यमंत्री का बकवास बयान और नीतिश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को उभारना भाजपा की राजनीति का समग्र परिणाम भी हो सकता है। हो सकता है कुछ दिन में स्पष्ट हो वरना यह संयोग यूं ही नहीं होगा। मैं तो यही मानता हूं कि बहुत सारे अखबार भाजपा के प्रचारक बन गए हैं।
नहीं छपने वाली खबर
ऐसा मैं यू ही नहीं कहता। बिहार का मामला साधारण नहीं है। लेकिन किसी और अखबार में सिंगल कॉलम भी नहीं है। और बात सिर्फ छपी हुई खबर की नहीं होती है जो खबर नहीं छपती है उसका भी महत्व है। उदाहरण के लिए, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वैक्सीन के स्टाक और उसके रख-रखाव के लिए आवश्यक तापमान को लेकर इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क (ईविन) पर उपलब्ध डाटा को सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं किया जाए। शुरू में सिर्फ स्टॉक की सूचना साझा नहीं करने की बात थी। इसपर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कल ही एतराज किया था पर आज यह खबर किसी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं दिखी जब भाजपा के मुख्यमंत्री की सांप्रदायिक राजनीति की खबर पहले पन्ने पर है। दिल्ली में आम आदमी का संबंध असम की राजनीति या मुसलमानों से ज्यादा है या टीके से? जाहिर है खबरों के चयन की शिक्षा कहीं और दी जाती है। या कोई दबाव है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि कोलकाता के द टेलीग्राफ में दिल्ली के तिहाड़ जेल की खबर पहले पन्ने पर है जो दिल्ली के दूसरे अखबारों में नहीं है। यह उत्तर पूर्व दिल्ली में नए नागरिकता कानून के खिलाफ धरना देने के लिए गिरफ्तार देवांगना कलिता और नताशा नरवल के जेल में एक साल पूर्ण होने और इस मौके पर जारी पुस्तिका आदि से संबंधित है।
टीके को लेकर सरकार की गंभीरता
टीकाकरण से जुड़ा एक तथ्य यह है कि सबको टीका लगना है और महामारी से बचाव का यही सबसे प्रभावी तरीका है। ऐसे में लोगों को टीका लगवाने के लिए तैयार और सहमत करना भी एक काम है और यह काम सरकर का है। सरकार ने इस दिशा में कितना काम किया है, आप जानते हैं। प्रधानमंत्री की चिन्ता आप जानते हैं। उन्होंने यह नहीं कहा है कि इससे निपटने के लिए वे कुछ करेंगें। इसलिए होना-जाना कुछ नहीं है। ऐसी स्थिति में द हिन्दू ने आज बताया है कि टीके के डर से उड़ीशा के गांव के आदिवासी भाग गए हैं। दूसरी ओर, जब किनारे लाशें मिल रही थीं और कहा जा रहा था कि लोग अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं इसलिए रेत में दाबकर छोड़ दे रहे हैं तो प्रचारकों ने यह प्रचारित किया और यह यकीन दिलाने की कोशिश की कि ‘यह’ परंपरा है। जबकि परंपरा हो भी तो उसे कायदे से निभाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
टीके का स्टॉक नहीं बताना
इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस ने आज यह खबर तो पहले पन्ने पर नहीं छापी है लेकिन पूछा है कि बीएमसी के वैक्सीन केंद्र क्यों बंद हो गए जबकि निजी अस्पतालों के पास लाखों खुराक थी। मैं इस खबर की सत्यता या इस सवाल की नैतिकता की बात नहीं भी करूं तो अब यह सार्वजनिक है कि पुरानी टीका नीति दोषपूर्ण थी, बदल दी गई है। इस बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है और किसी ने खबर चाहे न छापी हो, सरकार पर इतना दबाव पड़ा कि उसे नीति बदलनी पड़ी। ऐसे में यह बताना या रेखांकित करना कि कॉरपोरेट ने एक खेप में ज्यादा दवा खरीद ली और बीएमसी ने नहीं खरीदे या कम खरीदे – राजनीति है जर्नलिज्म ऑफ करेज नहीं है। स्पष्ट रूप से यह गैर जरूरी खबर बीएमसी चलाने वाली पार्टी के खिलाफ है और दिल्ली में पहले पन्ने पर छापने का कोई मतलब नहीं है। वह भी तब जब सरकार कह रही है कि टीकों का स्टॉक सार्वजनिक न किया जाए और आप उस खबर को पहले पन्ने पर नहीं छाप रहे हैं।
राशन की होम डिलीवरी
हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर दिल्ली के राशन माफिया के खिलाफ एक खबर है जो राशन की होम डिलीवरी करने की दिल्ली सरकार की योजना और उसे केंद्र सरकार द्वारा रोक दिए जाने के आरोपों की याद दिलाती है। आम जनता के हित में इस खबर के साथ छपी फोटो भी दिलचस्प है और बताती है कि देश की राजधानी दिल्ली में गरीबों के लिए राशन की दुकानें नागरिकों को कितना परेशान करती हैं। यह समस्या जमाने से चली आ रही है और जरा सी कोशिश करके खत्म की जा सकती है। दिल्ली सरकार ने लोगों की इस परेशानी को दूर करने की कोशिश की तो उसे रोक दिया गया और ऐसी सरकार से देश के बाकी हिस्सों के लिए क्या उम्मीद की जाए यह बताने वाली बात नहीं है। दिल्ली सरकार ने केंद्र पर राशन माफिया का साथ देने का आरोप लगाया है। लेकिन खबर पहले पन्ने पर नहीं दिखी पहले पन्ने पर असम के मुख्यमंत्री की खबर है।
मेहुल भाई के नाम पर राजनीति
प्रधानमंत्री के ‘मेहुल भाई’ का मामला दिलचस्प तो था ही और मजेदार होता जा रहा है। उसे वापस लेने के लिए जेट भेजने का ड्रामा पूरी तरह नाकाम रहा और उसका अपहरण किए जाने की खबरों से लगने लगा कि वाकई कहीं पूरा मामला प्रचार का ही तो नहीं था। भारत से ही संचालित किए जाने की भी संभावना लग रही थी। पहले पन्ने पर जेट की फोटो छाप कर मेहुल भाई के वापस आने की उम्मीद और फिर जेट खाली हाथ वापस आने की खबर दूसरे अखबार में भी जेट की फोटो के साथ छपी। कितनी अच्छी व्यवस्था थी पर उसे भारत को सौंपा जा सकता है यह उम्मीद किसे कैसे हुई यह मुझे नहीं समझ में आया। आज हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर छोटी सी खबर है कि वह वापस अपने वतन एंटीगुआ पहुंच गया है। आप जानते हैं कि बिना वीजा दस्तावेज एंटीगुआ से डोमिनिका पहुंचने पर गिरफ्तार किए गए मेहुल भाई को पीटा भी गया था और वहां से वापस लाने के लिए जेट भेजा गया था। क्या, कैसे हुआ अखबारों ने ठीक से नहीं बताया पर जो खबर छपी उससे लगा कि उसका अपहरण कर उसे डोमिनिका पहुंचाया गया और इस उम्मीद में जेट भेजा गया कि डोमिनिका उसे भारत को सौंप देगा। पर वह एंटिगुआ का नागरिक है इसलिए ऐसा होना नहीं था और अपहरण भारतीय शैली में बोलने वालों ने किया जैसी खबरों से जो बदनामी हुई उसकी लीपापोती करने वाली खबर बुधवार को टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर थी। इसमें उसकी सहेली के हवाले से बताया गया था कि वह अपहरण में शामिल नहीं थी और मोटा-मोटी यह कि मेहुल भाई ने ऐसे कारनामे किए कि उसके साथ ऐसा हुआ, सामान्य बात है आदि।
राजनीति समझिए और तैयार रहिये
आज इन खबरों से समझिए कि जिस पार्टी के पास मंत्री बनाने के लिए लोग नहीं हैं जो मंत्री बनाए गए उनकी योग्यता पर भरोसा नहीं है तथा काम किसी और से करवाया जाता है और जो चुनाव जीते या जितवाए गए हैं वे ऐसे मामलों में कुछ बोल नहीं सकते फिर भी नरेन्द्र मोदी डबल इंजन की सरकार बनाने के लिए वोट देने की अपील करते हैं। जनता वोट दे या न दे विधायक खरीद कर, अंतरात्मा की आवाज जगाकर भाजपा की सरकार बन जाती है, नेता आयात करना जारी रहता है और फिर चुनाव के समय मीडिया मैनेजमेंट शुरू हो जाता है। बंगाल में उम्मीदवार नहीं थे लेकिन 200 सीटें जीतने का दावा था वहां भी आयातित नेता ही सबसे आगे थे। डबल इंजन का सुशासन देखने के बाद उसकी बदनामी से निपटने का तरीका समझिए और फिर चुनाव आने वाले हैं, तैयार रहिए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।