आठ दिसंबर को ‘ भारत बंद’ है। देश में किसान आंदोलन भी हफ़्तों से जारी है। शासक नगरी दिल्ली की घेराबंदी हो चुकी है। किसानों की मांगों से हम सभी परिचित हो चुके हैं। उन्हें दोहराने की अब ज़रूरत नहीं है। मुख़्तसर में यह देश के किसान और किसानी को कॉर्पोरटे पूँजी का बंधक बनने से बचाने का ‘ मुक्ति संघर्ष ‘ है। देश में कृषि संकट सालों है और नतीजतन लाखों किसान ‘आत्म उत्सर्ग ‘ कर चुके हैं। इस त्रासदी से राष्ट्र बेखबर नहीं है। यह सुखद इत्तफ़ाक़ है कि भारत बंद और किसान संघर्ष समान वक़्त व धरातल पर हो रहे हैं। इस मुद्दे पर देश का प्रतिपक्ष एकजुट हो चुका है और समर्थन के पक्ष में बयान भी जारी कर चुका है।याद रखें ,यह एकांगी घटना नहीं है बल्कि बहु आयामी है। इसकी सफलता या असफलता के दूरगामी परिणाम निकलेंगे जिनका प्रकारांतर से प्रभाव देश की शासन व्यवस्था और नागरिक जीवन शैली पर अपरिहार्य रूप से पड़ेगा। वास्तव में लम्बे समय के बाद ऐसा अवसर आया है जब सम्पूर्ण राष्ट्र आंदोलित है और चंद आत्मग्रस्त शासकों की आतंकी हठधर्मिता से मुक्ति के लिए छटपटा रहा है।
इसलिए निम्न चंद बिंदुओं के आधार पर प्रत्येक विवेकशील नागरिक ,देशभक्त , लोकतंत्र और संविधानपरस्त का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वे इस ऐतिहासिक क्षणों में खामोश न बैठे रहें और इस बहु आयामी अनुष्ठान को अपना सक्रीय समर्थन दें :
- लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिए
- किसान व किसानी की आज़ादी के लिए
- कॉर्पोरटे पूँजी की पोशाक में नवउपनिवेशवाद के विरुद्ध
- नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को अक्षुण रखने के लिए
- अधिनायकवादी– निरंकुश शासन तंत्र के विरुद्ध आवाज़ उठायें।
- व्यक्तिगत व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिमायत में।
- धर्म –मज़हब के विकृतिकरण के ख़िलाफ़ एकजुटता का प्रदर्शन।
- अघोषित सेंसरशिप के खिलाफ और स्वतंत्र मीडिया के पक्ष में।
- एक समतावादी ,अन्धविश्वास और जातिवादमुक्त भारत के निर्माण के खातिर।
- समान शिक्षा , स्वास्थ्य ,आवास ,प्रदूषण मुक्त पर्यावरण और गरिमापूर्ण रोज़गार के लिए आवाज़ बुलंद करें।