यह अभूतपूर्व ‘हिंदू समय’ है। ऊपर से नीचे तक हिंदुत्व का शोर है, ज़ोर है। प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति से लेकर गली का नौजवान तक हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन का घोष एक स्वर मे कर रहे हैं। सत्ता पर भरपूर नियंत्रण का सपना भी पूरा हो चुका है। घंटा-घड़ियाल बज रहा है। अयोध्या में मंदिर बस बनने ही वाला है।
लेकिन इसी बीच राजस्थान में चार नौजवान इस हताशा में ट्रेन के सामने कूद जाते हैं कि उन्हें नौकरी तो मिलनी नहीं है, जी कर क्य करेंगे। इनमें से तीन की तत्काल मौत हो जाती है। एक बुरी तरह घायल है। घटना राजस्थान के अलवर की है जहाँ महारानी वसुंधरा फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए सारा ज़ोर लगाए हुए हैं।
ये चारों नौजवान हिंदू हैं। लेकिन आज उनका हिंदू होना किसी को याद नहीं आ रहा है। हिंदू ही नहीं मीणा भी हैं यानी उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा भी हासिल है। यानी आरक्षण भी मिलता है। फिर भी भरी जवानी में हिंदुत्व का घंटा घड़ियाल छोड़ उन्हें जीने नहीं मरने की ओर ढकेल देता है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रचार के बीच घटी इस भयानक घटना पर तूफान मच जाना चाहिए था लेकिन मीडिया में कोई शोर नहीं मचा। चौबीस घंटे चीखने वाले चैनलों के लिए यह एक सामान्य घटना है। सिर्फ़ राजस्थान पत्रिका है जिसने इस ख़बर को पूरी तवज्जो दी है।
हादसे कुछ यूँ है- अलवर शहर के शांतिकुंज स्थित एफसीआई गोदाम के पास चार दोस्तों ने मंगलवार शाम यानी (20 नवंबर) ट्रेन के आगे छलांग लगा दी। उम्र सुनकर कलेजा मुँह को आएगा। मनोज मीणा सिर्फ 24 साल, सत्यनारायण मीणा और अभिषेक मीणा सिर्फ 22 साल और रितुराज मीणा सिर्फ 17 साल। अभिषेक को छोड़कर सबकी मौत मौके पर हो गई।
यह घटना नौजवानों की चरम हताशा का सबूत है। उन्हें न महाबली प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा रहा जिन्होंने कभी हर साल दो करोड़ नौजवानो को रोजगार देने का वादा किया था न उस महारानी पर का जिसने राजस्थान की तकदीर बदल देने का दावा किया है। शायद उन्हें उम्मीद रही होगी कभी जो टूटती गई। फिर जुमला समझकर हँसे होंगे लेकिन अब शायद दर्द इतना बढ़ा कि मौत आसान लगने लगी।
हादसे के चश्मदीद राहुल मीणा ने बताया है कि मरने से पहले सारे यही कह रहे थे कि नौकरी तो मिलनी नहीं है, जी कर क्या करेंगे। मरने से पहले उन सबने घरवालो से बात की और फिर जयपुर-चंडीगढ़ ट्रेन आई तो कूद गए।
मनोज और सत्यनारायण बीए कर चुके थे और अलवर में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। रितुराज बीए के पहले साल में था और घायल अभिषेक 12वीं करने के बाद रेलवे की तैयारी कर रहा था।
देश में जैसा माहौल है, उसमें ज़्यादातर मुसलमानों ने सरकार से उम्मीद करना छोड़ दिया है। वे न रोजगार चाहते हैं न कुछ और। उनके लिए यही बड़ी बात है कि जान बची रहे। किसी सड़क पर आते-जाते पीट-पीट कर मार न डाले जाएँ। उनकी नज़र में ये देश अब सिर्फ़ हिंदुओं का है।
लेकिन हिंदू नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं। वही भी जोश से उड़ने की उम्र में। उन्हें यह बात भी उम्मीद नहीं जगाती कि उनकी जाति को आरक्षण हासिल है जो सवर्णों कहे जाने वालों की नजर में नौकरी की गारंटी है। उन्हें यह हक़ीक़त पता है कि सरकारी नौकरियाँ है ही नहीं तो आरक्षण लागू कहाँ होगा। सरकार का पूरा ज़ोर निजी क्षेत्र में है जहाँ आरक्षण है ही नहीं।
बहरहाल, हिंदुत्ववादी सरकार और सरकारों को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। हिंदुत्व जागरण के इस ऐतिहासिक अवसर पर रोजगार की बात करना उनकी नज़र में देशद्रोह है। मीडिया उनके साथ है जहाँ अलवर के इन बेरोज़गारों की ख़ुदकुशी की ख़बर ढूँढना मुश्किल है। चैनल हिंदू-मुस्लिम डिबेट में व्यस्त हैं। उनकी टीआरपी के लिए संबित पात्रा मस्त है।
सुना है कि महीने के अंत में किसान दिल्ली आ रहे हैं…क्या बेरोज़गार नौजवानों का भी कोई लाँग मार्च होगा?
.बर्बरीक