पूर्व आई.जी ने कहा कि दलितों का दमन कर भोजन की नौटंकी कर रहे हैं योगी!

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यूपी के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक और जनमंच के संयोजक एस.आर.दारापुरी ने मुख्यमंत्री योगी का प्रतापगढ़ के एक दलित परिवार के घर भोजन करना महज़ नौटंकी करार दिया है.

दारापुरी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि ‘कल योगी जी ने प्रतापगढ़ में दयाराम सरोज दलित के घर जो खाना खाया है वह उनके दलित प्रेम का नहीं बल्कि दलितों को प्रति झूठा प्रेम दिखा कर उनका वोट बटोरने का प्रयास मात्र है. योगी जी को यह नाटक करने की ज़रुरत इस लिए पड़ रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश के दलित भाजपा की दलित विरोधी नीतियों तथा निरंतर बढ़ रहे उत्पीड़न के कारण भाजपा से दूर जा रहे हैं जबकि पिछले चुनाव में दलितों के एक बड़े हिस्से ने भाजपा को बड़ी उम्मीद के साथ वोट दिया था. परन्तु भाजपा के एक वर्ष के शासनकाल में दलितों की कोई भी उम्मीद पूरी नहीं हुयी है बल्कि इसके विपरीत उनका उत्पीड़न बड़ा है.

बयान के मुताबिक दलितों के उत्पीड़न का सबसे बड़ा उदाहरण पिछले साल सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में 5 मई, 2017 को कुछ सवर्णों (राजपूतों) द्वारा दलितों पर किया गया हमला है जिसमें दलितों के लगभग 60 घर जलाये गये थे तथा  21 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. यह भी बताया गया है कि जिस दिन लखनऊ में योगी द्वारा शपथ ग्रहण की गयी थी उसी दिन शब्बीरपुर में राजपूतों द्वारा जुलूस निकाल कर “यूपी में रहना है तो योगी योगी कहना होगा” जैसे नारे लगाये गये थे जिसका मूल मकसद दलितों को यह जिताना था कि अब यूपी में हमारी सरकार आ गयी है और आपको सवर्णों  से डर कर रहना होगा. इसके बाद 5 मई को शब्बीरपुर में महराणा प्रताप जयंती के अवसर पर बिना किसी अनुमति के नंगी तलवारें तथा भाले लेकर दलित बस्ती के सामने डीजे बजा कर जुलुस निकाला गया जिसमें अन्य नारों के साथ साथ डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे भी लगाये गये. इस पर जब दलितों ने एतराज़ किया तो उन पर बड़ी संख्या में हमला किया गया, उनके घर जलाए गये तथा भारी संख्या में दलितों को चोटें पहुंचाई गयीं. यह उल्लेखनीय है कि दलितों पर यह हमला पुलिस की मौजूदगी में हुआ परन्तु उसने कोई कार्रवाही नहीं की थी. दलितों ने इस प्रकार के हमले की सम्भावना के बारे में पुलिस एवं प्रशासन को पहले ही अवगत कराया था परन्तु रोकथाम की कोई कार्रवाई नहीं की गयी. इससे पहले कुछ सवर्णों द्वारा प्रशासन से मिल कर दलितों को रविदास मंदिर के प्रांगण में आंबेडकर की मूर्ती लगाने नहीं दी गयी थी.

दारापुरी ने कहा है कि शब्बीरपुर में दलितों द्वारा 5 मई को सवर्णों के हमले के दौरान जो भी पथराव किया गया वह केवल आत्मरक्षा की कार्रवाई  थी जिसका उन्हें कानूनी अधिकार प्राप्त था. परन्तु इसके बावजूद पुलिस द्वारा दलितों को ही हमले का दोषी मान कर 7 दलितों की गिरफ्तारी की गयी तथा उनमें से दो पर रासुका भी लगा दिया गया. सवर्णों की तरफ से भी केवल 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा दो पर रासुका लगाया गया. इस प्रकार पुलिस ने हमला करने वाले सामंती सवर्ण तथा हमले का शिकार हुए दलितों पर एक जैसी कार्रवाई करके दोहरा अन्याय किया. यह उल्लेखनीय है कि शब्बीरपुर के सभी दलित अभी तक जेल में हैं. इसी प्रकार जब पुलिस ने हमले के शिकार हुए दलितों के सम्बन्ध में उचित कार्रवाई  नहीं की तो भीम आर्मी के लोगों ने 9 मई को विरोध प्रदर्शन करना चाहा तो पुलिस ने बल प्रयोग करके अराजकता पैदा की जिसके फलस्वरूप शहर में कुछ पथराव तथा पुलिस से टकराव हुआ. पुलिस ने इस सम्बन्ध में भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर तथा अन्य सदस्यों पर 19 मुक़दमे दर्ज कर लिए. उसके बाद भीम आर्मी के सदस्यों का दमन तथा गिरफ्तारियां शुरू हुईं. चंद्रशेखर सहित भीम आर्मी के 40 लोग गिरफ्तार किये गये जिनमें से कुछ लोग कई कई महीने जेल में रह कर रिहा हुए हैं. चंद्रशेखर को हाई कोर्ट से जमानत मिल जाने के बावजूद भी उस पर रासुका लगा दिया गया तथा वह लगभग एक साल से जेल में है जिसकी रिहाई के लिए बराबर धरना व प्रदर्शन चल रहे हैं. इस घटना से ही स्पष्ट है कि योगी सरकार दलितों की कितनी हितैषी है.

जनमंच की ओर से जारी इस बयान में कहा गया है कि इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट को लेकर दलितों द्वारा देशव्यापी भारत बंद किया गया तो पुलिस द्वारा मेरठ में जानबूझ कर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करके अव्यवस्था पैदा की गयी जिसमें पुलिस द्वारा फायरिंग से एक नौजवान मारा गया. पुलिस ने 9,000 प्रदर्शनकारियों पर केस दर्ज किये तथा अब तक 500 से अधिक गिरफ्तारियां  की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं एक विधायक को खुले आम बेइज्ज़त करके गिरफ्तार किया गया. दलित नवयुवकों को गिरफ्तार करके कंकड़खेड़ा थाने में बेरहमी से पीटा गया. दूसरी जगह पर भी दलित नवयुवकों को बुरी तरह से पीटा गया तथा उनके हाथों में कट्टे दिखा कर गिरफ्तार किया गया. मेरठ में अभी भी अधिकतर नौजवान घरों से भगे हुए हैं. इसी प्रकार जब मुज़फ्फर नगर में कुछ असमाजिक तथा अपराधी तत्वों ने दलितों के जुलूस में घुस कर तोड़फोड़ की तो पुलिस ने उन तत्वों को न पकड़ कर दलितों पर ही गोली चलाई जिससे एक लड़का मारा गया. इस पर पुलिस ने 7,000 दलितों पर केस दर्ज किये हैं. अब तक 250 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं तथा आगे भी जारी हैं. इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को सहारनपुर में भीम आर्मी के सदस्यों ने जुलूस निकाल कर चंद्रशेखर की रिहाई के लिए प्र्त्यावेदन दिया तो 900 लड़कों पर केस दर्ज कर लिया गया. इसके इलावा उसी दिन हापुड़ तथा बुलंदशहर में भी दलितों पर बड़ी संख्या में केस दर्ज किये गये हैं तथा गिरफ्तारियां  की जा रही हैं. इसी प्रकार 2 अप्रैल को इलाहाबाद में भी 27 छात्र नेताओं पर भी गंभीर धारायों में केस दर्ज किया गया है. इन सभी स्थलों पर पुलिस चुन चुन कर दबिश दे रही है और दलित घर छोड़ कर भगे हुए हैं. ऐसा प्रतीत होता कि है योगी सरकार दलित दमन पर पूरी तरह से उतर आई है.

दारापुरी का कहना है कि उत्तर प्रदेश  में दलितों की आबादी लगभग 4 करोड़ 14 लाख है जोकि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का 21% है तथा यह आबादी देश के किसी भी राज्य की दलित आबादी से अधिक है.  इसमें चार बार दलित मुख्य मन्त्री रही हैं. परन्तु एक बहुत चिंता की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर सबसे अधिक अत्याचार होते हैं जिसका एक कारण तो दलितों की सबसे बड़ी आबादी है और दूसरे उत्तर प्रदेश की सामंती/ जातिवादी व्यवस्था है जो आज़ादी के 70 साल बाद भी बरकरार है. हाल में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा क्राईम इन इंडिया-2016 रिपोर्ट जारी की गयी है जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 में दलितों पर अत्याचारों की संख्या 10,426 थी जो कि देश में दलितों पर कुल घटित अपराध का 26 % है जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 21% ही है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की स्थिति बहुत गंभीर है. यही स्थिति 2015 तथा 2014 में भी थी और वह 2017 में भी है जैसाकि समाचार पत्रों में प्रतिदिन छपने वाली घटनाओं से स्पष्ट है.

दलित दमन की उपरोक्त घटनाओं के इलावा पूरे उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. इनमें उन्नाव में बलात्कार के बाद दलित लड़की का जलाया जाना, बाँदा में दलित औरत का बलात्कार तथा बलिया में एक दलित औरत को पीट पीट कर मारने जैसी घटनाएँ प्रमुख हैं. पूरे प्रदेश में दलित हिन्दुत्ववादियों तथा सामंती सवर्णों  के निशाने पर हैं परन्तु सरकार की तरफ से उन्हें कोई संरक्षण अथवा राहत नहीं मिल रही है. इसके साथ ही दलितों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है तथा पैरों एवं टांगों में गोलियां मार कर जख्मी करके जेलों में सड़ाया जा रहा है. ऐसी परिस्थिति में अगर दलित भाजपा से दूर जा रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है. यह भी निश्चित है कि अब दलित योगी अथवा अमित शाह द्वारा अपने घरों में खाना खाने के नाटक को अच्छी तरह से समझ गये हैं और वे अब दोबारा भाजपा के झांसे में आने वाले नहीं हैं.

जन मंच ने मांग की है की यदि योगी और भाजपा वास्तव में दलितों के शुभचिन्तक हैं तो योगी सरकार जेल में एक साल से बंद चंद्रशेखर तथा शब्बीर पुर के दलितों को तुरंत रिहा करे, 2 अप्रैल को मेरठ तथा मुज़फ्फर नगर में मारे गये दलितों को बीस बीस लाख का मुआवज़ा दे, भारत बंद के दौरान गिरफ्तार किये गये सभी दलितों को तुरंत रिहा करे तथा सभी मुक़दमे वापस ले, मेरठ में दलित लड़कों की पिटाई करने वाले तथा झूठे केस दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों पर तुरन दंडात्मक कारवाही करे तथा एससी/एसटी एक्ट की बहाली  हेतु तुरंत अध्यादेश लाये अन्यथा अब दलित किसी भी नौटंकी से प्रभावित होने वाले नहीं हैं.

 

जन मंच, उत्तर प्रदेश की ओर से जारी विज्ञप्ति के आधार पर।

 



 


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