पिछले साल 25 मई को पत्र सूचना ब्यूरो (पीआइबी) ने एक विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें राष्ट्रपति भवन में एक भव्य कार्यक्रम की सूचना दी गई थी जहां राष्ट्रपति की मौजूदगी में दो किताबों का लोकार्पण होना था- इनमें एक थी ”मन की बात: ए सोशल रिवॉल्यूशन ऑन रेडियो” जिसके लेखक बताए गए थे राजेश जैन, जो प्रधानमंत्री मोदी के पूर्व सहयोगी रहे। इस किताब के बारे में परिचय दिया गया कि यह प्रधानमंत्री के साप्ताहिक रेडियो शो का विश्लेषण है।
दूसरी किताब इंडिया टुडे के पत्रकार और मोदी के करीबी उदय माहुरकर की लिखी थी जिसका नाम था ”मार्चिंग विद अ बिलियन: एनलाइजि़ंग मोदीज़ गवर्नमेंट इन मिड टर्म”।
सब कुछ ठीक थ सिवाय एक विवरण के- ”राजेश जैन का उस किताब (मन की बात) से कोई लेना-देना ही नहीं था”, यह बात पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने एनडीटीवी को बतायी है। शौरी ने एनडीटीवी से कहा, ”वे (जैन) मेरे मित्र हैं। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें जबरन किताब लोकार्पण के कार्यक्रम में खींच लाया गया और एक भाषण पढ़ने के लिए थमा दिया गया।”
राजेश जैन ने एनडीटीवी से अरुण शौरी के बयान की पुष्टि करते हुए कहा, ”मैं ‘मन की बात’ का लेखक नहीं हूं और अपना नाम लेखक की जगह देखकर चौंक गया था।”
जैन का कहना है कि वे ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन के साथ काम करते थे जो प्रधानमंत्री मोदी के ‘मन की बात’ का प्रसारण करता था लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस किताब से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
जैन के मुताबिक, ”मुझे पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने आयोजन में आने को कहा था। वहां मैंने पाया कि मेरा नाम कार्ड पर लेखक के बतौर छपा है। आयोजन में मैंने स्पष्ट कर दिया कि मैं लेखक नहीं हूं। इसके बावजूद पीआइबी की साइट और narendramodi.in पर मेरा नाम लेखक के बतौर दिखाया जाता रहा।”
जैन का कहना है कि उन्हें कोई अंदाजा नहीं कि किताब किसने लिखी है और उन्हें जबरन लेखक क्यों बना दिया गया।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक पीआइबी की वेबसाइट पर किताब के लाकार्पण से जुड़ी तीन प्रेस विज्ञप्तियां हैं जो अपने में मामले को रहस्यमय बना देती हैं। पहली विज्ञप्ति 25 मई 2017 की है जिस दिन किताब का लोकार्पण हुआ। वह कहती है कि किताब ”राजेश जैन की है”। अगले दिन दूसरी विज्ञप्ति के मुताबिक किताब ”राजेश जैन की लिखी हुई है”। उसी शाम एक और विज्ञप्ति ने बताया कि किताब ”श्री राजेश जैन द्वारा संकलित है”।
ईटेलर अमेज़न की साइट पर किताब के कवर पर लेखक का नाम नदारद है। एनडीटीवी ने जब पीआइबी के प्रवक्ता से संपक किया तो उन्होंने दावा किया कि किताब जैन द्वारा संकलित है लेकिन जैन के इस दावे कोई जवाब नहीं दिया कि किताब से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
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