राजस्थान हाईकोर्ट में मनु की प्रतिमा पर कालिख पोतने वाली महिलाओं को थाने में मारने की धमकी!

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पुरुष- कितना पढ़ी है…दो लाइन बताओ मनु के बारे में

हिला–मनुस्मृति लिखने वाला ब्राह्मण….

पुरुष- (बीच में रोकते हुए) मैं ब्राह्मण हूँ तो क्या कालिख पोत दोगी..?

महिला- किताब में क्या लिखा है, वह पढ़ ले तू…

(शोर..पुरुष के आगे बढ़ने का आभास..)

महिला –ये नहीं करने का..

पुरुष –बहुत बुरी तरह मारी जाएगी तू…

यह पुरुष स्वर पत्रकार का है, वकील का या किसी पुलिस वाले का, कहना मुश्किल है। लेकिन जो भी है उत्तेजित है क्योंकि राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में 29 साल से खड़ी मनु की प्रतिमा पर कालिख पोती गई है। कालिख पोतने वाली और कोई नहीं वही महिला है जिसके साथ ऊपर संवाद दर्ज है।

(यह उस वीडियो में दर्ज बातचीत का एक छोटा टुकड़ा है जिसे इस ख़बर के नीचे नत्थी वीडियो में आप देख सकते हैं। वीडियो अंबेडकरिज्म टीवी ने फ़ेसबुक पर डाला है। मीडिया विजिल सभार प्रकाशित कर रहा है।)

ख़बर ये है कि राजस्थान हाईकोर्ट प्रांगण में लगी मनु की प्रतिमा पर 8 अक्टूबर को दो महिलाओं ने कालिख पोत दी। तमाम सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए दोपहर करीब सवा बारह बजे दोनों महिलाएँ प्रतिमा के करीब पहुँचीं और उस पर स्प्रे करने लगीं। पुलिस के रोकने से भी नहीं रुकीं। आखिरकार महिला सिपाहियों ने उन्हें हिरासत मे ले लिया।

अशोक नगर थाने में हिरासत में ली गईं इन महिलाओं की पहचान औरंरंगाबाद निवासी कांता रमेह अहीर और शीला बाई पँवार के रूप में हुई है। (कई वेबसाइटों में उन्हें बिहार के औरंगाबाद का बताया गया है, लेकिन भाषा और भूषा से साफ़तौर पर वे मराठी लग रही हैं। उन्होंने अपने नेता को भी पूना का निवासी बताया है।) दोनों महिलाएँ सुबह ही जयपुर पहुँची थीं। करीब साढ़े ग्यारह बजे वे गेट नंबर चार से हाईकोर्ट के अंदर गईं क्योंकि इस गेट पर चेकिंग नहीं होती। बताया जाता है कि इन महिलाओं का संबंध उन संगठनों से है जो हाईकोर्ट परिसर से प्रतिमा हटवाना चाहता है।

हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ने इस मामले में मुकद्दमा दर्ज कराय है।

मनुस्मृति जैसे ग़ैरबराबरी के सिद्धांत प्रतिपादित करने वाली विधि संहिता के रचयिता मनु की प्रतिमा की स्थापना का अरसे से विरोध हो रहा है। बहुजन और वाम शक्तियों का कहना है कि यह डॉ. आंबेडकर के बनाए, समता, समानता और बंधुत्व पर आधारित संविधान को अपमानित करना है। भारत की न्यायपालिक आंबेडकर के संविधान के प्रति संकल्पित है न कि मनुस्मृति के। पिछले साल मनुवाद विरोधी सम्मेलन में इस हटाने के लिए जनांदोलन की घोषणा भी की गई थी।

लेकिन सवर्ण वकीलों का एक तबका प्रतिमा को बनाए रखने के लिए तमाम तर्क दे रहा है। उसकी आस्था है कि मनु से ही मनुष्य जाति का जन्म हुआ है। उसने प्रतिमा पर कालिख पोतने की जानकारी होने पर जमकर हंगामा किया।

राजस्थान ज्यूडिशियल ऑफ़ीसर्स एसोसिएशन ने 1989 में चीफ़ जस्टिस की इजाज़त से हाईकोर्ट परिसर में मनु की प्रतिमा स्थापित की थी। तब से ही इसका विरोध हो रहा है। हाईकोर्ट में इसके ख़िलाफ़ एक याचिका भी अरसे से पेंडिंग पड़ी हुई है।  हैरानी की बात है कि स्वतंत्र भारत की न्यायपालिका को मनु की प्रतिमा से कोई आपत्ति नहीं है जबकि देश के बहुजनों को यह अपनी छाती पर ठुंकी कील की तरह लगती है।

इस वीडियो को देखिए और दोनों तरफ़ के गुस्से को तौलिए। समझ आ जाएगा कि डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति क्यों जलाई थी और क्यों कहते थे कि भारत एक राष्ट्र नहीं है!

 



 


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