नरेश ज्ञावाली / काठमांडो
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज दो दिन की नेपाल की ”धार्मिक-सांस्कृतिक” यात्रा पर जनकपुर पहुंचे लेकिन सोशल मीडिया समेत कई डिजिटल मंचों पर दो साल पहले हुई आर्थिक नाकेबंदी से पैदा हुए गुस्से ने उनका स्वागत किया। त्रिभुवन युनिवर्सिटी के छात्रों ने भारत के प्रधानमंत्री के आगमन पर विरोधस्वरूप दो दिन का अनशन शुरू कर दिया है। यह अनशन मोदी की वापसी तक जारी रहेगा।
कई अखबारों और वेबसाइटों ने मोदी के विरोध की ख़बर प्रमुखता से छापी है हालांकि भारत के मीडिया में यह ख़बर नहीं चल रही है। 2015 में हुई नाकाबंदी से जुड़े हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। नीचे कुछ अख़बारों और डिजिटल मंचों की ख़बरों को मोदी विरोध की स्थिति जानने के लिए पढ़ा जा सकता है।
#BlockadeWasCrimeMrModi trends in Nepal prior Indian PM’s visit
Nepalis take to social media to remind Modi about 2015 blockade
‘No Modi in Nepal’
Nepal: Blasts, online protest ahead of Indian PM visit
मोदी आउँदा जनकपुरमा मास्क प्रयोगमा निषेध, झ्यालढोका एक घन्टाअघि नै बन्द गर्नुपर्ने
मोदीको अभिनन्दनलाई लिएर कांग्रेसमा विवाद
मोदी भ्रमण: ट्विटरमा नाकाबन्दी ट्रेन्डिङ
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार और नेपाल विशेषज्ञ आनंद स्वरूप वर्मा ने आर्थिक नाकाबंदी की याद दिलाते हुए फेसबुक पर एक लंबी टिप्पणी लिखी है जिसमें बताया गया है कि आखिर नेपालवासी मोदी को आर्थिक नाकाबंदी का दोषी क्यों मानते हैं और इतने दिन बाद भी वे उन त्रासद दिनों को क्यों नहीं भुला पा रहे हैं। नीचे वह टिप्पणी पढ़ें।
#BlockadeWasCrimeMrModi #BlockadeWasCrimeMrModi #ModiNotWelcome #ModiNotWelcomedInNepal #backoffmodi #ModiInNepal @narendramodi @PMOIndia @kpsharmaoli WE ARE NOT GOING TO WELCOME TO BLOODY pic.twitter.com/2XpeSr2iyW
— aawajnepal.com (@aawajnepalnews) May 9, 2018
नाकाबंदी का सच
आनंद स्वरूप वर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के जो अनेक मकसद हैं उनमें एक प्रमुख है तराई और पहाड़ी क्षेत्र की जनता के बीच पहले से चले आ रहे अंतर्विरोध को और तीव्र करना तथा इस अंतर्विरोध का अपने हित में इस्तेमाल करना। 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में तराई की जनता के बीच अपनी लोकप्रियता का प्रदर्शन कर वह सीमा क्षेत्र से लगे उत्तर प्रदेश और बिहार के मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। भारतीय मीडिया से यह प्रचारित किया जा रहा है कि मोदी का नेपाल में भव्य स्वागत हो रहा है जबकि सच्चाई यह है कि सितंबर 2015 में भारत ने जो आर्थिक नाकाबंदी की थी उसकी वजह से ‘मोदी गो बैक’ और ‘मोदी माफी मांगो’ के नारे और पोस्टर जगह-जगह दिखाई दे रहे हैं जिन्हें भारतीय मीडिया नहीं दिखाएगा लेकिन सोशल मीडिया और बीबीसी के जरिए लोगों तक यह जानकारी पहुंच चुकी है। त्रिभुवन विश्वविद्यालय में छात्रों का एक समूह आज सुबह से ही मोदी की यात्रा के विरोध में धरने पर बैठा है। जहां तक नाकाबंदी का सवाल है, इसके बारे में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि यह नाकाबंदी भारत ने नहीं बल्कि मधेशी जनता ने की थी जो नए संविधान में अपनी उपेक्षा से नाराज थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि मधेश की जनता ने नए संविधान का लगभग बहिष्कार किया था और 20 सितंबर 2015 को जब संविधान जारी हो रहा था, वह संविधान के प्रति अपनी नाराजगी प्रकट कर रही थी। कुछ मधेशी नेताओं ने खुलकर यह बात कही थी कि यह संविधान उनके लिए नहीं है। इन सबके बावजूद नाकाबंदी जैसा कदम उसने नहीं उठाया था।
भारत सरकार ने भी संविधान के प्रति अपनी उपेक्षा का प्रदर्शन किया था क्योंकि 18 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में विदेश सचिव एस. जयशंकर की कोशिशों के बावजूद नेपाल की तीनों राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों ने संविधान जारी करने पर अपनी सहमति जताई और इसे जारी किया। भारत सरकार की नाराजगी इस बात पर थी कि संविधान से ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्द हटा दिया गया है। अपनी इस आपत्ति को सुषमा स्वराज और भगत सिंह कोश्यिारी ने नेपाल के राजनेताओं से व्यक्त किया था। यह जानकारी काठमांडो से प्रकाशित दैनिक पत्र ‘नया पत्रिका’ में छपे कोश्यिारी के इंटरव्यू से मिलती है।
अब संक्षेप में जरा नाकाबंदी से जुड़े घटनाक्रम को देख लें। 20 सितंबर की शाम को नेपाल का संविधान जारी हुआ। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इसका स्वागत नहीं किया बल्कि इस अवसर पर जारी विज्ञप्ति में लिखा कि ‘‘वी नोट दि प्रामुलगेशन इन नेपाल टुडे ऑफ ए कांस्टीट्यूशन।’’
21 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के बुलावे पर नेपाल स्थित भारतीय राजदूत रंजीत रे दिल्ली पहुंचे। रात में दिल्ली से भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की एक और विज्ञप्ति जारी हुई जिसकी भाषा काफी सख्त थी और जिसमें तराई में हो रही हिंसा पर नेपाल सरकार को फटकार लगाई गई थी। इस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया था कि भारत से नेपाल सामान ले जाने वाले ट्रकों के सामने तराई क्षेत्र की हिंसा को लेकर दिक्कत पैदा हो रही है।
21 सितंबर की रात में ही सभी चेक पोस्टों (नाकों) पर भारतीय सुरक्षा अधिकारियों ने ट्रकों तथा अन्य वाहनों को रोक दिया। ट्रक चालकों से कहा गया कि वे अपने मालिकों से ‘नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ लाएं कि अगर उनके ट्रकों को नेपाल की सीमा के अंदर कोई क्षति पहुंचती है तो इसकी जिम्मेदारी उनकी होगी। विज्ञप्ति से साफ पता चलता है कि सीमा पर कोई अवरोध नहीं था – जो भी दिक्कत थी वह सीमा के अंदर थी। इससे जाहिर होता है कि किसी भी मधेशी गुट ने सीमा पर कोई धरना प्रदर्शन नहीं किया था। देखते-देखते ट्रकों की मीलों लंबी लाइन लग गई। रात में ही सोशल मीडिया पर और अगले दिन अखबारों में यह खबर प्रकाशित हो गई कि भारत ने नेपाल के विरुद्ध आर्थिक नाकेबंदी कर दी है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित मुख्य समाचार के अनुसार भारत सरकार ने संविधान में शामिल करने के लिए नेपाल सरकार के पास कुछ प्रस्ताव रखे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भर्त्सना होते देख भारत सरकार ने इसका खंडन किया।
नाकाबंदी लागू होने के अगले दिन यानी 22 सितंबर को तराई के शहर राजविराज में मधेश केंद्रित पार्टियों के नेताओं की बैठक हुई और इसका विवरण काठमांडो से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिमालयन टाइम्स’ में छपा। समाचार का शीर्षक था ‘मधेशी फ्रंट होल्ड्स मीटिंग इन राजविराज’। इस बैठक में उपेंद्र यादव, महंत ठाकुर, राजेंद्र महतो, महेंद्र राय यादव, हृदयेश त्रिपाठी जैसे नेताओं ने भाग लिया। बैठक में आंदोलन की रूपरेखा तय की गई। इसके बाद अगले दिन से बीरगंज-रक्सौल नाका पर धरना शुरू हो गया। अब भारत सरकार ने कहना शुरू किया कि नाकों पर धरने की वजह से सामान अंदर नहीं जा पा रहा है। जबकि यह धरना 22 सितंबर के बाद शुरू हुआ और नाकाबंदी 21 सितंबर की रात में ही कर दी गई थी।
इसके कुछ महीने बाद 16 नवंबर, 2015 को नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति रामबरन यादव के प्रेस सलाहकार राजेंद्र दहाल ने राज्यसभा टीवी पर एक चर्चा के दौरान कहा कि केवल बीरगंज-रक्सौल नाका पर आंदोलनकारियों का धरना है। उन्होंने सवाल किया कि अन्य सभी 8-9 नाके खुले हुए हैं तो भी सामान क्यों नहीं आ रहा है। संकेतों में उन्होंने बता दिया कि मधेशी जनता द्वारा नहीं बल्कि भारत सरकार द्वारा नाकाबंदी की गई।
दरअसल मधेशी जनता के असंतोष की आड़ में भारत का मौजूदा शासन तंत्र नेपाल की बांह मरोड़ने में लगा रहा। यही वजह है कि आर्थिक नाकाबंदी की वजह से नेपाली जनता को जिन तकलीफों का सामना करना पड़ा, उसके लिए वह मोदी सरकार को माफ नहीं कर पा रही है।