सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘माफ़ी माँग लो भूषण, गाँधी बन जाओगे!’

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सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना का दोषी ठहराए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की सजा पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने आज भी प्रशांत भूषण को माफी मांगने पर विचार के लिए 30 मिनट का मौका दिया था, लेकिन उन्होंने माफी मांगने से फिर से इनकार कर दिया। 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने भूषण को सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ ट्वीट्स के लिए अदालत की अवमानना ​​का दोषी ठहराया था।

पिछली सुनवाई में अटार्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल ने सज़ा देने का विरोध किया था, तब उनकी बात नहीं सुना गयी थी। उन्होंने कहा था कि जो बात प्रशांत कह रहे हैं, वे तमाम जज पहले कह चुके हैं। लेकिन अदालत ने उनकी बात सुनने से इंकार कर दिया था। लेकिन इस बार सज़ा सुनाने से पहले अदालत ने अटार्नी जनरल से उनकी राय माँगी। अटार्नी जनरल ने बहुत से रास्ते बताये जिससे इस स्थिति को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण की टिप्पणी को रिकार्ड से हटाया जा सकता है और अतीत में भी कोर्ट ने बहुत उदारता ऐसे मामलों में बरती है। लेकिन जस्टिस अरुण मिश्र ने कहा कि जब प्रशांत भूषण को अपनी टिप्पणी बहुत सोची-समझी लगती है और उन्हें कोई अफ़सोस भी नहीं है तो फिर क्या किया जा सकता है।

सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने कहा कि “20 अगस्त को भूषण से बिना शर्त माफी मांगने का जो आदेश पीठ ने दिया था, वह भूषण से जबर्दस्ती माफी मंगवाने की बेहद कठोर कार्रवाई थी। अगर भूषण का यह दृढ़ विचार है कि पिछले छह सालों में सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों की कथित भूमिका ने लोकतंत्र का सर्वनाश कर दिया तो फिर अदालत की अवमानना की कार्यवाही से बचने के लिए माफी की बैशाखी का सहारा नहीं लिया जा सकता है।”

राजीव धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण के बयानों को वापस लेने व उनके हलफनामे को रिकॉर्ड से बाहर करने का सवाल ही नहीं उठता। ये उनके बचाव का हिस्सा हैं। धवन ने कहा कि अदालत को प्रशांत भूषण को अपराधी बताने वाला फ़ैसला स्वत: वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण के माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता।

जस्टिस अरुण मिश्र ने लेकिन माफ़ी माँगने के पक्ष में तमाम दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि “माफ़ी शब्द के इस्तेमाल में आख़िर हर्ज़ ही क्या है। यह तो एक जादुई शब्द है। क्या इसका मतलब ग़लती मानना है? अगर आप माफी माँग लेते हैं तो महात्मा गाँधी की श्रेणी में आ जायेंगे। गाँधी जी भी ऐसा करते थे। अगर आपने किसी को पीड़ा पहुँचायी तो मरहम लगाना चाहिए।”

बहरहाल, प्रशांत भूषण ने माफ़ी माँगने में कोई रुचि नहीं दिखायी। उन्होंने पहले ही कहा था कि वे अपना इरादा नहीं बदलेंगे। आखिरकार राजीव धवन और अटार्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया।

इससे पहले 20 अगस्त को सजा पर सुनवाई के दौरान, भूषण ने अपनी टिप्पणियों की पुष्टि की थी और अदालत के फैसले पर निराशा व्यक्त की थी। अदालत ने उन्हें माफ़ी माँगने का अवसर दिया था, लेकिन प्रशांत भूषण ने महात्मा गाँधी का हवाला देते हुए कहा था कि वे माफ़ी नहीं माँगेंगे, ऐसा करना अंतरात्मा की अवमानना होगी।

प्रशांत भूषण के केस पर पूरे देश की निगाह लगी हुई थी। जिस तरह प्रशांत भूषण के ट्वीट पर सर्वोच्च अदालत ने स्वत:संज्ञान लेकर कार्रवाई की, उसका देश के हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के सैकड़ों पूर्व जजों के साथ देश-दुनिया के हज़ारों बुद्जीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था। प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना के मामले पर जिस तरह जिरह की उसने देश में एक नयी बहस खड़ी कर दी है।

भूषण ने माफ़ी माँगने पर विचार के लिए मिले तीन दिन को पहले ही बेवजह बताया था और आखिरकार वे अपने रुख पर क़ायम रहे। उन्होंने हलफ़नामा देकर माफ़ी माँगने से इंकार कर दिया।

भूषण ने कहा कि उनकी टिप्पणी न्यायालय की “रचनात्मक आलोचना” थी और इसलिए, उसको वापस लेने की पेशकश “निष्ठाहीन माफी” के समान होगा। उन्होंने जोर देकर कहा था कि अदालत के एक अधिकारी के रूप में, उनका यह कर्तव्य है कि वे “बोलें” जब उन्हें विश्वास हो कि न्यायिक संस्था अपने शानदार रिकॉर्ड से भटक रही है।

भूषण ने कहा, “मेरे ट्वीट्स ने इस मौके पर विश्वास का प्रतिनिधित्व किया जिसे मैं जारी रखना चाहता हूं। इन विश्वासों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति एक नागरिक और इस अदालत के एक वफादार अधिकारी के रूप में मेरे उच्च दायित्वों के अनुरूप विश्वास पर थी। इसलिए, इन मान्यताओं, शर्तों की अभिव्यक्ति के लिए एक माफी या बिना शर्त, निष्ठाहीन होगी। ”

प्रशांत भूषण ने कहा था कि माफी एक “मात्र उकसावे पर” नहीं हो सकती बल्कि ईमानदारी से मांगी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि “यह विशेष रूप से ऐसा है जब मैंने बयानों को सद्भावना में दिया है और पूर्ण विवरण के साथ सत्यता की वकालत की है, जो कि अदालत द्वारा निपटा नहीं गया है। यदि मैं इस अदालत के समक्ष बयान को वापस लेता हूं कि मैं सच मानता हूं या एक अयोग्य माफी की पेशकश करता हूं, तो ये मेरी नज़र में मेरी अंतरात्मा की ​​और एक संस्था की अवमानना होगी जिसका मैं सर्वोच्च सम्मान करता हूं।”

उन्होंने आगे जोड़ा, “मेरा मानना ​​है कि सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों, प्रहरी संस्थाओं और वास्तव में संवैधानिक लोकतंत्र के संरक्षण के लिए आशा का अंतिम गढ़ है। इसे सही मायने में लोकतांत्रिक दुनिया में सबसे शक्तिशाली अदालत कहा गया है, और अक्सर दुनिया भर में अदालतों के लिए ये अनुकरणीय है। आज इन परेशानियों के दौर में, भारत के लोगों को इस अदालत में कानून और संविधान के शासन को सुनिश्चित करने की उम्मीद है और न कि कार्यपालिका के किसी भी नियम से।”

उन्होंने कहा कि उन्होंने 20 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पढ़ा जिसमें उन्हें “गहरे अफसोस” के साथ अपने बयानों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया। प्रशांत के मुताबिक “मैं कभी भी ऐसे मौके पर खड़ा नहीं हुआ जब मेरी ओर से किसी भी गलती या गलत काम के लिए माफी की पेशकश करने की बात आए। मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि मैंने इस संस्था की सेवा की और इससे सामने कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित कारणों को लाया। मैं इस अहसास के साथ रहता हूं। जितना मुझे इस संस्थान से मिला है, उससे अधिक मुझे इसे देने का अवसर मिला है। मैं सर्वोच्च न्यायालय की संस्था के लिए सर्वोच्च सम्मान रखता हूं। ”

उन्होंने कहा, “मेरे ट्वीट कुछ भी नहीं थे, बल्‍कि हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर, जिसे मैं अपना सर्वोच्च कर्तव्य मानता हूं, उसे निभाने का एक छोटा सा प्रयास थे। मैंने बिना सोचे-समझे ट्वीट नहीं किया था। यह मेरी ओर से ‌निष्ठारहित और अवमाननापूर्ण होगा कि मैं उन ट्वीट्स के लिए माफी की पेशकश करूं, जिन्होंने उन्हें व्यक्त किया जिन्हें, मैं अपने वास्तविक विचार मानता रहा हूं, और जो अब भी हैं।”

प्रशांत भूषण ने अपने रुख के पक्ष में महात्मा गाँधी का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने ट्रायल में कहा था: मैं दया नहीं मांगता। मैं उदारता की अपील नहीं करता। इसीलिए, मैं यहां हूं, इसीलिए, किसी भी दण्ड, जो कि न्यायालय ने अपराध के लिए निर्धारित किया है, के लिए मुझे कानूनी रूप से दंडित किया जा सकता है, और जो मुझे प्रतीत होता है कि वह एक नागरिक का सर्वोच्च कर्तव्य है।” पीठ ने भूषण से पूछा था कि क्या वह इस पर पुनर्विचार करना चाहते हैं? पीठ ने अटॉर्नी जनरल से भूषण को बयान पर पुनर्विचार करने के लिए समय देने के बारे में भी पूछा। एजी ने सहमति व्यक्त की कि उन्हें समय दिया जा सकता है। हालांकि, भूषण बयान ने पुनर्विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि यह “अच्छी तरह से समझा और अच्छी तरह से सोचा गया था।”

प्रशांत भूषण ने कहा कि समय देना “किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगा” जैसे कि “यह संभावना नहीं है” कि वह इसे बदल देंगे। फिर भी, पीठ ने कहा कि वह उसे बयान पर पुनर्विचार करने के लिए दो या तीन दिन का समय दिया और मामले को 25 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया था।