हाल के दिनों में सीवर साफ़ करने वाले मजदूरों की देश भर में लगातार दम घुटने से मौत हुई है। इस बाबत दिल्ली में आंदोलन हुआ, विरोध प्रदर्शन हुए लेकिन वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से ठीक एक दिन पहले मजदूरों को जल्दबाजी में फिर से सीवर में उतार दिया गया और उनकी मौत हो गई। जब योगी आदित्यनाथ की यूपी सरकार से बाकायदा आरटीआइ लगाकर पूछा गया कि 2017-18 में सीवर सफाई के दौरान कितने मजदूरों की मौत हुई है, तो टका सा सरकारी जवाब आया कि सरकार ऐसे सीधे आंकड़े एकत्रित नहीं करती।
मामला केवल सीवर सफाई मजदूरों का नहीं है बल्कि इस लेखक द्वारा लगाई गई यह आरटीआइ यूपी के कोई 40 लाख मजदूरों पर लागू होती है जो असंगठित क्षेत्र के कहे जाते हैं। सरकार के पास इस बाबत कोई जानकारी ही नहीं है कि सूबे में असंगठित क्षेत्र में कितने लोग काम कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि इनकी जानकारी हुए बगैर इनके लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की हालत बहुत दयनीय है। एक तरफ योगी सरकार द्वारा राज्य के सभी तबकों के विकास के दावों के पुल बांधे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को उनके खुद के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया है। राज्य में मुनाफाखोर पूंजी और बिचैलियों से भरे बाजार में उन्हें उनकी कानून प्रदत्त न्यूनतम मजदूरी भी मिल पा रही है या नहीं?- इसे देखने वाला भी कोई नहीं है। कहने के लिए राज्य सरकार ने श्रम आयुक्त नियुक्त किए हैं लेकिन वे सब अपने वातानुकूलित कमरों से बाहर आकर इन श्रमिकों के दुःख दर्द को समझना ही नहीं चाहते।
दरअसल असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बारे में जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त की गई जानकारी में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश के उप श्रम आयुक्त राजेश मिश्र द्वारा इस रिपोर्ट लेखक को जो जवाब भेजा गया है वह यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास प्रदेश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के दुःख दर्द को समझने और उसे दूर करने की कोई इच्छा शक्ति नहीं है।
यह बहुत ही चौंकाने वाला है कि राज्य सरकार के पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या क्या है? जाहिर सी बात है कि जब राज्य सरकार को इस समुदाय के लिए कुछ करना ही नहीं है तब वह इन श्रमिकों की संख्या जानकार क्या करेगी? जब सरकार के पास इस समुदाय के संबंध में कोई आंकड़ा ही नहीं होगा तब यह साफ है कि राज्य सरकार उस तबके के लिए योजनाएं बनाने तथा उनके कल्याण के लिए कोई बजट कैसे लाएगी?
दरअसल इस रिपोर्ट के लेखक द्वारा अगस्त 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों से संबंधित कुछ जानकारी मांगी गई थी। कुछ दिन पहिले ही संबंधित विभाग द्वारा इस संदर्भ में जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।
योगी सरकार से पहिला सवाल यही था कि उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या कितनी है? जवाब के रूप में राज्य सरकार द्वारा अवगत करवाया गया कि किसी विशिष्ट सर्वेक्षण के अभाव में उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या बताया जाना संभव नहीं है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में किसी तरह का सर्वेक्षण आयोजित नहीं किया जाता है। प्रदेश सरकार के लिए असंगठित क्षेत्र के श्रमिक किसी चुनावी प्राथमिकता के क्रम में फिट नहीं बैठते हैं। सवाल यह है कि श्रमिक कल्याण के नाम पर वसूले जाने वाले टैक्स का क्या होता है और यह कहां खर्च किया जाता है?
इसके ठीक बाद दूसरा प्रश्न यह था कि उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के कल्याण के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं। वित्त वर्ष 2017-18 में इन योजनाओं में आवंटित बजट में कितनी राशि खर्च की गई? इस सवाल के जवाब के बतौर रिपोर्ट लेखक को राज्य सरकार के संबंधित श्रम विभाग द्वारा यह सूचित किया गया कि असंगठित श्रमिकों के कल्याण के लिए पंजीकृत कर्मकारों हेतु दीन दयाल सुरक्षा बीमा योजना तथा अटल पेंशन योजना पात्रता के अनुसार राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड द्वारा चलाई जाएंगी। विगत वर्ष 2017-18 में इन योजनाओं के लिए कोई धन राशि का प्राविधान नहीं किया गया था। इसका मतलब यही है कि राज्य सरकार द्वारा पिछले वित्त वर्ष में किसी तरह का बजट आवंटित नहीं किया गया था।
तीसरा सवाल सरकार से यह था कि आखिर वित्त वर्ष 2017-18 में सीवर सफाई के दौरान कितने मजदूरों की मौत हुई और उनमें से कितनों को मुवाबजा दिया गया? इस सवाल के जवाब में राज्य सरकार ने सूचित किया कि श्रम विभाग इस तरह से सीधे आंकड़े एकत्र नहीं करता है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 लाख लोग हैं। इस संदर्भ में किसी तरह का ठोस विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है। ट्रेड यूनियन के आंकड़ों और जन संगठनों तथा एनजीओ के आकड़ों में काफी अंतर है। सबके अपने अपने दावे हैं लेकिन इन सबके बीच एक बात पर सभी एकमत हैं कि इस क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा बहुत ही दयनीय है। सबसे दुःखद यह है कि राज्य सरकार द्वारा नाम बदलने, मूर्ति बनवाने और दीपावली मनाने, कुंभ आयोजन के नाम पर भले ही करोड़ों रुपया खर्च कर दिया जा रहा है लेकिन राज्य के खस्ताहाल असंगठित क्षेत्र के श्रमिक परिवारों पर खर्च करने के लिए योगी सरकार के पास एक पैसा नहीं है।
प्रयागराज में खदान मजदूरों के बीच काम करने वाले राधेश्याम यादव कहते हैं कि राज्य सरकार द्वारा हिन्दुत्व के खांचे में जिस तरह से काम किया जा रहा है वहां आम असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए, उनके कल्याण के लिए पैसा खर्च करने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है। वह कहते हैं कि सरकार को अभी प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने से फुरसत ही नहीं है। ऐसे में वह इन श्रमिकों की बेहतरी के बारे में कैसे सोच सकती है? राधेश्याम यादव कहते हैं कि योगी सरकार इन श्रमिकों को अभी चुनावी मैटेरियल नहीं मानती इसलिए इनके लिए शेल्टर-होम तक नहीं हैं। जबकि गाय चुनावी मैटेरियल है इसलिए सरकारी अनुदान पर गोशालाएं बनाई जा रही हैं। वह कहते हैं कि जब तक श्रमिकों को एकजुट नहीं किया जाएगा उनकी दयनीय स्थिति में सुधार होने वाला नहीं है।