झारखंड के बजट में आदिवासियों और दलितों के लिए विशेष प्रावधान की माँग

विशद कुमार विशद कुमार
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झारखंड के डालटनगंज में शांतिपुरी में आयोजित प्रमंडल स्तरीय बजट परिचर्चा में वक्ताओं ने साफ कहा कि आजादी के 75 वर्षों से आदिवासी, दलित व वंचित समुदायों का विकास नहीं होना उनके मौलिक अधिकार व संवैधानिक अधिकारों का हनन है। परिचर्चा में झारखंड के आगामी बजट 2021-22 में आदिवासी व दलित तथा वंचित समुदायों के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष ध्यान देने की मांग की गई।

बता दें कि 12 फरवरी को राज्य के सामाजिक संगठनों का प्रमंडल स्तरीय बजट परिचर्चा, भोजन के अधिकार अभियान और राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान के संयुक्त तत्वावधान में शांतिपुरी स्थित नागलोक उत्सव भवन में आयोजित की गयी।

बजट परिचर्चा को संबोधित करते हुए भोजन के अधिकार अभियान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि झारखंड का बजट आने वाला है और इस बजट को आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखकर पेश किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार द्वारा संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि देश के सभी नागरिकों को भोजन तथा सरकारी योजनाओं को पाने का पूरा अधिकार है, मगर हमेशा से केंद्र व राज्य सरकार के बजट में आदिवासी, दलित और वंचित समुदायों के विकास के लिए सीधे तौर बजटीय प्रावधान नहीं किये जाते हैं, जबकि ये लोग सामाजिक, आर्थिक और शौक्षणिक रूप से काफी पिछ़डे हुए हैं। ऐसे में आजादी के करीब 75 वर्षों से आदिवासी, दलित व वंचित समुदायों का विकास नहीं होना, कहीं न कहीं उनके मौलिक अधिकारों व संवैधानिक अधिकारों का हनन है।

एनसीडीएचआर के राज्य समन्वयक मिथिलेश कुमार ने कहा कि झारखंड सरकार को चाहिए कि आगामी बजट में आदिवासी व दलित छात्रों की छात्रवृति और उनकी शिक्षा को केंद्र में रखते हुए बजटीय प्रावधान तैयार किया जाए, ताकि आदिवासी, दलित व वंचित सुमदायों को शिक्षा मिल सके, क्योंकि कोविड-19 के कारण छात्रों के सामने आर्थिक स्थिति की समस्या खड़ी हुई है, जिसके कारण कई छात्र-छात्राओं को पढ़ाई भी छोड़ना पड़ा है। झारखंड के बजट में आदिवासी, दलित और वंचित समुदायों के साथ साथ महिला, बच्चों और छात्रों को भी ध्यान में रखना जरूरी है।

भोजन के अधिकार अभियान के जवाहर मेहता ने कहा कि आगामी बजट में सरकार को महिलाओं और बच्चों के पोषण का ख्याल रखना चाहिए, ताकि झारखंड से कुपोषण की समस्याओं को दूर किया जा सके। उन्होंने कहा कि आदिवासी, दलित व आदिम जनजाति समुदायों में कुपोषण दर काफी ज्यादा है। आंगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन में मडुआ जैसे पौष्टिक भोजन की भी व्यवस्था पर बजट में प्रावधान होना चाहिए।

भारत ज्ञान विज्ञान समिति, पलामू के शिवशंकर प्रसाद ने कहा कि झारखंड सरकार को बजट में आदिवासी व दलित तथा वंचित समुदायों को विशेष रूप से ध्यान रखकर बजटीय प्रावधान होना चाहिए।

बजट पूर्व परिचर्चा में भोजन के अधिकार अभियान के राज्य संयोजक अशर्फीनंद प्रसाद, धीरज कुमार, धर्मपाल मिंज, दिव्य प्रकाश, फिराज मिंज, अग्रेन केरकेट्टा, गीता देवी सहित कई लोगों ने परिचर्चा में भाग लिया। सिविल सोसााइट के लोगों ने झारखंड सरकार से बजट आदिवासी, दलित और वंचित समुदायों को ध्यान में रखकर बनाने का आग्रह किया, ताकि समुदाय, गांव व समाज का विकास हो सके।

इस कार्यक्रम में पलामू, गढवा और लातेहार के विभिन्न क्षेत्रों के सिविल सोसाइटी, सीएलओ और सीएसओ के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बजट पूर्व परिचर्चा का संचालन झारखंड नरेगा वाॅच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने की।


विशद कुमार, स्वतंत्र पत्रकार हैं और लगातार जन-सरोकार के मुद्दों पर मुखरता से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं।


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