कर्नाटक के प्रख्यात रंगकर्मी, नाटककार और निर्देशक एस. रघुनंदन ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार को ठुकरा दिया है। मंगलवार, 16 जुलाई को उन्हें यह पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी थी। एस. रघुनंदन ने देश में संवैधानिक मूल्यों एवं अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिये लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों के प्रति नफ़रत की बढ़ती प्रवृत्ति और उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिशों का हवाला देते हुए यह पुरस्कार लेने से मना कर दिया है।
Theatre director S Raghunandana turns down Sangeet Natak Akademi award citing ‘growing intolerance’ https://t.co/51YBWXaBYz
— Scroll.in (@scroll_in) July 18, 2019
अपने वक्तव्य में रघुनंदन ने लिखा, “आज ईश्वर और धर्म के नाम पर मॉब लिंचिंग की जा रही है और यहां तक कि लोगों के भोजन के तौर-तरीक़ों के लिये भी उन्हें मारा जा रहा है। हत्या और हिंसा के इन भयावह कृत्यों के लिये प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सत्ताधारी शक्तियां ज़िम्मेदार हैं। वे उस घृणा अभियान का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रही हैं, जिसमें इंटरनेट सहित सभी साधनों का उपयोग किया जा रहा है।”
एस. रघुनंदन ने लिखा है, “आज कन्हैया कुमार जैसे होनहार नौजवानों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश रची जा रही है, जो हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं।” रघुनंदन ने कहा, “कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है। उनमें से अधिकांश को ज़मानत भी नहीं मिल रही है और वे जेल में समय बिता रहे हैं।
The General Council of the Sangeet Natak Akademi Announces Sangeet Natak Akademi Fellowships (Akademi Ratna) and Sangeet Natak Akademi Awards (Akademi Puraskar) for the Year 2018 https://t.co/13usE8kxzQ
— Sangeet Natak Akademi (@sangeetnatak) July 16, 2019
ये वे लोग हैं जो हमारे देश और दुनिया के सबसे अधिक शोषित और वंचित लोगों और समुदायों के पक्ष में लड़ाई लड़ रहे हैं। शोषितों-वंचितों के दमन और उत्पीड़न को उजागर करने वाले लेख या किताबें लिखने और उन्हें अपने अधिकारों के लिये शान्तिपूर्ण संघर्ष करने की प्रेरणा देने के कारण इन बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, जिसे किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है।”
अपने वक्तव्य में एस. रघुनन्दन ने कहा है कि स्कूलों,कॉलेजों और उच्चतम शिक्षा के संस्थानों में शासक वर्ग ने हर जगह छात्रों को नफरत और तर्कहीनता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की है। इस तरह से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कहावत को विकृत कर मिटाया जा रहा है।
रघुनंदन ने कहा “हमारे शासकों ने फैसला किया है कि गरीब और शक्तिहीन को चुप कराने का सबसे अच्छा तरीका इन कर्तव्यनिष्ठ बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं की आवाज़ को कुचलना है।”
पुरस्कार लेने से इनकार करने पर, उन्होंने कहा, “यह कोई विरोध नहीं है बल्कि, यह निराशा से निकली असहाय असमर्थता है।”
एस.रघुनंदन द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार को लेने से इनकार किये जाने की खबर को हिंदी के किसी बड़े अख़बार ने खबर नहीं बनाया है. हिंदी की मुख्यधारा की मीडिया किस कदर सत्ता सेवी हो चुकी है यह उसका एक और उदाहरण है।
वरिष्ठ संस्कृति कर्मी, रंग समीक्षक, संपादक, कवि और रंगकर्मी राजेश चन्द्र की फेसबुक दीवार से साभार पुनर्प्रकाशित