वेब पोर्टल टीएफआइ पोस्ट पर 27 मार्च 2020 को पर एक खबर छपी है जिसका शीर्षक है “मस्जिद में ही नमाज़ पढेंगे चाहे कुछ भी हो जाए। यूपी पुलिस गई थी समझाने भीड़ ने हमला कर दिया।” उपशीर्षक है “ये हैं देश के असली ज़ाहिल, जो कोरोना बम से कम नहीं।” इस खबर को 13 हज़ार लोगों ने देखा है और 136 लोगों ने साझा किया है। आइए, अब इस खबर की थोड़ी जांच-पड़ताल करते हैं।
शीर्षक के नीचे जो फोटो लगायी गयी है वो कोरोना के दौरान नमाज़ की नहीं बल्कि ईदुल-फितर के मौके की है।
टीएफआइ पोस्ट की वेबसाइट पर लगी फोटोराजस्थान पत्रिका के लिए सीकर राजस्थान से दिनेश राठोर की ये रिपोर्ट पढिए, वहां आप इस फोटो को भी देख सकते हैं। फोटो कम से कम एक साल पुरानी तो ज़रूर है क्योंकि वर्ष 2020 की इदुल-फितर 23 मई को है।
पोस्ट के शीर्षक में जिस घटना का जिक्र किया गया है वो उत्तर प्रदेश, मैनपुरी की है। इस बारे में अमर उजाला की ये रिपोर्ट पढिए जिसमें पहुप सिंह, प्रभारी निरिक्षक का बयान भी छपा है। उन्होंने कहा है कि नमाज के लिए भीड़ जुटने की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची थी। समझाने बुझाने के बाद वो लोग मान गये। इसके बाद पुलिस वापस लौट आयी। ये खबर 25 मार्च की है।
टीएफआइ पोस्ट न्यूज डेस्क ने इसके अलाव कर्नाटक और ईरान की भी दो खबरें साथ लगायी हैं। ये दोनों ही खबरें 27 मार्च से पहले की हैं। इसके अलावा टिकटॉक वीडियो वगैरह को भी पोस्ट में शामिल करके मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक ज़हरीला संग्रह तैयार किया गया है।
टीएफआइ की पोस्ट में आखिर में मुस्लमानों का जो फोटो लगायी गयी है वो बांग्लादेश की है।
द बिजनेस स्टैंडर्ड में 18 मार्च को ये फोटो छपी थी।
इस खबर को भी पढिए जिसमें इमाम सभी मुसलमानों को हिदायत दे रहे हैं कि वो घर में ही नमाज पढें। जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी सहित विभिन्न इमामों ने निर्देश दिया है कि सभी मुसलमान घर पर ही नमाज अता करें। हुकूमत की तरफ से जो भी दिशानिर्देश दिये जा रहे हैं उनका पालन करें, यही वक्त का तकाज़ा है।
पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा है। टीएफआइ पोस्ट इस दौरान नफरत और ज़हरीली खबरें वितरित कर रहा है। ये कोरोना के नाम पर मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरत फैलाने का एक जीता-जागता उदाहरण है।
विश्व महामारी कोरोना के चलते सभी समुदायों और नागरिकों को सरकार, प्रशासन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों का पालन करना चाहिए। वक्त नाज़ुक है। सभी पाठकों से अपील है कि धार्मिक अंधोन्माद और नफरत से गुरेज़ करें। कम से कम कोरोना से ही सीख लें कि वो धर्म और संप्रदाय का भेद नहीं करता।