मीडिया विजिल ब्यूरो
क्या आप यकीन करेंगे कि ‘सारे जहाँ से सच्चा’ नंबर एक हिंदी चैनल ‘आज तक’ की कमान एक ऐसे शख्स के हाथ में है जिसे एक महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न के आरोप में चैनल से निकलना पड़ा था। यही नहीं, यह शख़्स ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) का अध्यक्ष भी है जिस पर टीवी पत्रकारिता के मूल्यों को बनाए रखने का ज़िम्मा है।
वैसे लगता तो यही है कि आज तक को संचालित करने वाली कंपनी टी.वी.टुडे के मालिक अरुण पुरी के लिए ‘मूल्य’ का रिश्ता रोकड़े से है किसी नैतिक बंधन या दायित्व से नहीं। उन्होंने यौन उत्पीड़न की शिकायत पर निकालने के कुछ साल बाद ही ‘टीआरपी मास्टर’ कहे जाने वाले सुप्रिय प्रसाद को चैनल में वापस ले लिया। ले ही नहीं लिया, उन्हे डायरेक्टर न्यूज़ कमर वहीद नक़वी के रिटायर होने के बाद मैनेजिंग एडिटर भी बना दिया।
अगर अरुण पुरी ने ऐसा नहीं किया होता तो वरिष्ठ टीवी पत्रकार रहीं रुक्मिणी सेन उस अपमान से बच जातीं जो उन्हें सुप्रिय प्रसाद की वजह से 2012 में झेलना पड़ा। मीटू अभियान के ताज़ा दौर के बीच उन्होंने 7 अक्टूबर को फेसबुक पोस्ट के ज़रिये अपना दर्द बयान किया था। (मीडिया विजिल में पढ़ सकते हैं –अरुण पुरी ने उनके मामले में कुछ नहीं किया।) रुक्मिणी का आरोप है कि सुप्रिय प्रसाद ने उनका मौखिक रूप से यौन उत्पीड़न किया था जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ के दायरे में आता है। जवाब में टीवी टुडे की ओर से कहा गया कि रुक्मिणी सुनवाई में शामिल नहीं हुईं। उनके आरोप गलत पाए गए। (रुक्मिणी इसे गलत बताती हैं। उनके मुताबिक चैनल ने विशाखा गाइडलाइन के हिसाब से आंतरिक कमेटी का गठन नही किया था। वे वकीलों से राय लेकर इस मामले में आगे कार्रवाई करेंगी।)
बहरहाल, रुक्मिणी की पोस्ट पर टी.वी.टुडे के एच.आर हेड रहे जयदीप गोस्वमी ने तक़लीफ़ जताते हुए लिखा कि जिस गंदी मछली को बाहर निकाल दिया गया था, उसे कंपनी में दोबारा नियुक्ति दी गई।
(जयदीप अरसा पहले टीवी टुडे छोड़ चुके हैं। मीडिया विजिल ने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति को दोबारा कभी नौकरी नहीं दी जानी चाहिए, यह उनकी निजी राय है। उन्होंने बताया कि सुप्रिय प्रसाद पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद उन्होंने कंपनी ज्वाइन की थी, इसलिए किसी जाँच में शामिल नहीं हुए थे, लेकिन यह सही है कि उन्हेें बाहर होना पड़ा।)
यह तक़लीफ़ टी.वी.टुडे की सीनियर मैनेजर एच.आर रहीं शुभ्रा चतुर्वेदी को भी है। उन्होंने 8 अक्टूबर को बिना नाम लिए लिखा कि अपनी अंतिम नौकरी, जो एक मीडिया हाउस में थी, वहाँ महिलाओं का उत्पीड़न होता था। जिस शख्स को ऐसे ही आरोप में बाहर निकाला गया, उसे वापस नौकरी पर रखा गया। क्योंकि वह ‘ब्लू आइड ब्वाय’ था।
(शुभ्रा का अंतिम मीडिया हाउस कोई और नहीं टी.वी.टुडे था। मीडिया विजिल ने उनसे बात की तो उन्होंने माना कि सुप्रिय प्रसाद पर यौन उत्पीड़न का आरोप आज तक में काम करने वाली एक लड़की ने लगाया था। मामला गंभीर था और प्रारंभिक जाँच में ही सही पाया गया। उनके सामने ही, उन्हें जाने को कहा गया था।)
शुभ्रा की इस पोस्ट पर जयदीप गोस्वामी ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि उन्हें इस बात से गहरा धक्का लगा कि ‘ब्लू आइड ब्वाय’ को वापस कंपनी में इतनी ताकतवर पोजीशन में रखा गया जबकि टीवी टुडे नेटवर्क की पॉलिसी थी कि नैतिक भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए किसी कर्मचारी को वापस नहीं लिया जाएगा। रुक्मिणी सेन की पोस्ट में सुप्रिय प्रसाद पर सीधा आरोप था। जयदीप ने वहाँ और यहाँ दोनों जगह टिप्पणी करके साफ़ कर दिया कि बात सुप्रिय प्रसाद की ही हो रही है।
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पाठकों की यह उत्सुकता स्वाभाविक है कि सुप्रिय प्रसाद किसके यौन उत्पीड़न के दोषी पाए गए थे और कब। माफ़ करिए, गोपनीयता का ध्यान रखते हुए हम उस लड़की का नाम नहीं बताएँगे, लेकिन इस स्टोरी के आख़िर में उसका पूरा मेल आप पढ़ पाएँगे जो उसने डायरेक्टर न्यू़ज़ क़मर वहीद नक़वी को भेजा था।
तकरीबन 11 साल पहले की बात है। तारीख थी 19 फरवरी 2007 … दिन के 12 बजकर 10 मिनट हो रहे थे जब एच.आर.हेड जयदीप गोस्वामी को एक गोपनीय मेल मिला। यह मेल आज तक के तत्कालीन मैनेजिंग एडिटर क़मर वहीद नक़वी ने भेजा था। उन्होंने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए तुरंत कार्रवाई की सिफारिश करते हुए चैनल में काम करने वाली एक महिला पत्रकार की शिकायत फ़ॉरवर्ड की थी। उन्होंने 18 फरवरी को मेल भेजकर आरोप लगाया था कि 17 फरवरी की रात सुप्रिय प्रसाद ने उन्हें लिफ्ट में जबरदस्ती बाहों में दबोच लिया था। इसके अलावा उन्हें तरह-तरह से यौन प्रताड़ना का शिकार बनाते थे।
कहा जाता है कि महिला पत्रकारों और प्रोड्यूसरों के प्रति सुप्रिय प्रसाद के अनुचित व्यवहार की काफ़ी चर्चा थी, लेकिन लेकिन पहली बार इस तरह किसी ने लिखकर दिया था। ( चर्चा ये भी थी कि लड़की के घरवालों ने नौकरी से निकाले जाने पर थाना-कचहरी करने की धमकी दे दी थी।) कार्रवाई करने के अलावा कोई चारा नहीं था। सुप्रिय प्रसाद के ख़िलाफ़ आरोप सही पाया गया। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
पूरी मीडिया इंडस्ट्री में इसकी चर्चा थी, लेकिन न्यूज़ 24 की मालकिल अनुराधा प्रसाद के लिए शायद यह कोई मुद्दा नहीं था। कुछ महीने बाद ही वे न्यूज़ 24 में महत्वपूर्ण भूमिका में नज़र आने लगे। अनुराधा प्रसाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की बहन और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजीव शुक्ल की पत्नी हैं।
बहरहाल, न्यूज़ 24 में रहते हुए सुप्रिय कोई कमाल नहीं दिखा सके। नंबर गेम में चैनल पिछड़ा ही रहा। वैसे भी उनका मन तो आज तक में ही अटका हुआ था और शायद अरुण पुरी को भी उन पर भरोसा था। इसलिए जब यह पता चला कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पत्रकार शादी करके विदेश चली गई है तो आराम से सुप्रिय प्रसाद की चैनल में वापसी करा दी गई। फरवरी 2011 में सुप्रिय प्रसाद ने न्यूज़ 24 से इस्तीफ़ा दिया और सितंबर में उन्हें आज तक में नौकरी मिल गई। पहले से ज़्यादा ताक़तवर हैसियत में। अगले साल क़मर वहीद नक़वी 58 साल हो रहे थे। उनके रिटायर होने के पहले कंपनी ने उत्तराधिकारी ढूँढ लिया था। 31 मई 2012 को नक़वी जी रिटायर हो गए और अगस्त में सुप्रिय प्रसाद चैनेल के मैनेजिंग एडिटर बना दिए गए।
अरुण पुरी को आज तक को नंबर एक पर रखने से मतलब था और सुप्रिय प्रसाद यह काम कामयाबी से कर रहे थे। टीआरपी का यह मसला सीधे धंधे से जुड़ा है और धंधा लाने वाला कौन या क्या है, इसका कारपोरेट जगत में अब खास मतलब नहीं रह गया है। यह सुप्रिय प्रसाद की बेअंदाज़ी का ही मामला था कि उन्होंने रुक्मिणी सेन के साथ वह हरकत करने की हिम्मत की जिसका ज़िक्र ऊपर आ चुका है।
मीडिया विजिल के पास वह शिकायती पत्र मौजूद है जिसके आधार पर सुप्रिय प्रसाद की नौकरी गई थी। इसमें हिंदी चैनलों के न्यूज़रूम और बॉस लोगो की बॉसगीरी की सड़ांध दर्ज है। महिला पत्रकार ने लिखा है कि सुप्रिय प्रसाद उनके पीछे ही पड़ गए थे। लिफ्ट में जबरदस्ती करने के बाद वो उनसे दूर रहने लगी थी लेकिन वे अपने साथ अकेले बैठने और ड्राइव पर चलने को कहते रहते थे। यही नहीं, रात की ड्यूटी में अकेले बैठाकर असहज करने वाली बातें करते थे। सुप्रिय से बचने के लिए उन्होंंने बताया कि उनकी सगाई हो गई है। अँगूठी भी दिखाई। लेकिन वे पूछने लगे कि ‘अपने मंगेतर के साथ रोमांटिक बातें कैसे करती हो। मैं रोमांटिक बात करना सिखा दूँगा, रात में फोन करो। यह मज़ेदार होगा, तुम्हें आनंद आएगा।’ जब महिला पत्रकार ने सख्ती से मना किया तो सुप्रिय धमकाते हुए ‘आफीसियल तरीके से निपटने’ की बात कहने लगे। पानी सिर से ऊपर चला गया तो शिकायत का मेल न्यूज़ डायरेक्टर नक़वी जी को भेजा गया।
मीडिया विजिल ने इस सिलसिले में क़मर वहीद नक़वी से बात की। उन्होंने माना कि उन्हें शिकायती मेल मिला था। उन्होंने बताया कि वे ऐसे मामले में बेहद सख्त थे। जैसे ही लड़की शिकायत मिली, उन्होंने उसे एच.आर के पास भेज दिया था।
शिकायती पत्र पाने के बाद एच.आर ने शिकायत करने वाली महिला पत्रकार के अलावा आजतक में काम करने वाली कुछ और महिलाकर्मियों से भी पूछताछ की। आरोप को सही पाया गया और सुप्रिय प्रसाद को इस्तीफा देना पड़ा।
फिर सुप्रिय प्रसाद वापस कैसे आए! क़मर वहीद नक़वी के मुताबिक जब उन्हें वापस लाने की बात हुई तो यौन उत्पीड़न की शिकायत का उल्लेख हुआ था, लेकिन उस समय एच.आर की ओर से कहा गया था कि सुप्रिय की फाइल में ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं है। वैसे भी, उन्हें कुछ दिन बाद रिटायर होना था और वे महज़ स्टॉप गैप अरेंजमेंट की तरह थे। अरुण पुरी, सुप्रिय को वापस लाने का मन बना चुके थे।
(इस संदर्भ में शुभ्रा चतुर्वेदी ने बताया कि नौकरी से बाहर जाने का एक स्टैंडर्ड फार्मेट है जिसमें कारण नहीं लिखा जाता। हो सकता है कि तकनीकी दृष्टि से इसी को रिकार्ड न होना कहा गया हो। लेकिन आरोप तो लगे और लड़की का शिकायती पत्र खुद एक दस्तावेज़ है जो तमाम वरिष्ठ लोगों के पास है
पाठकों, हम सुप्रिय प्रसाद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाला पूरा शिकयाती पत्र नीचे दे रहे हैं। आप खुद सोचें कि कोई दस्तावेज़ न होने की बात कितनी सही है। हमने महिला पत्रकार का नाम छिपा दिया गया है, लेकिन पाठक समझ सकते हैं कि मीडिया की दुनिया की हक़ीक़त क्या है। पत्रकार बनने का सपना लिए बड़े उत्साह से न्यूज़रूम की चकमक रोशनी में प्रवेश करने वाली महिला पत्रकारों को किन अंधेरों से गुज़रना पड़ता है। उनके सपनों की हरियाली उजाड़ने के लिए, कोई न कोई हवस का भैंसा नथुने फुलाए, घूुमता ही रहता है।
मीडिया विजिल ने अरुण पुरी को मेल भेजा है ताकि इस स्टोरी पर उनका पक्ष भी आ सके। लेकिन कई घंटे हो गए कोई जवाब नहीं आया। हम इसे यूँ ही प्रकाशित कर रहे हैं, इस वादे के साथ कि उनका पक्ष आते ही प्रकाशित किया जाएगा। इस संदर्भ में सुप्रिय प्रसाद को भी व्हाट्सऐप संदेश भेजा गया है ताकि अगर वे अपना पक्ष देना चाहें तो दे सकें।
वैसे सवाल बीईए से भी है।यह टी.वी.संपादकों की सर्वोच्च संस्था है। उसके अन्य पदाधिकारी बताएँ कि अपने अध्यक्ष के इस करम को वे कैसे आँकते हैं। 23 साल पुराने मामले में एडिटर्स गिल्ड अगर एम.जे.अकबर पर कार्रवाई पर विचार कर रहा है तो बीईए किस आधार पर चुप रह सकता है? आख़िर एडिटर तो वे भी कहे ही जाते हैं चैनलों को तमाशा में बदल देने के बावजूद। इस संस्था की मर्यादाओं को बरकरार रखने का कुछ ज़िम्मा तो उन पर है ही ।
वरना रुक्मिणी सेन का यह तंज़ उन्हें भी लेपेट में ले रहा है…सावधान..