2 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजनाओं को चुनौती देने वाली याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. साथ ही केंद्र सरकार के साथ कई राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिका में चुनाव के आसपास सरकारों द्वारा नकद हस्तांतरण (डायरेक्ट कैश ट्रांसफर) योजनाओं को असंवैधानिक और भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के रूप में घोषित करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया कि विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने या चुनाव से 6 महीने पहले से इन योजनाओं पर रोक लगा देनी चाहिए.
'Direct Cash Transfers Close To Polls Amount To Corrupt Practice', Alleges Plea In SC; Court Seeks ECI Response
Read Petition: https://t.co/nTUn7PpUk0 pic.twitter.com/JNg9xZ83vg— Live Law (@LiveLawIndia) July 2, 2019
डॉ. पीतापति पुल्ला राव द्वारा दायर इस याचिका में केंद्र सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल आदि सरकारों की घोषित योजनाओं का हवाला दिया गया जिन्होंने कथित रूप से सत्तारूढ़ दल को अनुचित लाभ दिया है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग, चुनाव के समय के आसपास सरकारों द्वारा मुफ्त, कल्याणकारी योजनाओं आदि की घोषणा के बारे में दिशा-निर्देश तैयार करें.
बता दें कि,लोकसभा चुनाव 2019 से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के जरिए 6 हजार रुपये सालाना देने का ऐलान किया था.केंद्र सरकार की कैश ट्रांसफर योजना को चुनाव आयोग की तरफ से हरी झंडी दिखाई गई थी. चुनाव आयोग का कहना था कि जिन लाभार्थियों की पहचान आचार संहिता लागू होने से पहले की गई थी. सरकार उन लाभार्थियों के लिए योजनाएं जारी रख सकती है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत सरकार के जरिए उसकी एक किस्त का ट्रांसफर भी चुनाव से पहले कर दिया गया था.
Are Direct Cash Transfer schemes "electoral bribes"? Supreme Court notice in PIL@BJP4India @trspartyonline @JaiTDPhttps://t.co/7hJ6rHHg9o
— Bar and Bench (@barandbench) July 2, 2019
जन प्रतिनिधि पार्टी के उम्मीदवार के रूप में हाल के आम चुनावों में आंध्र प्रदेश के एलुरु सीट से चुनाव लड़ने वाले और जेएनयू दिल्ली और शिकागो विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले अर्थशास्त्री डॉ. पीतापति पुल्ला राव द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना ने 3 समान किस्तों में लगभग 12 करोड़ किसानों को 6000 रुपए का हस्तांतरण करने का प्रस्ताव दिया था.
याचिकाकर्ता के अनुसार ऐसे नकद हस्तांतरण चुनाव की आदर्श आचार संहिता को दरकिनार करते हैं. एक उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा किसी मतदाता को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करने के लिए उपहार, प्रस्ताव या वादा करना जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 123(1) के तहत रिश्वत के समान होगा. याचिकाकर्ता ने कहा कि नकद हस्तांतरण योजनाएं, चुनावों के दौरान इस अधिनियम के तहत ‘भ्रष्ट’ प्रथा की परिभाषा के तहत आती हैं.याचिका में के. एस. सुब्रह्मण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2013 के फैसले का उल्लेख किया गया है जिसमें चुनाव के आसपास सरकारों द्वारा चुनावों के लिए ‘मुफ्त’ उपहारों को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया गया था.