पुणे पुलिस द्वारा प्रेस को जारी की गई एक चिट्ठी की प्रतिक्रिया में एडवोकेट सुधा भारद्वाज ने अपनी वकील वृंदा ग्रोवर के माध्यम से उसका जवाब दाखिल किया है। भारद्वाज का भेजा पत्र हाथ से लिखा है जिसमें बिंदुवार पुलिस द्वारा जारी पत्र का खंडन किया गया है।
सुधा भारद्वाज की चिट्ठी कहती है:
- यह पत्र पूरी तरह फर्जी, मनगढ़ंत पत्र है जिसका उद्देश्य मुझे और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और संगठनों को अपराधी ठहराना है।
- यह पत्र सार्वजनिक रूप से उपलब्ध और अहानिकर तथ्यों का एक सम्मिश्रण है और निराधार आरोप है। विभिन्न किस्म की कानूनी और लोकतांत्रिक गतिविधियों जैसे कि बैठकों, सेमिनारों, विरोध प्रदर्शनों इत्यादि को यहय कह कर बदनाम करने की कोशिश की गई है कि इन्हें माओवादियों से फंड मिलता है।
- कई मानवाधिकार अधिवक्ताओं, एक्टिविस्टों और संगठनों का नाम लेकर उन्हें कलंकित करने की कोशिश की गई है ताकि उनके काम में बाधा आ सके और उनके खिलाफ नफरत को भड़काया जा सके।
- वकीलों के समूह आइएपीएल को अवैध ठहराने की एक कोशिश की गई है जिसके अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस होस्बेट सुरेश हैं और जो लगातार वकीलों पर हमले के खिलाफ सक्रिय होकर आवाज़ उठाता रहा है।
- मैं स्पष्ट रूप से कह रही हूं कि मैंने मोगा में कोई आयोजन करवाने के लिए 50,000 रुपये कभी नहीं दिए। न ही मैं ‘’महाराष्ट्र के किसी अंकित’’ को जानती हूं या ‘’कॉमरेड अंकित को जो कश्मीरी अलगाववादियों के साथ संपर्क में है।‘’
- मैं गौतम नवलखा को जानती हूं, वे एक वरिष्ठ और सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जिनका नाम इस तरह से लिया गया है कि उन्हें अपराधी ठहराया जा सके और उनके खिलाफ नफरत भड़कायी जा सके।
- मैं जगदलपुर लीगल एड को अच्छे से जानती हूं और उनके लिए कोई भी फंड नहीं मांगा है, कम से कम किसी प्रतिबंधित संगठन से तो बिलकुल भी नहीं। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं कि उनका काम पूरी तरह वैध और कानूनी है।
- मैं एडवोकेट डिग्री प्रसाद चौहान को जानती हूं, वे एक दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जो पीयूसीएल के साथ सक्रिय हैं और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क में काम करते हैं। उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं।
- उन तमाम वकीलों, एक्टिविस्टों और संगठनों को अपराधी करार देने और उनके खिलाफ नफरत भड़काने की कोशिश की गई है जिन्होंने छत्तीसगढ़ के बस्तर में मानवाधिकार उल्लंघन का परदाफाश किया है। मैं एक बार फिर घोषित करती हूं कि यह एक फर्जी और मनगढ़ंत पत्र है जिसे मैंने तब भी खारिज किया था जब रिपब्लिक टीवी ने इसे 4 जुलाई को प्रसारित किया था और जिसे आज तक न तो पुणे की अदालत में पेश किया गया और न ही मुझे पुणे ले जाते वक्त सीजेएम फरीदाबाद के सामने रखा गया।